कैसे स्पर्म को बनायें अच्छी क्वालिटी में, जानें यहां

यदि आप अपने जीवन साथी से मिलकर परिवार बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिये सबसे जरूरी है पुरूष में बनने वाले स्पर्म (शुक्राणु) संख्या में ज्यादा और उम्दा क्वालिटी के हों। आम मेडिकल लैंग्वेज में स्पर्म को स्वीमर्स भी कहते हैं। हालांकि महिला की ओवरी में बने अंडे को फर्टिलाइज (निषेचित) करने के लिये केवल एक शुक्राणु की जरूरत होती है लेकिन अंडे तक पहुंचने के लिये शुक्राणुओं को एक लम्बी व कठिन यात्रा करनी होती है जिसमें सफल होने के लिये ज्यादा से ज्यादा अच्छी किस्म के शुक्राणु होने जरूरी हैं। ज्यादा स्पर्म यानी प्रेगनेन्सी की अधिक सम्भावना।

पुरूष में स्वीमर्स अर्थात शुक्राणुंओं की कमी लो स्पर्म काउंट कहलाती है। इसकी वजह से अनेक पुरूष पिता नहीं बन पाते और उनके पार्टनर को गर्भधारण के लिये आईवीएफ जैसी तकनीकों का सहारा लेना पड़ता है। हमारे समाज में लो स्पर्म काउंट को नपुंसकता समझा जाता है और लोग शर्म की वजह से डाक्टर के पास इलाज के लिये जाने से घबराते हैं। जबकि असलियत यह है कि आज के समय में यह समस्या इलाज से ठीक हो जाती है और कुछ मामलों में तो घरेलू इलाज और लाइफ स्टाइल बदलने मात्र से ही। इस सम्बन्ध में सत्य जानने के लिये मैंने मिनीसोटा यूनीवर्सटी (अमेरिका) की एएएसईसीटी सर्टीफाइड सेक्स थ्रेपिस्ट व मेडिकल एडवाइजर डा. जेनेट ब्रिटो से सम्पर्क किया तो उनसे यह सटीक जानकारी प्राप्त हुई-

क्या है लो स्पर्म काउंट?

लो स्पर्म काउंट अर्थात पुरूषों में शुक्राणु उत्पादन में कमी मेडिकल भाषा में ओलिगोस्पर्मिया कहलाती है, इसे पुरुष बांझपन का मुख्य कारण माना गया है। जब एक मिलीलीटर वीर्य (सीमन) में शुक्राणुओं की संख्या 15 मिलियन अर्थात 150 लाख से कम हो तो इसे लो स्पर्म काउंट की श्रेणी में मानते हैं। एक स्वस्थ पुरूष के एक मिलीलीटर वीर्य (सीमन) में शुक्राणुओं की औसत संख्या 75 मिलियन अर्थात 750 लाख होनी चाहिये।

क्या लक्षण होते हैं?

लो स्पर्म काउंट का पता तभी चलता है जब आप अपनी फैमिली बढ़ाना चाहते हैं। इसका मुख्य लक्षण इनफर्टिलिटी या बांझपन है। यदि ओलिगोस्पर्मिया का कारण हारमोन असुंतलन, क्रोमोसोमल असमान्यता, टेस्टीकुलर समस्या या ब्लॉकेज है तो आप इन कंडीशन्स के अनुसार ही लक्षण महसूस करेंगे जैसेकि-

किन्हें खतरा लो स्पर्म काउंट का?

मोटे और ओवरवेट लोगों में ओलिगोस्पर्मिया का रिस्क अधिक होता है। यदि कभी किसी व्यक्ति के टेस्टिकल्स या आसपास के क्षेत्र में सर्जरी (जैसेकि हाइड्रोसील) हुई हो तो उसे भी लो स्पर्म काउंट का रिस्क होता है। कुछ मामलों में किसी खास मेडीकेशन की वजह से भी यह समस्या पैदा हो जाती है। एक शोध से पता चला है कि यदि टेस्टिकल्स (अंडकोष) तेज हीट में ज्यादा देर तक एक्सपोज हो तो ऐसे व्यक्ति में ओलिगोस्पर्मिया का रिस्क बढ़ जाता है। समस्या को सरलता से समझा जा सके इसके लिये ओलिगोस्पर्मिया के कारणों को तीन कैटागरी में रखा गया है-

मेडीकल: टेस्टीकुलर सिम्पटम का इतिहास, चोट, सर्जरी या जेनेटिक कंडीशन जैसेकि क्लाइफेल्टर सिंड्रोम से लो स्पर्म काउंट के चांस बढ़ जाते हैं।

कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी, रेडियेशन और सर्जरी से शरीर में स्पर्म उत्पादन को बढ़ावा देने वाले हारमोन बनना कम होने से स्पर्म काउंट घट जाता है।

टेस्टीकल्स (अंडकोष) यदि रेडियेशन से एक्सपोज हों तो इनके स्पर्म बनाने वाले सेल्स नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त ब्रेन ट्यूमर का इलाज यदि रेडियेशन या सर्जरी से हुआ है तो इससे भी ब्रेन को स्पर्म पैदा करने के लिये प्रेरित करने वाले हारमोन्स बनना कम होने से व्यक्ति लो स्पर्म काउंट का शिकार हो जाता है। इनके अलावा इन सम्भावित कारणों से भी ऐसा होता है-

इन्वॉयरमेन्टल: आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे आसपास का तापमान भी स्पर्म हेल्थ को प्रभावित करता है। यही कारण है कि ईश्वर ने हमारे टेस्टीकल्स शरीर के अंदर किसी कैविटी में न रखकर शरीर के बाहर बनाये हैं जिससे इनका तापमान ठीक रहे और स्पर्म को नुकसान न पहुंचे। इस सम्बन्ध में की गयी रिसर्च में सामने आया है कि जो लोग गुनगुने या गर्म पानी के टब में देर तक (घंटों) बैठकर स्नान करते हैं उनका स्पर्म काउंट घट जाता है। अन्य इन्वॉयरमेन्टल कारणों में हर्बीसाइड्स, पेस्टीसाइड्स, इंडस्ट्रियल कैमिकल और भारी धातुओं से एक्सपोजर इस समस्या को कई गुना कर देता है। एक्सरे या अन्य रेडियेशन वाले माहौल में ज्यादा समय व्यतीत करने से भी स्पर्म काउंट घटता है।

लाइफस्टाइल: धूम्रपान, एल्कोहल और ड्रग्स के सेवन से स्पर्म काउंट घटता है। इसके अलावा जो लोग मस्कुलर दिखने के लिये एनाबोलिक स्टिरॉइड्स लेते हैं उनके टेस्टीकल सिकुड़ने से स्पर्म बनना कम हो जाता है। मैरीजुआना (गांजा) और अफीम से बने नशीले पदार्थों का सेवन स्पर्म काउंट घटाता है।

अन्य सम्भावित कारणों में टेस्टोस्टेरॉन बूस्टर, विटामिन्स और प्रि-वर्कआउट सप्लीमेंट में न्यूनतम मात्रा में एनाबोलिक स्टीरॉइड्स मिले होते हैं, जिससे स्पर्म प्रोडक्शन की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।

ऐसे काम जिनमें घंटो लगातार बैठना हो जैसेकि ट्रक या बस ड्राइविंग से भी स्पर्म बनना कम होता है। भावनात्मक इश्यू (लम्बे समय तक डिप्रेशन) भी शरीर में स्पर्म प्रोडक्शन की प्रक्रिया को प्रेरित करने वाले हारमोन्स का उत्पादन कम कर देते हैं जिससे स्पर्म प्रोडक्शन घट जाता है। कुछ लोगों को यह भ्रम है कि मास्टरबेशन (हस्तमैथुन) से स्पर्म काउंट घटता है लेकिन यह गलत है, आप रोजाना एक बार हस्तमैथुन करने के बाद भी स्पर्म काउंट और क्वालिटी मेन्टेन कर सकते हैं।

कैसे पुष्टि होती है समस्या की?

यदि आप अपने पार्टनर के साथ एक साल से बिना किसी प्रोटेक्शन (जैसेकि कंडोम, गर्भनिरोधक गोलियां) के सेक्स कर रहे हैं फिर भी प्रेगनेन्सी न ठहरे तो डाक्टर से मिलना जरूरी है। इसके साथ यदि पुरूष के टेस्टीकल्स में किसी तरह की सूजन या दर्द और उसे स्खलन में दिक्कत हो रही है तो तुरन्त डाक्टर से मिले। लो स्पर्म काउंट की पुष्टि के लिये डाक्टर सबसे पहले फिजिकल जांच करते हैं और मेडिकल हिस्ट्री जानने के बाद सीमन एनालिसिस टेस्ट कराते हैं। सीमन एनालिसिस के लिये आपको एक कप में हस्तमैथुन से स्खलित होना पड़ेगा। यह वैसा ही है जैसे आप यूरीन एनालिसिस के लिये सैम्पल देते हैं।

सीमन एनालिसिस के तहत लैब में माइक्रोस्कोप से स्पर्म की मूवमेंट और मोर्फोलॉजी (शेप) की जांच होती है। डाक्टर इस टेस्ट को रिपीट करवा सकते हैं जिससे कि वे परिणाम के बारे में पूरी तरह आश्वस्त हो जाये। इसके अलावा ये टेस्ट भी किये जा सकते हैं-

इलाज क्या है?

