Dara Shikoh History in Hindi: पुरातत्वविदों की समिति ने खोज निकाली दारा शिकोह की कब्र

Dara Shikoh History in Hindi: पुरातत्वविदों की समिति ने खोज निकाली दारा शिकोह की कब्र

© मुराद और डानियाल की कब्र के साथ वाली कब्र पर लगाई मुहर
© जनवरी 2020 में हुमायूं के मकबरे में दफन दारा की कब्र को ढूंढ़ने के लिए बनाई गयी थी कमेटी

Dara Shikoh History in Hindi: हुमायूं के मकबरे में दफन दारा शिकोह की कब्र पुरातत्वविदों की समिति ने खोज निकाली है। मुराद और डानियाल की कब्र के साथ वाली कब्र पर मुहर लगाई गयी है। हालांकि, समिति के सदस्य जमाल हसन इस दावे को ठीक नहीं मान रहे हैं, लेकिन बहुमत के आधार पर कब्र ढूंढ लेने की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजने का फैसला लिया गया है। गौरतलब है कि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने जनवरी 2020 में हुमायूं के मकबरे में दफन दारा शिकोह की कब्र ढूंढ़ने के लिए कमेटी बनाई थी।

इस कमेटी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से संबंधित पूर्व अधिकारी व देश के बड़े पुरातत्वविद् शामिल हैं। 1659 में दारा शिकोह की हत्या उनके भाई औरंगजेब ने करवा दी थी। इसके बाद से ही दारा शिकोह की कब्र को लेकर तरह-तरह के दावे किए जाते रहे हैं। इस पहेली को सुलझाने के लिए भारत सरकार की तरफ से समिति का गठन किया गया था।

बता दे कि भारत में मुगल शासन के शुरूआती दिनों से शासकों ने हिंदू धर्म को समझने की कोशिश शुरू कर दी थीं। अकबर के समय में तेजी आई, उसने अनुवादकों का दल बनाकर धर्म ग्रंथों का अनुवाद संस्कृत से फारसी में कराना शुरू किया। अकबर के समय शुरू की गई इस कवायद को तेजी मिली दारा शिकोह के समय में।

अकबर के लिए धर्मग्रंथों का अनुवाद करना या स्थानीय राजाओं के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना राजनीति का भी एक हिस्सा था। उसके प्रयासों में धार्मिक सहिष्णुता के साथ अपने राज्य को बनाए रखने की महात्वाकांक्षा भी शामिल थी, लेकिन दारा शिकोह (Dara Shikoh History in Hindi) के लिए दूसरे धर्मों की आस्था के बारे में जानकारी हासिल करना राजनीति से प्रेरित नहीं था। इसमें किसी राज्य विस्तार या राज्य संभालने जैसी कोई कवायद शामिल नहीं थी।

भारतीय दर्शन को जानता था दारा शिकोह (Dara Shikoh History in Hindi)

अकबर के प्रधानमंत्री अबुल फजल आइने अकबरी में लिखते हैं कि हिंदू धर्मग्रंथों के अनुवाद की शुरूआत इसलिए कराई गई थी, जिससे उनके खिलाफ बना बैर और द्वेष का माहौल हल्का हो सके। दोनों समुदायों के बीच बैर और वैमनस्यता को समाप्त किया जा सके। राजा अकबर का मानना था कि हिंदू-मुसलमानों में बैर की असली वजह एक-दूसरे की आस्थाओं के प्रति अनभिज्ञता है और शायद यही वजह थी कि उसने अनुवाद के लिए महाभारत को सबसे पहले चुना।

दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद अकबर ने स्थानीय राजाओं को तो युद्ध के मैदान में मात दे दी थी लेकिन, बाद में उसने डिप्लोमेसी और शादियों का सहारा लेकर संबंध बेहतर बनाने की शुरूआत की। उसने भारत के लोगों के बीच संबंध बेहतर करने की सारी कोशिशें जारी रखीं। अकबर के बाद दारा शिकोह ने सभी धर्मों के ज्ञानीजनों को इकट्ठा किया था। हिंदू धर्म के गहरे अध्ययन के बाद दारा शिकोह खुद यह मानने लगा था कि कुछ छोटे-मोटे अंतर छोड़कर हिंदू-मुस्लिम धर्म में कोई फर्क नहीं है। दारा शिकोह विद्वान था। वो भारतीय उपनिषद और भारतीय दर्शन की अच्छी जानकारी रखता था।

इतिहासकार बताते हैं कि वो विनम्र और उदार ह्दय का था। कहा जाता है कि दारा शिकोह के पिता ने समझ लिया था कि उसके बेटे ने हिंदुस्तान को जान लिया है और वो शासन चलाने के लिए बेहतर साबित होगा लेकिन, औरंगजेब ने बवाल खड़ा किया। औरंगजेब को लगा कि अगर दारा शिकोह सफल रहता है तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा।

उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करना सबसे बड़ा योगदान

दारा शिकोह (Dara Shikoh History in Hindi) इस बात को लेकर भी आश्चर्यचकित होता था कि सभी धर्मों के विद्वान अपनी व्याख्याओं में उलझे रहते हैं और ये कभी समझ नहीं पाते कि इन सभी का मूल तत्व तो एक ही है, उसका मानना था कि एक ज्ञान के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि उस व्यक्ति को सत्य की तलाश होनी चाहिए। उसने हिंदू और मुस्लिम धर्मों के एक साथ होने को मजमा उल बहरीन (दो समुंद्रों का मिलना) नाम दिया था।

दारा के सबसे बड़े योगदानों में उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करना माना जाता है। इन अनुवादित किताबों को उसने सिर्रेअकबर यानी महान रहस्य का नाम दिया था। फारसी भाषा में अनुवाद कराए जाने का मुख्य कारण ये था कि फारसी मुगलिया कोर्ट में इस्तेमाल की जाती थी। हिंदुओं का भी विद्वान वर्ग इस भाषा के साथ बखूबी परिचित था।

निगम अभियंता संजीव कुमार ने पहले ही खोज निकाली थी कब्र

पुरातत्वविदों की समिति ने दारा शिकोह (Dara Shikoh History in Hindi) की कब्र पर अंतिम मुहर भी लगा दी है। कब्र का निरीक्षण करने पहुंची समिति के अधिकतर सदस्यों ने उसी कब्र को दारा की कब्र माना है, जिसे निगम अभियंता संजीव कुमार सिंह दारा की कब्र बता रहे थे। समिति के सदस्य जमाल हसन इस दावे को ठीक नहीं मान रहे हैं, लेकिन बहुमत के आधार पर कब्र ढूंढ लेने की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजने का फैसला लिया गया है। निरीक्षण करने के बाद भी समिति इसी निष्कर्ष पर पहुंची है कि मुराद और डानियाल की कब्र के साथ वाली कब्र दारा (Dara Shikoh History in Hindi) की है। इससे इंकार करने का कोई कारण नहीं है। समिति इस बारे में पहले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को रिपोर्ट सौंप चुकी है।

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