कहानी उप्र के तीन युवाओं की, जिन्होंने अपने संघर्षों से लिखी सफलता की इबारत

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लखनऊ. स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार राजधानी लखनऊ में युवा महोत्सव मना रही है। महोत्सव में तमाम राज्यों से 7 हजार युवाअपनी क्षमता का प्रदर्शन करने पहुंचे हैं। लेकिन इन सबसे अलग तमाम ऐसे युवा हैं, जिन्होंने अपनी युवा शक्ति का एहसास कराया बल्कि बाकी लोगों के लिएप्रेरणापुंज बने हैं। नोएडा के रहने वाले प्रद्युत वोलेटी अमेरिका से बॉस्केटबॉल का प्रशिक्षण ले चुके हैं। उन्होंने केबीसी में 17 लाख रुपए जीते थे। लेकिन उस पैसे से अब ये गांव के बच्चों को बॉस्केटबॉल में चैंपियन बनाने में जुटे हैं। इसी तरह लखनऊ के परम सिंह अपने दोस्तों के साथ मिलकर गंभीर बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए मुफ्त दवा का इंतजाम करते हैं। पेश है रिपोर्ट-

  1. मेट्रोपोलिटन सिटी नोएडा के रहने वाले प्रद्युत वोलेटी 2014 में अमेरिका से बास्केटबॉल की ट्रेनिंग लेकर अपने देश लौटे। मन में कुछ अलग और बड़ा करने की चाह थी। इसी उधेड़बुन में दिन कट रहे थे। नोएडा में उनके घर के पास ही एक गांव गेजा है। प्रद्युत के ड्राइवर भी उसी गांव के हैं। उन्होंने सलाह दी कि कुछ अलग करना है तो गांव के गरीब बच्चों के लिए कुछ कीजिए। प्रद्युत को सलाह अच्छी लगी और वह गरीब बच्चों को बास्केटबॉल चैम्पियन बनाने गांव पहुंच गए। लेकिन ड्राइवर के दो बच्चों के अलावा उनके साथ कोई खड़ा नहीं हुआ। अब यहां से प्रद्युत की अग्नि परीक्षा शुरू हुई।
    प्रद्युत के सामने दो बड़ी परेशानियां थी, एक तो बच्चों को इकठ्ठा करना और दूसरा मैदान का इंतजाम करना। गांव वालों को समझाने पर मैदान का इंतजाम किसी तरह हो गया। लेकिन बच्चों को इकठ्ठा करना बड़ा मुश्किल था। बच्चे एक दिन इकठ्ठा होते तो दूसरे दिन नहीं आते थे। प्रद्युत बताते हैं कि यह आदत धीरे धीरे खत्म हुई। जब उनमें खेल के द्वारा अनुशासन, क्षमता विकसित हुई। अब हाल यह है कि गांव के सभी छोटे-बड़े बच्चे बास्केटबॉल खेलते हैं। इस गांव में लगभग 650 बच्चे हैं। यही नहीं प्रद्युत ने आसपास के गांव में भी अपना प्रोग्राम चलाया। इस समय लगभग 1 हजार से डेढ़ हजार बच्चे बास्केटबॉल खेल रहे हैं। इनमें से कुछ बच्चे अमेरिका जैसे देशों में भी खेल कर आए हैं। कुछ बच्चे अंडर 14 टीम में खेल रहे हैं। कुछ नेशनल के लिए क्वालीफाई कर रहे हैं।
    इन बच्चों के साथ प्रद्युत अलग अलग टूर्नामेंट्स में प्रतिभाग करते हैं और जीती हुई राशि से बच्चों को गेम सीखा रहे हैं। प्रद्युत कहते हैं कि मेरा मकसद प्लेयर बनाना नहीं, बल्कि उन बच्चों तक खेल को पहुंचाना है। जिनके पास खेल की सुविधा भी नहीं है। पिछले 5 सालों में प्रद्युत ने अपनी एक संस्था ड्रिबल एकेडेमी बनायी है। जिसमें कोचेस की टीम है, जो बच्चों को अस्थायी मैदानों में बास्केटबॉल सिखा रहे हैं। प्रद्युत कहते हैं कि मेरी सरकार से यही मांग है कि मुझे एक मैदान उपलब्ध कराया जाए। जहां मैं बच्चों को उनकी क्षमतानुसार खेल सिखा सकूं। प्रद्युत ने केबीसी में 17 लाख रूपए जीते थे, जिसे इसी काम में लगा दिया। वह बच्चों को बास्केट बॉल से लेकर जूते, कपडे, डाइट भी फ्री उपलब्ध करवाते हैं।
  2. चारबाग में अमृतसरी कुलचे और छोले के मशहूर होटल के मालिक परम सिंह बड़े दिलवाले हैं। परम बताते हैं कि लखनऊ में केजीएमसी मेडिकल कॉलेज में गुरूद्वारे की तरफ से लंगर लगता है। मैं वहां सेवा करने के लिए जाया करता था। कई दिनों तक जाने के बाद वहां कुछ ऐसे लोगों से मिला कि उनके पास दवाई तक के पैसे नहीं रहते हैं। जबकि इलाज काफी लंबा और महंगा होता है। तकरीबन 6 महीने पहले मैंने और मेरे कुछ दोस्तों ने अपनी जेब से गरीबों को दवाई देनी शुरू की। इसका नाम मैंने गुरुनानक मेडिकल सेवा रखा। मेरे काम की जानकारी जब कुछ दोस्तों को हुई तो वह भी जुड़ गए।
