अगर इस पृथ्वी पर अंधेरा न हो, तो प्रकाश का किसी को भी पता नहीं चलेगा। प्रकाश होगा, पता नहीं चलेगा। पता चलने के लिए विपरीत का होना जरूरी है। वह जो विपरीत है, वही पता चलवाता है।
अगर बुढ़ापा न हो, तो जवानी तो होगी, लेकिन पता नहीं चलेगा। अगर मौत न हो, तो जिंदगी तो होगी, लेकिन पता न चलेगा। जिंदगी का पता चलता है मौत के किनारे से। वह जो मौत की पृष्ठभूमि है, उस पर ही जीवन उभरकर दिखाई पड़ता है। अगर मौत कभी न हो, तो आपको जीवन का कभी भी पता नहीं चलेगा। यह बहुत उलटी बात लगेगी, लेकिन ऐसा ही है।
स्कूल में शिक्षक लिखता है, काले ब्लैकबोर्ड पर सफेद खड़िया से। सफेद ब्लैकबोर्ड पर भी लिख सकता है। लिखावट तो बन जाएगी, लेकिन दिखाई नहीं पड़ेगी। लिखता है काले ब्लैकबोर्ड पर और तब सफेद खड़िया उभरकर दिखाई पड़ने लगती है।
जिंदगी के गहरे से गहरे नियमों में एक है कि उसी बात का पता चलता है जिसका विरोधी मौजूद हो; अन्यथा पता नहीं चलता।
अगर हमारे भीतर परमात्मा है, सदा से है, तो भी उसका पता तभी चलेगा, जब एक बार विस्मरण हो। उसके बिना पता नहीं चल सकता।
इसलिए विस्मरण स्मरण की प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है। ईश्वर से बिछुड़ना, ईश्वर से मिलन का प्राथमिक अंग है। ईश्वर से दूर होना, उसके पास आने की यात्रा का पहला कदम है। केवल वे ही जान पाएंगे उसे, जो उससे दूर हुए हैं। जो उससे दूर नहीं हुए हैं, वे उसे कभी भी नहीं जान पाएंगे।
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