कविता: मनहरण घनाक्षरी छंद
प्रथम नमन मेरा ,जन्म दायिनी माँ को है
द्वितीय नमन मेरा, ईश सम तात को
तृतीय नमन करूँ ,गौरीसुत गणेश को
चतुर्थ नमन मेरा, सरस्वती मात को
पंचम नमन मेरा, जग पालनहार को
षष्ठम् नमन करूँ , ज्ञान बरसात को
सप्तम नम करूँ, जवान किसान को तो
अष्टम नमन करू, राष्ट्र की सौगात को
धर्म की सुरक्षा हेतु, वसुधा पे आये प्रभु
दर्श करो भक्त जनो, राम अवतार के
मिथला में हुई प्रकट ,जनक दुलारी सीता
असुरों के नाश हेतु , काली रूप धार के
पधारे हैं शेषनाग, नारायण सेवा हेतु
साथ रहे लखन जी, सब कुछ वार के
उमापति महादेव, रूद्र अवतारी बने,
रामजी भी ऋणी हुए , सेवा उपकार के
सृष्टि पर मचा जब, चहुँदिश हाहाकार
देवकी ने दिया जन्म, प्रभु जी को जेल में
चुन चुन सारे दुष्ट, भेज दिये यमधाम
कन्हाई ने असुरों को , यूँ ही खेल खेल में
पूतना व वकासुर , कागा और वत्सासुर
मारे गये जो भी मिला,अधर्म की गेल में
कंस को हुआ आभास, काल मड़राये सिर
कन्हैया ने वही मारा, पछाड़ के जेल में
उमड़ गुमड़ कर , नीर जो बरसा रही
काले काले मतवाले, मेघो की ये मंडली
बिजली दमक रही , घनघोर घटा घनी
मंद मंद शीतल यूँ , देखो समीर चली
भीनी भीनी महक से, मन भी गया चहक
रोम रोम खिल उठा, खिली मन की कली
पहली बरसात का ,यूँ लुप्त उठाओ सभी
भींग भींग बारिश में , कृषक गली गली
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