रंग और उल्लास का पर्व होली बुधवार को है। रंगोत्सव यानी धुरड्डी गुरुवार को होगी। काफी समय बाद दोनों ही दिन मातंग योग बन रहा है। भद्रा के अधिक समय रहने के कारण इस बार होलिका दहन बुधवार की रात्रि नौ बजे के बाद हो सकेगा। सात साल बाद बृहस्पति के उच्च प्रभाव में दुल्हैंडी यानी रंगोत्सव होगा।
होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है। किसी अन्य पर्व की पूजा अगर उपयुक्त समय पर न की जाए तो केवल पूजा के लाभ से वंचित होना पड़ेगा। वैदिक काल में इस पर्व को नवान्नेष्टि कहा गया। इसमें अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है।
होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है। किसी अन्य पर्व की पूजा अगर उपयुक्त समय पर न की जाए तो केवल पूजा के लाभ से वंचित होना पड़ेगा। वैदिक काल में इस पर्व को नवान्नेष्टि कहा गया। इसमें अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है।
होलिका की पवित्र आग में लोग जौ की बाल, सरसों की उबटन, गुझिया, फल, मीठा, गुलाल से होली का पूजन करते हैं। राग और रंग होली के दो प्रमुख अंग हैं।
सातों रंगों के अलावा, सात सुरों की झंकार इसका उल्लास बढ़ाती है। गीत, फाग, होरी, धमार, रसिया, कबीर, जोगिरा, ध्रुपद, छोटे’बड़े ख्यालवाली ठुमरी होली की पहचान है।
होलिका दहन
रात्रि: 8:58 बजे से 12:13 बजे तक।
भद्रा पूंछ:
- शाम 5:24 से 6:25 बजे तक।
- भद्रा मुख:
- शाम 6:25से रात 8:07बजे तक।
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