लो स्पर्म काउंट का ट्रीटमेंट पूरी तरह से इसके कारण पर निर्भर है। कुछ मामलों में डाक्टर आपको टीटीसी अर्थात ट्राइंग टु कन्सीव रूटीन बदलने की सलाह दे सकते हैं, क्योंकि हमारे देश में इस सम्बन्ध में बहुत अज्ञानता है। वैसे आमतौर पर इलाज के ये तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं-

सर्जरी: वेरीकोसेल (नसें सूख जाना), ब्लॉकेज और स्पर्म के शरीर से निकलने की प्रक्रिया (स्खलन) में किसी खराबी को ठीक करने के लिये सर्जरी की जाती है। वेरीकोसेल सर्जरी के लिये अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं, इस प्रोसीजर को ओपीडी में ही अंजाम देकर समस्या ठीक कर देते हैं। अन्य मामलों में इन-विट्रो फर्टीलाइजेशन (आईवीएफ) मैथड का प्रयोग किया जाता है।

मेडीकेशन: यदि रिप्रोडक्टिव ट्रैक में किसी तरह का संक्रमण है तो इसका इलाज दवाओं से होता है। ज्यादातर केसों में इससे लो स्पर्म काउंट की समस्या ठीक हो जाती है लेकिन जिन केसों में संक्रमण के कारण टिश्यू डैमेज हो गये हों वहां ठीक होना मुश्किल है। इसलिये टेस्टीकल्स या रिप्रोडक्टिव सिस्टम में इंफेक्शन का पता चलते ही डाक्टर से मिलें, इलाज में देरी, लो स्पर्म काउंट को लाइलाज बना देती है।

काउंसलिंग: सेक्सुअल इंटरकोर्स से सम्बन्धित मानसिक समस्याओं के लिये काउंसलिंग बहुत फायदा करती है। इससे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और प्रि-मैच्योर इजेकुलेशन (जल्द स्खलन) की समस्या हल हो जाती है। इसके अंतर्गत डाक्टर, मरीज को मानसिक रूप से तैयार करने के साथ लाइफ स्टाइल में बदलाव की सलाह देते हैं।

आयुर्वेदिक हर्बल दवायें: आयुर्वेद हमारे देश की पारम्परिक चिकित्सा प्रणाली है। इसमें जड़ी बूटियों से इलाज होता है, जब बात शीघ्रपतन और स्तम्भन दोष (लिंग में कठोरता की कमी) की हो तो इसके इलाज में कौंच बीज, कामिनी विदरन रस, यवनमृत वटी का प्रयोग होता है। इन जड़ी बूटियों के मिश्रण से बने कैप्सूल या टेबलेट्स दिन में दो बार लेने से लाभ होता है। डा. जेनेट ब्रिटो के अनुसार 2017 में मिनीसोटा यूनीवर्सटी में इस पर हुए एक शोध में पाया गया कि ये आयुर्वेदिक दवायें शीघ्रपतन और स्तम्भन दोष (लिंग में कठोरता की कमी) में लाभकारी है लेकिन लम्बे समय तक इनके इस्तेमाल के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं जैसेकि पेट टर्द, सिर चकराना, हल्का दर्द और कामेच्छा में कमी।

जिंक सप्लीमेंट: जिंक सप्लीमेंट न केवल हमारे इम्यून सिस्टम को सपोर्ट करते हैं बल्कि इसमें मौजूद जरूरी खनिज शरीर में टेस्टोस्टेरॉन का उत्पादन बढ़ाते हैं, इससे कामेच्छा और सेक्स के लिये जरूरी ऊर्जा में बढ़ोत्तरी होती है। एक रिसर्च से पता चला कि जिन लोगों में जिंक की कमी होती है वे अक्सर सेक्सुअल डिस्फंक्शन का शिकार होते हैं। ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों के लिये डाक्टर 11 मिलीग्राम जिंक का रोजाना सेवन रिकमेन्ड करते हैं। एक महीने तक ऐसा करने से शीघ्र स्खलन की समस्या काफी हद तक ठीक हो जाती है। लेकिन जिंक के ज्यादा मात्रा में सेवन के कई साइड इफेक्ट हैं जैसेकि जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, किडनी डैमेज, पेट में समस्यायें और मुंह में हमेशा धातु जैसा स्वाद रहना। इसलिये डा. जेनेट ब्रिटो कहती हैं कि जिंक सप्लीमेंट का सेवन उसी अवस्था में करें जब इसकी डिफीसियेन्सी बहुत अधिक हो। जहां तक सम्भव हो जिंक से भरपूर भोजन करने का प्रयास करें। इनके मुताबिक कद्दू के बीज, सोयाबीन, दही, पालक, दलिया, बादाम, राजमा, छोले, मीट, लहसुन और मटर में भरपूर मात्रा में जिंक होता है।

