Site icon

अफवाह बता प्राथमिकी दर्ज करना अवमानना का मामला: सुप्रीम कोर्ट

आरक्षण की 50 फीसदी सीमा पर पुनर्विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

आरक्षण की 50 फीसदी सीमा पर पुनर्विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को स्पष्ट कर दिया कि यदि संकट में कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपनी परेशानी साझा करता है तो उसे अफवाह बताकर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जायेगी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने कहा कि कोई नागरिक सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगा रहा है, तो इसे गलत जानकारी कहकर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। अगर कार्रवाई के लिए ऐसी शिकायतों पर विचार किया जाता है तो इसे अदालत की अवमानना की श्रेणी में माना जायेगा।

न्यायालय ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आगाह किया जाता है कि सोशल मीडिया पर मदद के लिए की जाने वाली गुहार को अफवाह बताकर कार्रवाई की गयी तो अदालत की अवमानना का मामला बनेगा।

गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दावा किया था कि राज्य में ऑक्सीजन का अभाव नहीं है और इस तरह की अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा चलाया जायेगा।

न्यायालय कोरोना से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने केंद्र सरकार से यह भी सवाल किया कि कोरोना के टीके की अलग-अलग कीमतें क्यों रखी गयी हैं, जबकि ये टीके जनता को ही लगने हैं।

न्यायालय ने दिल्ली में ऑक्सीजन की अपर्याप्त आपूर्ति को लेकर भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली को 200 टन ऑक्सीजन की और दरकरार है तो उसे दिया जाना चाहिए। दिल्लीवासियों के प्रति केंद्र की भी जिम्मेदारी है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हो रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “दिल्ली पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और यहां शायद ही कोई मौलिक रूप से दिल्लीवाला होगा। केंद्र के तौर पर आपकी विशेष जिम्मेदारी बनती है।”

Exit mobile version