बुजुर्ग हमारे वजूद हैं ना कि हम पर बोझ
बुजुर्ग हमारे वजूद हैं ना कि हम पर बोझ

बुजुर्ग हमारे वजूद हैं ना कि हम पर बोझ

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  • ललित प्रधान, समाजसेवी
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bharat me bujurg ki sthiti par nibandh: आज के समाज में आप देखेंगे कि हम अपने बच्चों को हर प्रकार की सुविधा मुहैय्या कराते हैं जोकि उनके दैनिक कार्यों को सुगम बना देती है परंतु उनकी जरूरतों को पूरा करते करते हम कहीं ना कहीं अपनी एक जिम्मेदारी भूल जाते हैं या यह कहा जाए की विवशता वश हम भूल जाते हैं। आज के समाज के अनुसार हमें अपने बच्चों को जहां तक अच्छी से अच्छी शिक्षा देनी चाहिए, ठीक उसी प्रकार ही हमें उन्हें संस्कार भी देना अनिवार्य है।

यदि मैं बात करूं बीते हुए कुछ समय की तो आप देखते होंगे कि प्रत्येक परिवार एक संयुक्त परिवार में अपना जीवन यापन करते थे परंतु आज के दौर में आप संयुक्त परिवार भूल ही गए हैं, तो हमारे और आपके बच्चों को संयुक्त परिवार की अहमियत या संयुक्त परिवार से मिलने वाली शिक्षा एवं लाभों की कोई भी जानकारी नहीं है। लेकिन यह हम सभी माता-पिता ओं का कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को अपने संस्कारों अपने बड़े बुजुर्गों से अवगत कराएं।

एकल परिवार बन रहा बड़ी समस्या

बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर की दहलीज से दूर कर रहे हैं। हमारे बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी जो कहानियां सुना कर बड़ा करते थे या रात्रि के समय उन को सुलाने के लिए हमारे पूर्वजों की गाथाएं बताते थे वह सब कहीं छूट गया है। आज के समय में बच्चा दादी-नानी की कहानियों की बजाए अपने स्मार्टफोन में पब्जी जैसे गेम या अन्य और कई प्रकार के गेम खेलना उचित समझता है। परंतु इसके लिए हम अपने बच्चों को ही पूर्णता दोष नहीं दे सकते क्योंकि कहीं ना कहीं इस आदत को प्रोत्साहित करने में माता-पिता का भी सहयोग है।

स्मार्टफोन से लगाव है प्रमुख समस्या

बच्चों का स्मार्टफोन व गेम से इतना ज्यादा लगाव बढ़ गया है कि हमारे बुजुर्ग अपने ही बच्चों से या कहा जाए पोता-पोती, नाती से बातें करने को तरस गए हैं। वह घर के किसी कोने में दिन प्रतिदिन अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में इनकी मानसिक आर्थिक सामाजिक समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं लेकिन उनके लिए उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहे हैं। ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है की उन्हें एक तरफ आना रखकर उनकी सारा रिक मानसिक देखभाल करने के लिए हमें सदैव तैयार रहना चाहिए और जिन परिवारों में आप इस तरह की स्थिति देखते हैं वहां हम सभी को एकीकृत होकर बुजुर्गों की अहमियत को समझना और समझाना चाहिए।

वर्तमान में हमारे देश में जो महामारी उत्पन्न हुई है उसके फलस्वरूप हमारे देश की बुजुर्गों की जनसंख्या और स्वास्थ्य चुनौतियां उभर कर सामने आई हैं। बुजुर्गों के जीवन प्रत्याशा में वृद्धि परिवारों में निजी करण उनके दिन प्रतिदिन के रखरखाव और उम्र से संबंधित कठिनाइयों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना बुजुर्ग लोगों के जीवन की एक कठिन समस्या या चुनौती है। आर्थिक निर्भरता के कारण बुजुर्ग महिलाओं के लिए समस्या बढ़ जाती है, यदि हम बात करें ग्रामीण क्षेत्रों में जहां 70% बुजुर्ग रहते हैं आर्थिक कारणों के कारण या खराब चिकित्सा सेवाओं के कारण गंभीर स्थितियां देखने को पाई जाती हैं।

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लगभग पांच करोड़ बुजुर्ग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे

विशेष रूप से 80 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए तकरीबन 4 से 5 करोड़ बुजुर्ग जो आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के कारण बुजुर्ग लोगों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। भारत के वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत हाल के वर्षों में बढ़ती दर से बढ़ रहा है और इस प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावनाएं हैं। स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पापुलेशन 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 6% आबादी 65 वर्ष या उससे अधिक की थी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हालाकी वांछनीय है, लेकिन इससे आधुनिक दुनिया के लिए नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

बदलते परिवेश में एकल परिवार बनाना हम अपना स्टैंडर्ड मानते हैं परंतु यदि हम अपना स्टैंडर्ड बना सकते हैं तो हमें यह भी ध्यान रखना अति आवश्यक है की उस स्टैंडर्ड को मेंटेन करते करते कहीं हम अपने बुजुर्गों से अपने बच्चों को या अपने बच्चों से अपने बुजुर्गों की सोच को दूर ना करें। समय-समय पर हमें अपने बच्चों को अपने बुजुर्गों के साथ समय व्यतीत करने के लिए छोड़ना चाहिए, जिससे हमारे बच्चे हमारे बड़े बुजुर्गों के संस्कारों को ग्रहण करेंगे और हमारे बुजुर्ग अकेलेपन से दूर रहेंगे तथा दोनों में विचारों का आदान-प्रदान होगा और इसी से हमारे उत्तम समाज का निर्माण भी होगा।

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बुजुर्गों की अहमियत समझें वरना पछताना पड़ेगा

यदि हमें अपने बच्चों को भविष्य के लिए संस्कार पूर्ण तरीके से तैयार रखना है तो हमें अपने बुजुर्गों को भी उतनी ही अहमियत देनी होगी, जितना कि हम अपने बच्चों की जरूरतों को देते हैं यहां यदि मैं कहूं कि आज की भाग दौड़ में माता-पिता दोनों ही अपनी अपनी नौकरियों में या आय के साधनों को खोजने में लगे रहते हैं जिसके फलस्वरूप हमारा बच्चा परिवार से दूर होता जा रहा है।

यदि आज हम अपने बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भली-भांति निर्वहन नहीं करेंगे तो यह याद रखिएगा कि कल हमारे बच्चे भी हमारी जिम्मेदारी उठाने में कतरायेंगे।क्योंकि बच्चे वही सीखते हैं जो वह अपने घर में देखते हैं। इसीलिए कहा भी गया है कि परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है तो दोस्तों मैं आप सभी से यह निवेदन करना चाहूंगा कि जो जिम्मेदारी आपकी अपने बुजुर्गों के प्रति बनती है उसे भली-भांति पूर्ण करें ताकि आप अपने बच्चों की सोच में और सामाजिक परवरिश में एक अच्छा बदलाव ला सकें।

यदि आप अपना भविष्य सुधारना चाहते हैं अथवा वृद्धावस्था में अपने परिवार अपने बच्चों के बीच में जीवन यापन करना चाहते हैं तो यही सही समय है कि आप अपने बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन करें।

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Pratima Shukla

प्रतिमा शुक्ला डिजिटल पत्रकार हैं, पत्रकारिता में पीजी के साथ दो वर्षों का अनुभव है। पूर्व में लखनऊ से दैनिक समाचारपत्र में कार्य कर चुकी हैं। अब ई-रेडियो इंडिया में बतौर कंटेंट राइटर कार्य कर रहीं हैं।

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