पीरियड में सेक्स से बचें: डा. जेनेट ब्रिटो कहती हैं कि मासिक धर्म के दौरान सेक्स नहीं करना चाहिये, इससे पुरूष और महिला दोनों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर बुरा असर होता है और वे इंफेक्शन का शिकार हो सकते हैं।

हारमोनल ट्रीटमेंट: जब शरीर में टेस्टोस्टेरॉन और इसी तरह के अन्य हारमोन बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाते हैं तो गर्भधारण में समस्यायें आती हैं ऐसे में इसकी पुष्टि होते ही इलाज कराने से उर्वरता (फर्टीलिटी) वापस आ जाती है। यदि आपने कभी एनाबोलिक स्टीराइड्स लिये हैं तो आपको हारमोनल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है।

लाइफस्टाइल में बदलाव: जीवन शैली में परिवर्तन करके लो स्पर्म काउंट समस्या कम की जा सकती है। इसके तहत ज्यादा से ज्यादा दफा इंटरकोर्स करने का प्रयास करें। ओव्यूलेशन के समय इंटरकोर्स करने से गर्भधारण के चांस बढ़ जाते हैं, इसलिये अपने साथी से इस बात की जानकारी लेते रहें कि ओव्यूलेशन पीरियड कब से कब तक है।

ओव्यूलेशन के दौरान इंटरकोर्स करते समय लुब्रीकेंट प्रयोग न करें। लुब्रीकेंट से स्पर्म की तैरने की क्षमता घटती है और वे अंडा निषेचित करने तक पहुंच ही नहीं पाते। जिन जगहों पर तापमान ज्यादा हो (जैसे बाथ टब, सोना या स्टीम रूम) वहां इंटरकोर्स करने से बचें। ज्यादा तापमान स्पर्म की गुणवत्ता कम कर देता है। एलेकोहल, ड्रग्स व धूम्रपान को न कहें, इनके सेवन से स्पर्म क्वालिटी खराब होती है।

पैल्विक फ्लोर व्यायाम: इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और प्रि-मैच्योर इजेकुलेशन (जल्द स्खलन) की समस्या का निदान करने में पैल्विक फ्लोर व्यायाम मददगार हैं। ये व्यायाम कैसे किये जाते हैं इसकी जानकारी यू-ट्यूब पर उपलब्ध है।

नजरिया

लो स्पर्म काउंट अर्थात ओलिगोस्पर्मिया का मतलब यह नहीं कि आप बच्चे नहीं पैदा कर सकते। यदि अपनी सोच सकारात्मक रखेंगे तो केवल यह हो सकता है कि आपके साथी को गर्भधारण करने में सामान्य की अपेक्षा ज्यादा समय लग जाये। यदि ओलिगोस्पर्मिया का संदेह है तो बिना देर किये डाक्टर के पास जायें और उसके कहे अनुसार ट्रीटमेंट लें व लाइफस्टाइल बदलें। ज्यादातर मामलों में पांच मिनट की ओपीडी सर्जरी और सप्लीमेंट सेवन से समस्या हल हो जाती है। केवल दस प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं जिन्हें आईवीएफ का सहारा लेना पड़ता है। इसके इलाज में धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि खानपान और लाइफस्टाइल बदलने का असर आने में एक वर्ष या इससे ज्यादा समय भी लग सकता है। उदाहरण के तौर पर स्टीराइड और ड्रग्स सेवन करने वाले व्यक्ति यदि पिता बनने का प्रयास करते हैं तो उनके शरीर से इनका प्रभाव जाने में एक या दो साल भी लग सकते हैं। हर्बल सप्लीमेंट्स और खान पना बदलने के अच्छे परिणाम सामने आये हैं इसलिये सर्जरी, आईवीएफ या सेरोगेसी पर जाने से पहले इन्हें अपनाकर ओलिगोस्पर्मिया दूर करने का प्रयास करें।

advt amazone
Exit mobile version