बसौली माता का अद्भुत नजारा
Basauli Devi Dham Mandir: भारत, एक ऐसा देश जहां संस्कृति और आस्था का अद्भुत मेल है। आज हम आपको ले चलेंगे एक ऐसे स्थान पर, जहां श्रद्धा और भक्ति की बयार बहती है। ये है दिव्य कुलदेवी धाम बसौली….
कहते हैं कि विज्ञान का हार मान लेना अध्यात्मिकता की शुरुआत है… और इसी का सीधा उदाहरण यहां पर देखने को मिलता है। बसौली जौनपुर जनपद का हिस्सा है और यहीं पर मां के दिव्य स्वरूप का मौजूद होना इस क्षेत्र के लोगों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है… यहां, देवी मंदिर का हर एक पत्थर, हर एक दीवार, भक्तों की आस्था और विश्वास की कहानी सुनाता है। मंदिर की भव्यता और शांति, भक्तों को एक अद्भुत अनुभव देती है। आज हम जानेंगे कि देवी मंदिर का महत्व क्या है और इसे क्यों लोग अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
विकास खंड के दक्षिणी-पश्चिमी सीमा पर बसौली गांव में स्थित माता धाम बसौली क्षेत्र ही नहीं अन्य अगल-बगल के जनपदों में श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
हालाकि कोई ऐसा सही तत्थ इस बात की ओर इशारा नहीं करता कि Basauli Devi Dham Mandir वास्तविक रूप में कब अस्तित्व में आया। फिलहाल कई कहानियां हैं…ई-रेडियो इंडिया के संवाददाता दीपक प्रेमी ने मां के दरबार में हाजिरी लगाई और बड़े कठिन परिश्रम से जगत जननी के सेवकों से खास बातचीत की… यहां पर हर भक्त की अपनी एक कहानी है। कुछ अपनी मनोकामनाओं के लिए, तो कुछ अपनी आस्था को प्रकट करने के लिए यहां आते हैं।
Basauli Devi Dham Mandir के मुख्य पुजारी पं. रमेश तिवारी के अनुसार विधायक रमेश सिंह ने मंदिर को पर्यटन स्थल में शामिल कराया है हालाकि अभी कार्य की शुरुआत नहीं हो सकी है। इस मंदिर से यहां के स्थानीय निवासियों का व्यवसाय भी जुड़ा है…. कुलदेवी बसौली माता की सेवा में मुस्लिम समाज के लोगों का रोजगार जुड़ा है…
कहते हैं कि यह गांव बिसवली के नाम से जाना जाता है जो अब अपभ्रंस स्वरूप बसौली के रूप में प्रसिद्ध हो गया है। कुल देवी मंदिर बसौली धाम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है बल्कि यह विश्वास, भक्ति और समाज का प्रतीक है। यहां आने वाले हर भक्त के दिल में देवी का एक विशेष स्थान होता है।
मंदिर कितना वर्ष पुराना है इसका इतिहास आज तक सही रूप से ज्ञात नहीं हो पाया है। बताया जाता है कि आज जिस स्थान पर मंदिर है वहां पहले जंगलनुमा जमीन खाली पड़ी थी। चरवाहे वहां मवेशियों को चराया करते थे। इसी तरह किसी ने एक बार देखा कि जमीन में कोई पत्थर उभरा हुआ है। लोगों ने खोदाई की तो मूर्ति निकली। बस फिर क्या था ग्रामीणों ने मिल-जुलकर वहीं मंदिर का निर्माण शुरु करा दिया और धीरे-धीरे वह मंदिर देवी धाम बसौली के रूप में प्रसिद्ध हो गया। माता को लेकर ग्रामीणों की श्रद्धा अनंत है।
किंवदंती है कि गांव के ही चौहरजा सिंह नामक व्यक्ति ने कई वर्ष पूर्व किसी कार्य के लिए मन्नत मांगी और उनका कार्य पूर्ण हुआ। लिहाजा उन्होंने वहां भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया। वर्तमान समय में Basauli Devi Dham Mandir पर जौनपुर के अतिरिक्त सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अंबेडकर नगर से बड़ी संख्या में भक्त यहां विवाह, मुंडन संस्कार, कड़ाही चढ़ाने आते हैं। माह के हर सोमवार व शुक्रवार को जहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है वहीं नवरात्र में नौ दिनों तक मेला लगता है।
मां वेशीवती के स्थान के रूप में प्रसिद्ध Basauli Devi Dham Mandir प्राचीन सिद्ध पीठ में से एक है। कुछ इतिहासकारों व क्षेत्र के वृद्ध बुजुर्गो द्वारा बताया जाता है की ये मंदिर करीब 1657 ई. का बना है। यहां एक नीम का वृक्ष है जो की सदियों पुराना है आज तक किसी ने भी उस वृक्ष का इतिहास नही बता पाया। मुख्य पुजारी के अनुसार इस नीम की पत्ती पतझड़ के समय में भी नहीं झड़ती है और लोग इसपर मां शीतला का वाश है।
मगर इन पाँचों मंदिरों में सबसे पुराना Basauli Devi Dham Mandir ही है जिसके बारे में आपने यहां आज पढ़ा व देखा है।
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