पत्रकार मरेगा तो दूसरे पत्रकार खबरें देते रहेंगे, सरकार कुछ नहीं सोचती || कोरोना के बाद बदहाली तय

author
0 minutes, 7 seconds Read
संवाददाता, ई-रेडियो इंडिया। पत्रकारिता की स्थिति पर तमाम संस्थानों ने पत्रकारों को परेशान करना शुरू कर दिया है। ऐसे में हमने पत्रकारों की परिस्थितियों को लेकर एक चर्चा का आयोजन किया। वरिष्ठ पत्रकार नरेश उपाध्याय से बातचीत के दौरान कई अहम बातों का खुलासा हुआ, यदि आप पत्रकार हैं तो पूरी वीडियो जरूर देखें-

व्यंग्य : पत्रकारिता में आये परिवर्तन

  • देवेंन्द्रराज सुथार 

भारत की पत्रकारिता में इन दिनों द्रुतगामी परिवर्तन आये है। आजादी से पहले पत्रकार सच छापते थे, आजादी के बाद खबरें छापने लग गये। और आजकल पत्रकार दोनों से इत्तर नोट छापने लग गये है। एक समय में जो पत्रकार कुर्ता-पजामा पहने बिना मोबाइल के झोला लेकर खबरों की तलाश में यहां से वहां और वहां से यहां विचरण करते थे, आज उन पत्रकारों के ठाट ही न्यारे हैं। देखिये न ! फिर भी इन्हें गिला है कि इन्हें ओरों से कम मिला है।

इसलिए ये कहते नहीं थकते – अच्छे दिन कब आएंगे ? भला इनसे अच्छे ओर क्या अच्छे दिन होंगे ! कुछ सालों पहले मैंने एक वरिष्ठ पत्रकार से ये पूछने का दुस्साहस किया था – पत्रकारिता क्या है ? तो जबाव में उन्होंने कहा था – बेटा ! पत्रकारिता तो एक जनसेवा है। मैं उनके ठाट देखकर समझ गया कि वाकई में पत्रकारिता तो एक जनसेवा ही है ! जनाब, यह एक ऐसी जनसेवा जिसमें टोल नाके पर टोल भी नहीं देना पडता। वैसे भी अपने देश में तो हर आदमी टोल नाके पर पत्रकार बन ही जाता है। वो भी बिना माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की डिग्री-डिप्लोमा हासिल किये। 
अब बताओ इतनी अच्छी जनसेवा भला कौन नहीं करना चाहेगा ? यही कारण है कि देश में हजारों की संख्या में अखबार निकलने लग गये है। ओर इन अखबारों में खबरें कम ओर विज्ञापन अधिक छपने लग गये है। अखबार के मुख्य पृष्ठ पर लगा विमल का विज्ञापन बडी सादगी के साथ चिख चिख के कह रहा है – दाने दाने में केसर का दम। दम मारो दम, उडन छू हो जाएं सारे गम। ओर उसी अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर संपादक भी चीख चीख के कह रहा है – धूम्रपान निषेध है। इससे कैंसर होता है। खबरियां चैनलों के खबरी बाबाओं का हाल तो ओर भी घिनौना है। जिस फर्श पर वे सोते है उस पर गरम बिछौना है। 

भूकंप तो एक सेकंड आकर चला जाता है लेकिन ये तो पूरा दिन हिलते रहते है। ये बाबा सास-बहू और साजिश के नाम पर कभी सलमान और ऐश्वर्या की तो कभी रणबीर और कैटरीना की स्टोरी दिखाकर नवजात शिशुओं को यह बताते है कि मजे लेने के लिए शादी का लाइसेंस लेना कोई जरूरी नहीं है। ओर बाकि के समय में गर्मागर्म बहस का सुपाच्य नाश्ता परोसकर अपना चरित्र उजागर करते है। 

इन चैनलों पर आपको राखी सावंत, हनीप्रीत से लेकर राधे मां की पूरी कुंडली तक मिल जाएगी लेकिन माइक्रोेस्कोप से ढूंढने पर भी कोई काम की खबर नहीं मिलेगी। इन दोनों को साइड में करता सोशल मीडिया का तो कहना ही क्या। बिना संपादक का ये मीडिया हर वक्त मांग करता है – देशभक्त हो तो कमेंट बाॅक्स में वंदेमातरम और जय हिंद लिखो। आज शनिवार है कमेंट में बाॅक्स जय हनुमान लिखो। ओर तो ओर ये ससुरा कमेंट बाॅक्स में नौ लिखवाकर जादू बताने का भी दावा करता है। इसकी तो लीला ही न्यारी है। 
खबरों के बाजार सज रहे है। पत्रकारों को लुभाया जा रहा है। बेचारा पत्रकार भी तब तलक कंट्रोल करे। लाख रोकने पर भी उसका मन बहका जा रहा है आधी रात को। आखिर पत्रकार की भी तो ख्वाहिशें और कुछ अरमान है।

ई-रेडियो इंडिया की अन्य खबरें देखें-

Send Your News to +919458002343 email to eradioindia@gmail.com for news publication to eradioindia.com
author

editor

पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

Similar Posts

error: Copyright: mail me to info@eradioindia.com