नई तकनीक के साथ रोजगार संरक्षण

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तमाम वैश्विक आकलनों के अनुसार भारत विश्व की सबसे तेज आर्थिक विकास हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है। वैश्विक सलाहकारी संस्था प्राइस वाटरहाउस कूपर्स ने कहा है कि साल 2050 में भारत चीन के बाद विश्व की नंबर 2 अर्थव्यवस्था बन सकता है यदि आर्थिक सुधारों को लागू किया जाए। सामान्य रूप से वैश्विक संस्थाओं का दबाव रहता है कि जीएसटी, बुनियादी संरचना, पूंजी के मुक्त आवागमन और मुक्त व्यापार जैसे सुधारों को लागू किया जाए। गौर करने वाली बात यह है कि इन्हीं सुधारों को लागू करने के बावजूद हमारी आर्थिक विकास दर पिछले छह वर्षों में लगातार गिर रही है। इसलिए इतना सही है कि हमें आर्थिक नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा। लेकिन यह सही नहीं कि इन्हीं आर्थिक सुधारों के सहारे हम आगे बढ़ सकेंगे। यहां विश्व की सबसे तेज बढऩे वाली अर्थव्यवस्था और आर्थिक विकास दर में गिरावट के विरोधाभास से भ्रमित नहीं होना चाहिए चूंकि हमारी कथित तेज विकास दर अंधों में काना राजा जैसी है।
सत्य यह है कि हमारी आर्थिक विकास दर में गिरावट केवल आर्थिक नीतियों के बल पर नहीं संभल सकती है। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती नई तकनीकों से सामंजस्य बैठाने की है। सेंट स्टीफेंस यूनिवर्सिटी कनाडा के प्रोफेसर मैथ्यू जानसन ने कहा है कि साल 2035 तक 50 प्रतिशत रोजगार का हनन हो जाएगा क्योंकि ये कार्य रोबोट द्वारा किये जायेंगे। भारत के लिए यह परिस्थिति विशेषकर दुरूह है क्योंकि बड़ी संख्या में युवा हमारे श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। यदि इन्हें आय अर्जित करने के समुचित अवसर नहीं मिलेंगे तो ये कुंठित होंगे और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होंगे। औरंगाबाद महाराष्ट्र के एक प्रोफेसर ने बताया कि उनके एमए की डिग्री हासिल किये हुए छात्र एटीएम तोडऩे जैसी आपराधिक घटनाओं में लिप्त हो रहे हैं क्योंकि उनके पास रोजगार नहीं हैं। दूसरी तरफ, केरल में एक रेस्तरां में एक रोबोट द्वारा भोजन परोसा जा रहा है और हमारी अपनी मेट्रो में भी बिना ड्राइवर की ट्रेन को चलाया गया है। इसलिए दो परस्पर विरोधी चाल हमारे सामने हैं। एक तरफ नई तकनीकों के उपयोग से रोजगार का हनन हो रहा है तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं।
इस समस्या को और गंभीर बनाया है हमारी उन नीतियों ने, जिनमें छोटे उद्यमियों को बड़े उद्यमों से सीधे प्रतिस्पर्धा में खड़े होने के लिए कहा गया है। बड़े उद्योगों की उत्पादन लागत कम आती है। जैसे दवा का उत्पादन करने वाली बड़ी कम्पनी कच्चे माल को चीन से आयात करेगी, कंटेनर को ब्राजील से लाएगी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जर्मनी से आयात करेगी। इनके पास अच्छी गुणवत्ता के इंजीनियर होंगे। बड़े पैमाने पर भी उत्पादन करने से लागत कम आती है, जैसे घानी से तेल निकालने में लागत ज्यादा आती है जबकि एक्सपेलर में लागत कम आती है। इसलिए बड़े उद्योगों को बढ़ावा देकर हम सस्ते माल का उत्पादन अवश्य कर रहे हैं लेकिन इसमें रोजगार का हनन हो रहा है। हमारे सामने ही नहीं बल्कि विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि हम युवाओं को इस बदलते तकनीकी परिदृष्य में रोजगार उपलब्ध करायें।
अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारी कम्पनी आर्थर डी लिटिल और बैंक ऑफ अमेरिका ने कहा है कि स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन और छोटे उद्योगों को सहायता देनी चाहिए। लेकिन प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं होगा। कारण यह कि छोटे उद्यमी की उत्पादन लागत ज्यादा आयेगी ही। इन्हें कच्चा माल थोड़ी मात्रा में स्थानीय सप्लायर से खरीदना पड़ता है, तुलना में घटिया गुणवत्ता के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगाने पड़ते हैं, और एक ही व्यक्ति को उत्पादन, बैंक, खाता, श्रमिक, आदि सब काम देखने पड़ते हैं। इन सभी कार्यों में इनकी कुशलता बड़ी कम्पनियों की तुलना में न्यून होती है। इस समस्या का समाधान भारत सरकार द्वारा छोटे उद्योगों के क्लस्टर बनाकर हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। मनमोहन सिंह सरकार के समय एक कमेटी ने कहा था कि छोटे उद्योगों का विशेष स्थानों पर एक झुंड बना दिया जाए जैसे मुरादाबाद में पीतल के सामान का और लुधियाना में होजरी का तो ये बड़े उद्योगों का सामना करने में सक्षम हो सकते हैं। इनके कई कार्य सामूहिक स्तर पर किये जा सकते हैं जैसे कच्चे माल की गुणवत्ता की टेस्टिंग करना अथवा प्रदूषण नियन्त्रण के उपकरण सामूहिक रूप से स्थापित करना इत्यादि। लेकिन इस नीति के बावजूद अपने देश में छोटे उद्योग पिट रहे हैं और रोजगार की समस्या गहराती जा रही है। इसलिए केवल समर्थन की हवाई बातों को करने के स्थान पर हमें समझना होगा कि छोटे उद्योगों को यदि जीवित रखना है तो उन्हें वित्तीय सहायता देनी ही पड़ेगी।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि छोटे उद्योगों द्वारा बनाये गये माल की लागत अधिक होगी। जैसे बड़े उद्योग में बनाई गयी टीशर्ट 200 रुपये में उपलब्ध हो

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Shivani Mangwani

Shivani Mangwani is working as content writer and anchor of eradioindia. She is two year experienced and working for digital journalism.

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