व्यंग्य : पत्रकारिता में आये परिवर्तन
- देवेंन्द्रराज सुथार
भारत की पत्रकारिता में इन दिनों द्रुतगामी परिवर्तन आये है। आजादी से पहले पत्रकार सच छापते थे, आजादी के बाद खबरें छापने लग गये। और आजकल पत्रकार दोनों से इत्तर नोट छापने लग गये है। एक समय में जो पत्रकार कुर्ता-पजामा पहने बिना मोबाइल के झोला लेकर खबरों की तलाश में यहां से वहां और वहां से यहां विचरण करते थे, आज उन पत्रकारों के ठाट ही न्यारे हैं। देखिये न ! फिर भी इन्हें गिला है कि इन्हें ओरों से कम मिला है।
भूकंप तो एक सेकंड आकर चला जाता है लेकिन ये तो पूरा दिन हिलते रहते है। ये बाबा सास-बहू और साजिश के नाम पर कभी सलमान और ऐश्वर्या की तो कभी रणबीर और कैटरीना की स्टोरी दिखाकर नवजात शिशुओं को यह बताते है कि मजे लेने के लिए शादी का लाइसेंस लेना कोई जरूरी नहीं है। ओर बाकि के समय में गर्मागर्म बहस का सुपाच्य नाश्ता परोसकर अपना चरित्र उजागर करते है।