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India China News: धूर्त चीन की बौखलाहट

India China News: धूर्त चीन की बौखलाहट

India China News: धूर्त चीन की बौखलाहट

India China News: भारत के सेना प्रमुख व जनरल उपेन्द्र द्विवेदी का यह कहना कि पूर्वी लद्दाख में स्थिति स्थिर है किन्तु सामान्य नहीं, का मतलब बिल्कुल स्पष्ट है कि कूटनीति के मोर्चे पर दोनों देश एक दूसरे को बातचीत में उलझाए हुए हैं जबकि सशस्त्र सेना बल जो उस क्षेत्र में तैनात हैं वह घात लगाए अवसर की तलाश में हैं। जब सैन्य प्रतिष्ठान और सरकार शांति के लिए अपनी शर्तो पर समझौते की रणनीति बनाने में लगी है तो यह कहना कि लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में स्थिति स्थिर है किन्तु सामान्य नहीं, बिल्कुल सही है।

दुनिया में जिस देश का पड़ोसी विस्तारवादी होता है वह खुराफात से बाज नहीं आता। भारत के लिए चीन हमेशा विश्वासघाती शत्रु रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी को छोड़कर कोईं भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं है, जिसने चीन के साथ संबंध बनाने की कोशिश नहीं की। इंदिरा जी के साथ ही तीन प्रधानमंत्री ऐसे थे जिन्होंने अल्पकाल तक सत्ता में रहने के कारण कोईं प्रायास नहीं किया। वे थे स्व. लाल बहादुर शास्त्री, एचडी देवगौड़ा, चंद्रशेखर। विश्वासघात से आहत पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद शास्त्री जी और इंदिरा जी ने तो चीन से सारे राजनयिक संबंध ही समाप्त कर दिए थे। कारण कि इन दोनों नेताओं को पता था कि चीन की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी धूर्तता है।

1977 में मोरारजी देसाईं की सरकार में रहे विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले नेता थे जिन्होंने 1962 के बाद चीन की यात्रा की थी। कुछ दिन बाद दोनों देशों ने बंद पड़े अपने-अपने राजदूतावासों के ताले भी खोले, किन्तु दो-ढाईं साल तक न तो कोईं विशेष संबंध स्थापित हुए और न ही किसी तरह का आर्थिक सहयोग हुआ। 1980 में सत्ता में लौटने के बाद भी इंदिरा जी ने अमेरिका की यात्रा तो की किन्तु चीन के लोगों से कोईं संबंध बनाने की इच्छा जाहिर नहीं की। लेकिन राजीव गांधी की सरकार बनते ही चीन ने एहसास किया कि भारत उसके लिए विशाल बाजार का अवसर है। तत्कालीन राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री को बीजिग आमंत्रित किया।

India China News: समझौता भी मायने नहीं रखता

भारत और चीन ने दोनों देशों के बीच आर्थिक कूटनीति के साथ सीमा पर तैनात सैन्य कर्मियों के लिए भी कुछ सन्नियमों को निर्धारित किया। उसी समय दोनों देशों ने समझौता किया था कि फ्रंट लाइन यानि आमने-सामने के सैनिक हाथ में कोई भी हथियार नहीं लेंगे। विवाद बढ़ने पर बातचीत करके ही मसले को सुलझाने का प्रयास करेंगे। राजीव गांधी सरकार भी चीन पर भरोसा नहीं करती थी, किन्तु वे शत्रुता को कम करने में भलाईं समझते थे।

उसी समझौते को वाजपेयी सरकार तक निभाया गया, किन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजीव सरकार समय के किए गए समझौते में कुछ शर्तो को बदल दिया। अब सरकार ने निश्चित रणनीति बना दी कि यदि चीनी सेना नो मैन्स लैण्ड का सम्मान नहीं करती तो भारत की उस क्षेत्र में तैनात टुकड़ी भी उतनी ही दूरी तक आगे नो मैन्स लैण्ड में बढ़कर मोर्चा संभालेगी।

दूसरा यदि चीनी सेना किसी संवेदनशील भारतीय सीमा के निकट तैनाती के दौरान ढांचा निर्मित करती है तो भारतीय सेना उसको निशाने पर लेने के लिए सुविधानुसार ऊंचाइयों पर कब्जा कर ले। तीसरी रणनीति यह अपनाईं है कि यदि सीमा पर नो मैन्स लैण्ड की भावना को ठुकरा कर चीनी सेना उलझने पर उतारू हो जाए तो भारतीय सैन्य टुकड़ी भी अपनी सुरक्षा के लिए तत्क्षण शस्त्रों के इस्तेमाल का फैसला ले सकती है। यह फैसला गलवान की घटना के बाद लिया गया क्योंकि उस वक्त देश में 20 जवानों के शहीद होने पर जबरदस्त आक्रोश था।

India China News: माहौल तनावपूर्ण क्यों

सरकार ने शहीद हुए जवानों के प्रति जनभावना के सामने झुकते हुए आत्मरक्षा के लिए फैसले लेने का जो अधिकार अपने सैनिकों दे दिया हैं, इससे स्थिति में तनावपूर्ण माहौल बना है। गलवान के बाद चीन की सेना को भी तनाव से डर तो लगा है किन्तु झांसा देने में माहिर चीनी मानते हैं कि यदि ये तीनों बदलाव भारत ने लागू कर दिया है तो रोज-रोज का रगड़ा झगड़े में बदल सकता है। यदि झगड़े की स्थिति गंभीर हुईं तो दोनों देशों को नुकसान होना तय है। किन्तु नुकसान के डर से अब भारत पीछे हटने को तैयार नहीं है और यही चीन की सबसे बड़ी मुसीबत है।

India China News में अक्सर सुनाई देता है कि पहले चीन नो मैन्स लैण्ड में घुसकर भारत की सीमा तक आ जाता था और बैठक के बाद दो-तीन महीने में वापस चला जाता था किन्तु अब भारत जैसे को तैसा का संदेश देने के लिए अपने सैनिकों को भी चीन की अग्रिम चौकी तक तैनात कर देता है। चीन इसलिए भड़का हुआ है और अपने देश के उन व्यवसायियों को यही समझा रहा है कि भारत ही सीमा पर शांति नहीं चाहता जो राष्ट्रपति शी जिनपिग से शिकायत कर रहे हैं कि उन्हीं की वजह से भारत के साथ व्यापार करना मुश्किल हो गया है। चीन पर व्यवसायियों के दबाव का भी प्रभाव है कि चीन हमेशा भारत से वार्ता के लिए उत्सुक रहता है।

बहरहाल जनरल उपेन्द्र द्विवेदी का आंकलन बिल्कुल सही है कि चीन के साथ हमारे संबंध अत्यन्त संवेदनशील हैं किन्तु पहले जैसा भारतीय सेना पर चीन का कोईं मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो दूर हमारी सेना जवाब देने के लिए तत्पर दिखती है। इसी बदलाव ने चीन को असहज कर रखा है। यह संयोग की ही बात है कि अपने राष्ट्रीय दिवस के अवसर मंगलवार को ही राष्ट्रपति शी ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को आगाह करते हुए चेतावनी दी है कि देश के लिए आगे का रास्ता बहुत मुश्किल है।

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