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Arvind Kejariwal Garantie: वादे हैं वादों का क्या…

Arvind Kejariwal Garantie: केजरीवाल की शेखी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जेल से बाहर आने के एक दिन बाद संवाददाता सम्मेलन करके यह बताया कि आखिर जेल जाने के बाद भी उन्होंने पद से त्याग पत्र क्यों नहीं दिया। केजरीवाल का कहना है कि, ‘वह एक डिक्टेटर से लड़ रहे हैं। इसलिए उन्होंने पद से इस्तीफा नहीं दिया।’

यानि एक सत्ता से लड़ने के लिए सत्ता में रहना जरूरी है। केजरीवाल की पूरी पत्रकार वार्ता में नैतिकता का कोई उल्लेख नहीं मिला, जबकि एक राजनेता के लिए उसकी सबसे बड़ी ताकत नैतिकता है।

दरअसल केजरीवाल कुछ भी दावा करें, किन्तु उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जो राहत एक जून तक के लिए मिली है, उसमें यह कहीं भी शामिल नहीं है कि वह शराब नीति घोटाले में बेगुनाह हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव प्रचार करने के लिए जो अंतरिम जमानत दी है, उसकी भी आलोचना करने वाले दबी जुबान में कह रहे हैं कि फिर तो हेमन्त सोरेन और दूसरे करप्शन के आरोपी राजनेताओं को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए।

  • संवाददाता सम्मेलन में केजरीवाल ने किया वादा
  • जेल से छूटने के बाद कर रहे ताबड़तोड़ सभाएं
  • मैं डिक्टेटर से लड़ रहा हूं: अरविंद केजरीवाल

बहरहाल मामला तो यह है कि केजरीवाल जब यह कहते हैं कि सत्ता से लड़ने के लिए सत्ता जरूरी है तो महात्मा गांधी के देश की भारतीय परम्परा का बंटाधार कर देते हैं। वह भारतीय संस्कृति और नैतिकता के मानदंडों को ठेंगा दिखाते हैं। केजरीवाल यदि खुद को बेगुनाह मानते हैं तो उन्हें सत्ता को ठोकर मार साधुगिरी का रास्ता अपनाना चाहिए था। नीति विश्व के किसी भी सत्ता के पतन के लिए संतों से टकराने को बड़ा ही तथ्यात्मक उदाहरण पाया जाता है।

अंग्रेजों की तानाशाही खत्म करने के लिए महात्मा गांधी की सन्तई ही काम आई। 1977 में इंदिरा गांधी की भी लोकतंत्र विरोधी आपातकाल से संत्रस्त नेताओं ने जयप्रकाश नारायण जैसे संत के नेतृत्व में ही कामयाबी हासिल की। यही नहीं 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता से दूर रहकर ही कांग्रेस की सीटें कम कर सके थे। केजरीवाल की आदत है कि वह तर्कों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए वितण्डा का सहारा लेते हैं।

वह जानते थे कि यदि उन्होंने पद से त्याग पत्र दिया तो निश्चित रूप से न सिर्फ उनकी सरकार गिर जाएगी, बल्कि पार्टी भी टूट जाएगी। वास्तविक कारण को झुठलाने से लोग उसे हकीकत नहीं मान लेते। तमाम ऐसे अवसर आए हैं जब खुद केजरीवाल ने दावा किया है कि वह जेल जाने से डरते नहीं, किन्तु अब विपक्ष उन पर आरोप लगा रहा है कि वह आए दिन अदालतों की परिक्रमा कर रहे हैं और बाहर जाने की पतली गली खोज रहे हैं।

केजरीवाल लड़ रहे हैं भारतीय जनता पार्टी से। उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी के हर नोटिस को भाजपा का नोटिस बताकर लेने से मना किया था, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास तो होगा ही कि भाजपा के शीर्षस्थ नेता का हवाला कांड में लिप्त होने वालों की सूची में मात्र नाम शामिल था किन्तु उन्होंने संकल्प लिया कि वह जब तक आरोप मुक्त नहीं हो जाते, वह संसद में कदम नहीं रखेंगे। यही नहीं मदनलाल खुराना जी दिल्ली के मुख्यमंत्री थे और हवाला कांड में उनका नाम भी शामिल था।

पार्टी ने उन्हें भी निर्देश दिया कि वह भी आडवाणी का अनुसरण करें। यह बात भारतीय परंपरा में सत्य साबित हो चुकी है कि जिसने भी सत्ता को ठुकराकर सिंहासन को चुनौती दी है, जीत उसी की हुई है। इसलिए केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद तत्काल छोड़ कर नैतिकता की बड़ी लकीर खींचनी चाहिए थी और वह नरेन्द्र मोदी को ललकारते।

सच मानिए देश की सारी विपक्षी पार्टियां उनके पीछे खड़ी हो जातीं और उनके प्रति लोगों की धारणा भी बदलती, किन्तु सत्ता से लिपट कर यदि वह सत्ता को चुनौती देने की सोच रहे हैं तो अपना मानना है कि इस फैसले के सही गलत निर्णय देश की जनता ही कर सकती है। शेखी बघारने का भारतीय मानस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

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