Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi: दलित मसीहा एवं क्रांतिकारी महामानव

Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi: दलित मसीहा एवं क्रांतिकारी महामानव

Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi: दुुनिया-जहान और विशेषतः भारत की परिस्थितियों को एक संतुलित, भेदभावरहित एवं समतामूलक समाज की निगाह से देखने एवं दलित जाति के साथ जुड़े सामाजिक और आर्थिक भेदभावों को समाप्त करने के लम्बे संघर्ष के लिये पहचाने जाने वाले डॉ. भीमराव आम्बेडकर इसी अप्रैल महीने में जन्मे थे।

मानव जाति के इतिहास में कभी कोई ऐसा युग नहीं गुजरा, जब किसी ने अपने तर्क, कर्म एवं बुद्धि के बल पर तत्कालीन रूढ़िवादी मान्यताओं, जातीय भेदभाव एवं ऊंचनीच की धारणाओं पर कड़ा प्रहार न किया हो। मनुष्य सदैव सत्य की तलाश में निरन्तर प्रयासरत रहा है और ऐसे ही समस्त जातिगत भेदभाव एवं असामनता पर प्रहार करने एवं उनको नेतृत्व देने के लिये डाॅ. आम्बेडकर को याद करना एक आदर्श एवं संतुलित समाज निर्माण के संकल्प को बल देना है।

BR Ambedkar ने समाज को सुधारने की दिशा में किया सराहनीय प्रयास

बाबा साहेब के नाम से दुनियाभर में लोकप्रिय डॉ. भीमराव आम्बेडकर समाज सुधारक, दलित राजनेता, महामनीषी, क्रांतिकारी योद्धा, लोकनायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व होने के साथ ही विश्व स्तर के विधिवेत्ता व भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे।

डॉ. आंबेडकर विलक्षण एवं अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे, उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण-कामना, संतुलित समाज रचना में उत्सर्ग कर दिया।

खासकर भारत के अस्सी प्रतिशत दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन संकल्प था। वे भारतीय राजनीति की एक धुरी की तरह थे, जो आज दुनियाभर के लिये एक अत्यंत महत्वपूर्ण दलित मसीहा एवं संतुलित समाज संरचना के प्रेरक महामानव है।

डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक गरीब अस्पृश्य परिवार में हुआ था। भीमराव आम्बेडकर रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं सन्तान थे। वे हिंदू महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे। उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको अपना बचपन कष्टों में बिताना पड़ा। संघर्ष एवं कष्टों की आग में तपकर उन्होंने न केवल स्वयं का विकास किया वरन भारत के समग्र विकास का वातावरण निर्मित किया। वे नई मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रेरक एवं पोषक थे।

वे हमारे युग के महानतम नायक थे, उनके क्रियाकलापों में किंचित मात्र भी स्वार्थ नहीं था। बहु-भाषाविद्, धर्म दर्शन के विद्वान और समाज सुधारक बाबा साहेब ने भारत में अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।

भारत के लोग कभी इतने भयंकर दौर से नहीं गुजरे, जैसे वे स्वतंत्रता संग्राम के समय गुजरे। वे अपने आपको नितांत बेबस, असहाय और आस्था विहीन महसूस कर रहे थे। गुलामी की मानसिकता एवं पहले से चली आ रही जातीय भेदभाव एवं ऊंचनीच की विभीषिकाओं ने उनकी मानसिकता कुंठित कर दी और वे अपने आपको दिशाविहीन समझ रहे थे, ऐसे दौर में डाॅ. आम्बेडकर एक रोशनी बन कर प्रकट हुए।

Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi: दलित मसीहा एवं क्रांतिकारी महामानव
Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi: दलित मसीहा एवं क्रांतिकारी महामानव

उनके नेतृत्व में धन सम्पन्न एवं ऊंची जाति के लोगों द्वारा बड़ी क्रूरता से अपने पैरों तले रौंदा हुआ दलित एवं मजदूर वर्ग समूचे भारत में संगठित होकर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा। वह चाहते थे कि अछूत लोग ग्रामीण समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन से मुक्त हों। वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्राप्त करें और एक नया व्यवसाय शुरू करें तथा औद्योगीकरण का लाभ उठाने के लिये शहरों की ओर रुख करें। वह चाहते थे कि अछूत खुद को राजनीतिक रूप से संगठित करें।

Biography of Dr Bhimrao Ambedkar in Hindi

राजनीतिक शक्ति के साथ अछूत अपनी रक्षा, सुरक्षा और मुक्ति संबंधी नीतियों को पेश करने में सक्षम होंगे। सन्ा 1927 में डॉ. अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आन्दोलनों और जुलूसों के द्वारा पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया।

बाबा साहब वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं।

भीमराव आंबेडकर की मेधा एवं प्रतिभा के कारण बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर 1913 में विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया। उन्होंने अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन किया।

वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए। डॉ. आंबेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में ‘भारतीय जाति विभाजन’ पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई।

न्याय के विषय में क्या सोचते थे डॉ. अम्बेडकर

उनका मानना था कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को हल किया जाना चाहिये। यह विचार कि आर्थिक प्रगति सामाजिक न्याय को जन्म देगी, यह जातिवाद के रूप में हिंदुओं की मानसिक गुलामी की अभिव्यक्ति है। इसलिये सामाजिक सुधार के लिये जातिवाद को समाप्त करना आवश्यक है।
डाॅ. आम्बेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।

अपनी आर्थिक जरूरतों के लिये जीवन के आरम्भिक भाग में वे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की। उनके भीतर अंगडाई ले रहे राष्ट्रीय व्यक्तित्व ने उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय कर दिया और तब आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं को न केवल प्रकाशित किया, वरन् उनमें क्रांतिकारी लेखनी से समाज को झकझोरा, राजनीतिक अधिकारों और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1956 में अपना लिया बौद्ध धर्म

डाॅ. आम्बेडकर धार्मिक विचारों के व्यक्तित्व थे, सन्ा 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। डॉ. अम्बेडकर की बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 में लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। 1936 में उन्होंने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतने में सफल रही।

उन्होंने अपनी पुस्तक ‘जाति के विनाश’ भी 1937 में प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस लोकप्रिय पुस्तक में अम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की थी। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लोगों को गांधीजी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की भी कड़ी निंदा की थी। वे सच्चे अर्थों मंे एक महान क्रांतिकारी युगपुरुष थे, जिनके जीवन का सार है कि क्रांति लोगों के लिये होती है, न कि लोग क्रांति के लिये होते हैं।

देश के पहले कानून मंत्री बने थे बाबा साहेब अम्बेडकर

जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डाॅ. आम्बेडकर को देश का पहला कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को डॉ. आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. आम्बेडकर ने मसौदा तैयार करने के काम में सभी की प्रशंसा अर्जित की।

26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद डाॅ. आम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। डाॅ. आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे।

बाबासाहेब अंबेडकर के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक नैतिकता का अर्थ विभिन्न लोगों के परस्पर विरोधी हितों और प्रशासनिक सहयोग के बीच प्रभावी समन्वय करना था। उनके अनुसार, भारत को जहाँ समाज में जाति, धर्म, भाषा और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है, एक सामान्य नैतिक विस्तार की आवश्यकता है तथा संविधान उस विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। डाॅ. आंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु दिल्ली में नींद के दौरान उनके घर में हो गई।

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