about media welfare society
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Media Welfare Society || मीडिया वेलफेयर सोसायटी

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Email:mediawelfaresociety2@gmail.com

Media Welfare Society (मीडिया वेलफेयर सोसायटी) का गठन क्यों?

जब देश व समाज को खतरे में डालने वालों की संख्या बढ़ने लगती है तो ऐसे में खामोशी से बैठे लोगों का ‘सांस्कृतिक खाता’ नकारात्मक होने लगता है और फिर दूसरों को देखकर ‘मानसिक गरीबी’ में जीने वाले लोगों की अज्ञानता से उपजे विष रूपी विचारों को कुचलने के लिए एक मशाल जलाने की जरूरत पड़ती है।

जैसे कोई मशाल अगर अकेला हो तो उपहास करने वालों की संख्या बल के आगे उसे दीप्तिमान होने में अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है इसी क्रम में अनेक अच्छे व्यक्तियों का समूह बनाकर एक मंच के माध्यम से अगर किसी बात को कही जाए तो समाज के कुत्सित विचारधारा वाले व्यक्तियों में कुछ पल के लिए ठहराव आ जाता है और धीरे-धीरे इस ठहराव का वक्त बढ़ने लगता है… यानी कई मशालों को एकजुट कर समाज को प्रकाशित करने का एक कठिन प्रयास करने के लिए मीडिया वेलफेयर सोसायटी (Media Welfare Society) का गठन किया है।

आजकल पत्रकारों की वजह से पत्रकारिता कही शिखर तो कही गर्त में। निष्पक्ष पत्रकारिता का तो जमाना ही नहीं रहा क्योंकि संवाद खर्चीला जो हो गया है और व्यापारियों ने न्यूज चैनलों की दुकान खोल रखी है और हर न्यूज के प्रसारण से पूर्व नफा-नुकसान की गणना होती है और अगर नुकसान होता दिखे तो पेड न्यूज भी चलाने से गुरेज नहीं करते।

Media Welfare Society क्या करना चाहती है?

  • समाज में ऐसी शिक्षा व सरकार का सहयोग करना जो रोजगार पैदा करने में सक्षम हो।
  • Media Welfare Society समाज में व्याप्त असमानता, असुरक्षा की भावना से ग्रसित एवं पुरातन सभ्यताओं से दूरी बनाने वाले युवाओं में ध्यान व योग शिविर द्वारा नई चेतना का संचार करना चाहती है ताकि भारत को पुन: सोने की चिड़िया वाले सपने को मजबूती मिले।
  • किसी भी बैनर के लिए कार्य कर रहे ऐसे पत्रकारों की आर्थिक मदद Media Welfare Society करने का प्रयास करेगी जो वास्तविक तौर पर पत्रकारिता करना चाहते हैं लेकिन धनाभाव में उनकी धार कमजोर हो रही है।
  • Media Welfare Society समय-समय पर पत्रकारिता की नई पौध के लिए विचार गोष्ठी, कार्यशाला, प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करना।
  • समाज में स्वास्थ्य शिविर, सांस्कृतिक कार्यक्रम, विभिन्न प्रकार के सम्मेलनों एवं प्रतियोगिता का आयोजन करना।
  • गरीब व कमजोर तबके लिए निर्माण कार्य, आर्थिक सहायता, प्रोत्साहन राशि एवं अन्य सभी प्रकार की संभव मदद करना।

Media Welfare Society की आपसे भी अपेक्षा है

Media Welfare Society के सरल विचारों को मूर्तिरूप प्रदान करने में बहुत ही कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा अत: हमें आपके सहयोग की भी जरूरत है। आप हमें सहयोग करने में नि:संकोच योगदान दे सकते हैं। आप समाज के जिस भी वर्ग से हों हमारे इस यक्ष में आहुति दे सकते हैं।

  • सोसल वालंटियर: आप हमारे सोसल वालंटियर बनकर हमारे विचारों को समाज में प्रसारित करने में मददगार हो सकते हैं।
  • सदस्य: आप मीडिया वेलफेयर सोसायटी की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं जो वार्षिक है। कोई भी व्यक्ति जो मानसिक रूप से सकारात्मक है वार्षिक योगदान देकर सदस्य बन सकता है।
  • आर्थिक सहयोगी: सोसायटी के विचारों को प्रिंट, डिजिटल एवं अन्य माध्यमों से प्रचारित ही नहीं बल्कि कार्यान्वयित करने के लिए आप मीडिया वेलफेयर सोसायटी को आर्थिक सहयोग कर सकते हैं। सहयोग राशि आपके निजी सक्षमता पर निर्भर है।
  • पदाधिकारी बनकर: यदि आप उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में मीडिया वेलफेयर सोसायटी का पदाधिकारी बनना चाहते हैं तो आप अपनी योग्यता साबित कर पदभार ग्रहण कर सकते हैं।
  • उपरोक्त माध्यमों से अलग भी यदि आप किसी अन्य रूप में हमसे जुड़ना चाहते हैं तो आपके विचारों का स्वागत है, कृपया आप अपनी प्रतिक्रया अवश्य दें क्योंकि आपकी प्रतिक्रिया से ही हमें नये विचारों के सूत्रपात करने में मदद मिलती है।

Media Welfare Society का आपसे निवेदन

आधा-आधा लिखा हुआ, तुम पूरा – पूरा पढ़ लेना।
नैनों की इन व्यथा-कथा, मन के तारों से गढ़ लेना।।

आधा-आधा लिखा हुआ तुम पूरा – पूरा पढ़ लेना 
नैनों की इन व्यथा-कथा मन के तारों से गढ़ लेना

फर्क कोई नहीं

आज की पत्रकारिता और उन पाजेबों में, जो हुक्मरानों के लिए छनका करतीं हैं।

पत्रकारिता कैसे डूबती चली गई?

