झांसी। यूं तो बालश्रम निषेध दिवस पर बच्चों को बचाने ,उन्हें खतरनाक और गैर खतरनाक कार्यों से बचाने के बड़े बडे वादे इरादे करते लोग नजर आते हैं लेकिन इस दिन के गुजर जाने के बाद न तो लोगों को फिर ऐसे बच्चों की याद आती है और न ही कामगार बच्चों के जीवन पर एक दिन के इस विलाप का कोई असर नजर आता है । ऐसे बच्चे अगले दिन से ही थैला या झोला कंधे पर डालकर, डलिया आदि लेकर निकल पड़ते हैं फिर दो जून की रोटी कमाने।
इन बच्चों के हालात कहीं नहीं बदलते फिर चाहे शहर छोटा हो या महानगर या फिर कोई स्मार्ट सिटी। वीरांगना नगरी झांसी को स्मार्ट सिटी घोषित हुए भी चार से पांच साल का समय बीत चुका है लेकिन स्मार्ट सिटी के विभिन्न चौराहों और तंग गलियों में कबाड़ ढोते, बोरियां ढोते तथा कूड़ा बीनते या भीख मांगते बच्चे यूं ही नजर आ जाते हैं। ऐसे ही कुछ बच्चों ने यूनीवार्ता से खास बातचीत में बताया कि उनके माता पिता तो काम करते ही हैं लेकिन दो जूून की रोटी के लिए उन्हें भी काम के लिए निकलना पड़ता है।
ऐसे बच्चों के जीवन की व्यवस्था आज तक नहीं हो पायी है। छोटे मोटे काम के लिए जुगाड़ में दिन भर चिलचिलाती धूप में सड़क किनारे घूमते बच्चे यूं ही दिखायी देते हैं। ऐसे बच्चों पर पेट की भूख शांत करने के लिए कमाने की इतनी बड़ी जिम्मेदारी रहती है कि पढ़ाई तो दूर पढ़ाई की बात से भी वह कन्नी काटते नजर आते हैं। इन्हें न अपने जीवन की चिंता है और न ही अपने शरीर की। एक ओर जहां स्वच्छता और सामाजिक दूरी की बात इतनी जोर शोर से चल रही है लेकिन इन पर ये नियम कानून लागू होते दिखाई ही नहीं देते।
ऐसा नहीं है कि प्रशासन इनके लिए प्रयास नहीं करता,लेकिन वे नाकाफी होते हैं। एक एनजीओ के अनुसार महानगर में आईटीआई,बिजौली,गोविन्द चैराहा समेत कई ऐसे स्थान हैं जहां लोग झुग्गी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इन्हीं के बच्चे कुछ कबाड़ तो कुछ अन्य प्रकार के कार्य करते हुए जीवन यापन के लिए प्रयासरत रहते हैं। इनमें अधिकांश को कबाड़ ढोते हुए देखा जा सकता है। इस संबंध में चाइल्ड लाइन के एक कार्यकर्ता ने बताया कि जीवन शाह,सैंयर गेट,गोविन्द चैराहा आदि स्थानों से चाइल्ड लाइन ने कई बार रैस्क्यू करते हुए कई बच्चों को बरामद भी किया साथ ही श्रम विभाग द्वारा ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी की गई।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ की 10 जून को जारी की गयी एक नयी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में बाल मजदूरी में बच्चों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गयी है जो दो दशक में पहली बार बढ़ी है और कोविड-19 की वजह से अभी लाखों और बच्चे बाल मजदूरी के जोखिम में हैं। रिपोर्ट ‘चाइल्ड लेबर ग्लोबल एस्टीमेट्स 2020, ट्रेंड्स एंड रोड फॉरवर्ड’ विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से ठीक दो दिन पहले जारी की गयी। इसमें कहा गया है कि बाल मजदूरी को रोकने की दिशा में प्रगति 20 साल में पहली बार अवरुद्ध हुई है जबकि 2000 से 2016 के बीच बाल श्रम में बच्चों की संख्या 9.4 करोड़ कम हुई थी।
रिपोर्ट में बाल मजदूरी में 5 से 11 साल उम्र के बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी की ओर इशारा किया गया है जो पूरी दुनिया में कुल बाल मजदूरों की संख्या की आधे से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘दुनियाभर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गयी है। इसमें पिछले चार साल में 84 लाख की वृद्धि हुई है। कोविड-19 के प्रभाव के कारण लाखों और बच्चे बाल श्रम की ओर आने के जोखिम में हैं। बालश्रम पर नजर रखने वाली इन संस्थाओं के यह आंकडे चौंकाने से ज्यादा डराने वाले हैं।
ऐसी स्थितियों में बहुत जरूरी हो गया है कि इन बच्चों के पुर्नवास के लिए गंभीर प्रयास किये जाएं ताकि इनके जीवन में बदलाव लाया जा सके।इस सम्बंध में जिलाश्रम उपायुक्त नदीम से बात किये जाने पर उन्होंने बताया कि बाल श्रम खास तौर दो वर्गों में देखने को मिलता है। खतरनाक उद्योगों व गैर खतरनाक उद्योगों में। खतरनाक उद्योंगों में नाबालिग बच्चों का पता चलने पर उनकी शिक्षा का इंतजाम किया जाता है। शिक्षा विभाग को ऐसे बच्चों के नामों की सूची दे दी जाती है।
शिक्षा विभाग उन्हें वे सारी सुविधाएं देता है,जो शिक्षा के इतर अन्य बच्चों को मुहैया कराई जाती है। ऐसे बच्चों के मां बाप को श्रम विभाग के तहत चल रही योजनाओं में शामिल कर लाभ दिलाया जाता है। यदि ये लोग इस वर्ग में नहीं शामिल किए जा सकते हैं तो उनको उद्योग विभाग डूडा से जोड़कर रोजगार मुहैया कराने का प्रयास किया जाता है। हालांकि वह जिले में ऐसे बच्चों की संख्या नहीं बता सके।