    परम बताते हैं कि हमने अपना नंबर सोशल मीडिया पर, पम्फ्लेट पर डालकर जगह जगह पहुंचाया हुआ है। जिन्हे जरूरत होती है, वह हमसे मिलते हैं। हम उनका पर्चा लेकर सम्बंधित डॉक्टर से मिलते हैं। फिर उसके बाद उसे दवाइयां खरीद कर देते हैं। किसी को 500 की तो किसी को 7 हजार की दवाएं भी खरीद कर दी है। परम कहते हैं कि हमने कोई एनजीओ या संस्था नहीं बनायीं है और न ही बनाना है। यदि कोई मदद करना चाहे तो वह हमसे जुड़ सकता है। हमारा काम है सेवा करना इसलिए हम कर रहे हैं।
    परम के मुताबिक सभी दोस्तों का अपना बिजनेस है। उसी से हम गुरुनानक मेडिकल सेवा के लिए पैसे निकालते हैं। चूंकि मैं शुरू से गुरुद्वारा सेवा के लिए जाता रहा हूं, तो परिवार में भी मेरी इस पहल को सराहा गया। अब तो मेरा नंबर इतना बंट गया है कि देश भर से कॉल आते हैं। लेकिन हम लखनऊ में ही यह काम करते हैं। उन्होंने बताया कि एक लड़की है, जिसे कैंसर है। उसका इलाज पिछले तीन महीनों से करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि लगभग हर महीने ढाई से 3 लाख की दवाओं की मदद हम लोग करते हैं।
  3. सुल्तानपुर जिले के अब्दुल हक जात पात से हटकर लोगों की मदद निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। वह लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करवाते हैं, तो विदेशों में फंसे शवों को देश में मंगवाने में परिवार की मदद भी करते हैं। चार सालों में वो अब तक छह से अधिक शव विदेशों से मंगवा चुके हैं तो 25 युवकों को विदेशों में बंधक बनने से बचा चुके हैं। अब तो प्रदेश के कई जिले से लोगों का फोन इनके पास मदद को आता रहता है।
    अब्दुल हक बताते हैं कि बेरोजगारी के युग में गरीब हो या अमीर, अधेड़ हो या युवा वो विदेश की तरफ भाग रहा। ऐसे में अधूरी जानकारी के चलते ऐसे लोग दलालों के चंगुल में फंस जा रहे। नतीजा ये के विदेशों में जाकर उन्हें या तो यातनाएं झेलनी पड़ रही या फिर जेल की हवा खानी पड़ रही। कई एक तो विदेश में हादसे का शिकार हुए तो कुछेक की वहां हत्या कर दी गई।
    अब्दुल हक़ बताते हैं कि, इस काम की शुरुआत उन्होंने दलित रूपी के शव को मंगाने से शुरू की थी। कादीपुर कोतवाली के सराय कल्याण निवासी दलित रूपी का परिवार 26 अगस्त 2015 से परेशान था। रूपी से आखरी बार इस तारीख में बात हुई थी, इसके बाद कनेक्शन टूट गया था। पूर्व बीएसपी विधायक भगेलू राम के यहां परिवार के सदस्यों से अब्दुल हक की मुलाकात हुई। हालत को देखकर अब्दुल रूपी के बेटे को लेकर दिल्ली स्थित स्वर्गीय सुषमा स्वराज के आफिस पहुंचे। जानकारी के बाद पता चला के रूपी की सऊदी अरब में मौत हो गई है। विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज ने पूरी मदद की और अब्दुल की प्रशंसा भी के सेवा भाव से अच्छा काम कर रहे।
    मेहनत रंग लाई 22 दिसंबर 2016 को रूपी का शव घर पहुंच गया। इसके अलावा अलग-अलग देशों में काम करने गए युवक के बंधक बनाए जाने, उन्हें जेल से रिहा कराकर उनकी वतन वापसी में भी अब्दुल हक ने दर्जनों केस हैंडिल किए हैं। कोतवाली नगर के आदर्श नगर मोहल्ले का निवासी मोहम्मद इरशाद नबंर 2018 को सऊदी अरब के रियाद शहर गया। पांच माह तक मालिक ने काम लिया लेकिन पैसे नहीं दिए। इरशाद ने घर बताया फिर अब्दुल की मदद से वो घर लौटा।
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