इस देश में 1857 से अभी कुछ साल पहले तक पत्रकारिता की यह परंपरा रही है कि पत्रकारों ने तोप से उड़ाया जाना स्वीकार कर लिया, लेकिन अपनी कलम की इज्जत पर आंच नहीं आने दी। गदर के बाद दिल्ली पर जब अंग्रेजों की हुकूमत हुयी तो सबसे पहले जिस शख्स को तोप के मुंह से बांधकर उड़ाया गया वह एक पत्रकार था और उसका नाम था मौलवी बाकर। मौलवी बाकर एक अखबार निकालते थे, और अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर लिखते थे।

फिर स्वतंत्रता संग्राम के दौर में महात्मा गांधी, मौलाना आजाद और जवाहरलाल नेहरू जैसे तमाम नेताओं ने अखबारों के माध्यम से लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाई और जेल गए। उनके अखबारों पर पाबंदियां लगायी गयीं। इतने गौरवमयी अतीत के बावजूद, पिछले कुछ सालों में इस देश के पत्रकार, दरबारी कैसे बन गए।

जब मालिक सरकार के पास विज्ञापन मांगने गया तो सरकार ने बिना कुछ कहे सुने उसे विज्ञापन दे दिए। लेकिन जब इसी चैनल ने सरकार के खिलाफ आवाज उठायी, तो सरकार ने विज्ञापन बंद कर दिए। जब चैनल का दम घुटने लगा तो मालिक, संपादक दौड़कर सरकार के पास गया और दुखड़ा सुनाया कि ऐसे तो हम मर जाएंगे। सरकार ने बताया कि अगर विज्ञापन चाहिए तो आलोचना बंद कीजिए और गुणगान कीजिए। मरता क्या न करता, मालिक ने पत्रकार के हाथ मरोड़े और संदेश दे दिया कि चुपचाप घुटने टेक दो। इसी तरह कुछ मालिक पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के पास गए कि हमारी मदद करो।

पूंजीपति और उद्योगपति ने थैलियां खोल दीं और जब चैनल मालिक कर्ज में डूब गया तो थैली का मुंह बंद कर दिया। चैनल का दम घुटने लगा तो चैनल मालिक ने फिर कहा कि हुजूर कुछ और मदद करो, पूंजीपति, उद्योगपति बोला कि हमको क्या फायदा होगा। सरकार से हमारा यह काम कराओगे तो और पैसा मिल जाएगा।

मालिक ने फिर से पत्रकारों और एंकरों के हाथ मरोड़े। एंकर और पत्रकार दोनों लाखों का वेतन लेने का आदी हो चुका था। उसने सोचा कि एक काम करवाने में क्या चला जाएगा। बस क्या था, धंधा शुरु हो गया। पत्रकार दरबारी हो गया और चैनल गला फाड़-फाड़कर सरकार का गुणगान करने और उसका एजेंडा लागू करने मे जुट गया।

लेकिन अफसोस, इस दरबारगीरी और चीख-चिल्लाहट में देश का पत्रकार ही नहीं, बल्कि पूरी की पूरी पत्रकारिता ही डूब गयी है। जो जांबाज पत्रकार बचे हैं, वह या तो भूखों मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं। ऐसे माहौल में आखिर पत्रकारिता हो तो कैसे हो?

  • लेकिन एक सवाल समाज से भी, क्या आप अपनी और समाज की सुरक्षा के लिए पत्रकारिता के पक्ष में खुले तौर पर जबान नहीं खोल सकते?
  • क्या आप पत्रकारों को किसी का आर्थिक गुलाम बनने से नहीं रोक सकते?
  • जनता के हाथों में इतनी बड़ी ताकत है कि वो सरकार पलट देती है… क्या इस जनता में अब इतनी भी संवेदनशीलता नहीं रही कि वो जिस पर सबसे ज्यादा यकीन करता है उसे बचाने की मुहिम न छेड़ सके?

एक कविता की चंद पंक्तियां आपके लिए

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं

ना समझ था पहले अब समझदार हो गया हूं।

बहुत गुस्सा था इस व्यवस्था के खिलाफ

अब उसी का भागीदार हो गया हूं।

इंकबाल वंदे मातरम कई नारे आते हैं मुझे

पर क्या करूं विज्ञापनों के कारण लाचार हो गया हूं।

मीडिया वेलफेयर सोसाटी द्वारा आयोजित सेमिनार ‘पत्रकारिता पूजीपतियों की‘ विषय पर अपने व्याख्यान देते अतिथि, यहां क्लिक कर देखें वीडियो।

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पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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