नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में 5 जजों की संविधान पीठ के 1998 वाले फैसले को पलट दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस संबंध में सांसदों को राहत देने पर सहमत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कानून के संरक्षण में सांसदों को छूट देने से इनकार किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी को घूस की छूट नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संवैधानिक बेंच इस मामले में सुनवाई की। पीठ ने कहा कि वोट के लिए नोट लेने वालों पर केस चलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने सोमवार को 1998 के फैसले को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में सुनवाई के बाद पांच अक्टूबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने सुनाया फैसला। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्त सदस्य एक आपराधिक कृत्य में लिप्त होता है। पीठ ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं। पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले, जो विधायक को वोट देने या भाषण देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने से छूट प्रदान करता है, के व्यापक प्रभाव हैं और इसे खारिज कर दिया है। पीठ ने कहा कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने एक मत से दिए फैसले में 1998 के फैसले को पलट दिया और कहा कि सांसद और विधायक रिश्वतोखरी मामले में मुकदमा से छूट नहीं पा सकते हैं। सांसद और विधायक विशेषाधिकार (इम्युनिटी) का दावा तब नहीं कर सकते हैं जब उन पर रिश्वतखोरी का आरोप हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम 1998 के फैसले से असहमत हैं और उसे खारिज करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने उस मामले में फैसला सुनाया जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में वोट व भाषण के बदले नोट के मामले में केस से छूट है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस मुद्दे को डील करेंगे कि क्या सांसदों को मिली छूट तब भी जारी रहेगी जब मामला आपराधिक हो? सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में दिए अपने फैसले में कहा था कि एमपी और एमएलए को सदन में वोट और बयान के बदले कैश के मामले में मुकदमा चलाने से छूट है।
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में दिए अपने फैसले में कहा था कि एमपी और एमएलए को सदन में वोट और बयान के बदले कैश के मामले में मुकदमा चलाने से छूट थी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि 1998 का फैसला सांसदों और विधायकों को वोट के बदले नोट और बयान के बदले नोट के मामले में इम्युनिटी प्रदान करता था। लेकिन इसका पब्लिक लाइफ, संसदीय लोकतंत्र और लोकहित पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा था। उक्त फैसले पर दोबारा विचार न किया जाना गंभीर खतरे की ओर ले जा रहा था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने 1998 के मामले में दिए गए फैसले पर दोबारा विचार किया और फिर फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 2019 में इस मामले को पांच जज को रेफर किया था और कहा था कि यह मामला सार्वजनिक महत्ता और व्यापक प्रभाव का है। इसके बाद मामले को सात जजों की बेंच को रेफर किया गया था। सीता सोरेन की अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा 1998 के फैसले पर विचार करने का फैसला किया था।
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने कहा था कि वह इस मुद्दे को डील करेंगे कि सांसदों व विधायकों को मिली छूट तब भी जारी रहेगी जब मामला आपराधिक हो? सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण व वोट के बदले नोट के मामले में मुकदमा चलाने से मिली छूट के मामले को दोबारा सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने परीक्षण किया।
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