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विद्यासागरजी : व्यक्ति से व्यक्ति को, समाज से समाज को अलग करने का प्रयास पागलपन है, सफल नहीं होगा, शिक्षा ही इसे रोकेगी


अनुराग शर्मा | इंदौर .त्याग, तप और ज्ञान के सागर आचार्य विद्यासागरजी से करोड़ों लोगों ने जीवन प्रबंधन सीखा है। अलग-अलग क्षेत्रों के शीर्ष लोगों ने नेतृत्व के गुर सीखे हैं। खुद विद्यासागरजी का जीवन तो प्रतिकूलताओं में आत्मानुशासन का अनूठा उदाहरण है ही। दैनिक भास्कर के अनुरोध पर भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) के निदेशक प्रोफेसर हिमांशु राय ने विद्यासागरजी से जीवन प्रबंधन और समाज-देश में अनुशासित नागरिक के रूप में हमारे कर्त्तव्य पर बात की। इसके लिए उन्होंने तिलक नगर स्थित महाराज के प्रवास स्थल पर आचार्यश्री व संघस्थ मुनियों के साथ दिन बिताया।
नकारात्मकता और क्रोध व्याप्त है, शिक्षा में बदलाव से रास्ता मिलेगा

प्रोफेसर राय : शिक्षा को लेकर हमारी प्रणाली और सोच क्या सही दिशा में है? आज समाज के ताने-बाने को बुनने में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है?
विद्यासागरजी : शिक्षा बौद्धिक नहीं होती। उसका उद्देश्य समझना होगा। यदि उसके उद्देश्य को समझ लिया तो शिक्षा के बगैर भी सीख सकते हैं। बच्चे यदि माता-पिता की बात सुनते हैं तो शिक्षा का उद्देश्य पूरा हुआ। आज नकारात्मकता और क्रोध सिर्फ इसलिए है कि मन में संतुष्टि नहीं है। इसके लिए शिक्षा में परिवर्तन करना होगा। कुछ लोग व्यक्ति को व्यक्ति से या समाज को समाज से अलग करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रयासों से कुछ भी सिद्ध नहीं हो पा रहा तो उनका प्रयास पागलपन है, इसे रोकने के लिए भी शिक्षा जरूरी है।
स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता तो नहीं, लोकतंत्र बना रहे

प्रोफेसर राय: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आज बड़ी बहस छिड़ी हुई है।
विद्यासागरजी : स्वतंत्रता हासिल करने का उद्देश्य देश का बौद्धिक, सामाजिक और धार्मिक विकास करना था। सभी का हित, सुख, शांति, सहयोग और कर्त्तव्य भी। इसके बाद यदि समय बचता है तो उसका उपयोग जीवन के रहस्यों को समझने के लिए किया जाना चाहिए। स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर है। संघर्षों के बाद मिली स्वतंत्रता को स्वच्छंदता नहीं समझा जाना चाहिए।
उन्नति ‘भारत’ के माध्यम से ही संभव, इंडिया से नहीं

प्रोफेसर राय : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ दूसरा विषय अभिव्यक्ति का माध्यम यानी भाषा भी है।
विद्यासागरजी : एक बार ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में इंडियन की परिभाषा देखिए। पुरानी सोच वाले, अापराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को इंडियन कहा गया है। भारत का इतिहास है, इंडिया का नहीं है। हमें देश का नाम बदलकर भारत करना चाहिए।
हम उन्नत थे, दूसरों को भी उन्नत बना सकते हैं, वह भारत के माध्यम से ही संभव है, इंडिया से नहीं। चीन, जापान, जर्मनी, रूस और इजराइल ने अपनी भाषा में विज्ञान, प्रबंधन विकसित किए, अंग्रेजी में नहीं। इजराइल की हिब्रू भाषा के शब्दकोश में बहुत कम शब्द हैं, भारत के पास अनेक भाषाएं और शब्दकोश हैं, फिर भी हमें अंग्रेजी चाहिए। जो अभिव्यक्ति हिंदी में हो सकती है, वह अंग्रेजी में संभव नहीं। फिर भी माता-पिता का इस भाषा के प्रति बहुत आग्रह है। इस आग्रह ने बच्चों की सहजता छीन ली है।
युवा विचार इतना ज्यादा क्यों करता है

प्रोफेसर राय: युवाओं को आपकी सलाह…
विद्यासागरजी : आज का युवा विचार ज्यादा करता है, जिसका कोई प्रयोजन नहीं, उस बारे में बिलकुल न सोचें। अन्यथा भी न सोचें, सिर्फ उपयोगी बातें सोचें। अन्यथा सोचने से शक्ति की भी हानि होती है। समय पर सोचना बेहतर है, बजाय इसके कि समय निकल जाने के बाद सोचें। संयुक्त परिवार में हर किसी का दायित्व होता था। आज वह लाभ तो नहीं मिल रहा, बल्कि हानि हो
रही है।

खुद को केंद्र मानें, फिर विश्व को देखें

प्रोफेसर राय : एक व्यक्ति परिस्थितियों को बदलने के लिए कहां से पहल करे?
एक बिंदु को केंद्र मानकर यदि हम एक के बाद एक रेखाएं खींचें तो वे रेखाएं स्वत : एक वलय का रूप ले लेंगी। रेखाएं मिलकर वृत्त बना देती हैं, लेकिन वे स्वयं तो वृत्त नहीं हैं। ऐसे ही पूरा विश्व एक वृत्त है, जिसके केंद्र में स्व है। खुद के और दुनिया के बीच संबंध बनाने के लिए सरल रेखाएं आवश्यक हैं। यदि संबंध बने रहेंगे तो वलय बना रहेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने आप को देखेंगे तभी विश्व को देख पाएंगे।

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