‘आंख के अंधे, नाम नयनसुख’ यह कहावत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। महिलाओं के यौन उत्पीड़न, जमीन कब्जाने तथा हत्या के प्रयास के अपराधी तृणमूल कांग्रेस के नेता को जेल जाने से बचाने के लिए उन्होंने अपनी जितनी शक्ति का इस्तेमाल किया, उससे उनका निर्मम चेहरा उजागर हो गया है।
अपना ताज बचाने तथा अल्पसंख्यक समुदाय के समूह के मुट्ठी भर वोटों के लालच में टीएमसी सुप्रीमो ने जो कृत्य किया, विकृत राजनीति की पराकाष्ठा का इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिल सकता। शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के आरामबाग में अपने बेबाक भाषण के जरिये सूबे की अवाम को ममता दीदी के इसी विद्रूप चेहरे से रूबरू कराया। उन्होंने कहा कि, ‘मां, माटी और मानुष का ढोल पीटने वाली तृणमूल कांग्रेस ने इन बहनों के साथ दुस्साहस की सारी हदें पार कर दीं। इससे पूरा देश गुस्से में है।’
उन्होंने सवाल किया कि, ‘जब संदेशखाली की बहनों ने अपनी आवाज बुलंद की और ममता दीदी से मदद मांगी तो बदले में उन्हें क्या मिला..? दीदी की बंगाल सरकार ने गुनहगार को बचाने में पूरी ताकत लगा दी। टीएमसी के राज में यह अपराधी नेता लगभग दो माह तक फरार रहा।’ पीएम ने संदेशखाली की वारदातों पर चुप्पी साधने पर विपक्षी इंडी गठबंधन को भी इस मामले में लपेटा। उन्होंने कहा कि, ‘कांग्रेस और गठबंधन के लिए भ्रष्टाचारियों, परिवारवादियों और तुष्टिकरण करने वालों का साथ देना यही एक काम बचा है। यही उनके लिए सबसे बड़ा काम है। तृणमूल ने बंगाल में अपराध और भ्रष्टाचार का एक नया माॅडल पैदा कर दिया है।’
हकीकत में पश्चिम बंगाल के संदेशखाली कांड ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। जिस तरह की वारदातें सामने आ रहीं हैं उन पर सहसा भरोसा करना मुश्किल है। आखिर किसी कानून के राज वाले सूबे में ऐसा कैसे संभव है कि कोई कुछ या कुछ लोगों का ग्रुप जब चाहे जितनी संख्या में चाहे, महिलाओं को बुला ले और उनका शोषण करें..? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि संदेशखाली घटना के पीछे भाजपा का हाथ है। उन्होंने कहा कि संदेशखाली में सबसे पहले ED को भेजा गया। फिर ED की दोस्त BJP वुछ मीडियावालों के साथ संदेशखाली में घुसी और हंगामा करने लगी। ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस या सरकार के अन्य प्रवक्ता ऐसी वारदात को नकारने की जितनी कोशिश करते हैं, हकीकत उतनी ही सामने आ रही है। कुछ वक्त के लिए सियासी पार्टियों के बयानों और मांगांे को नजरअंदाज़ कर दिया जाये, परंतु टीवी कैमरों पर जितनी संख्या में महिलाएं आकर आपबीती सुना रही हैं, उनसे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल जायेगा। सियासी पार्टियों में भी केवल भाजपा आवाज उठाती या आंदोलन करती तो माना जाता कि शायद आरोपों में उतनी सच्चाई नहीं है, जितनी प्रचारित की जा रही है। सारी वामपंथी पार्टियां और कांग्रेस भी संदेशखाली मुद्दे पर एक ही सुर में बोल रहे हैं।
सूबे के गवर्नर सीवी आनंद बोस ने संदेशखाली में अशांत क्षेत्रों का दौरा कर कहा कि, ‘मैंने जो देखा वह भयावह, स्तब्ध करने वाला और मेरी अंतरात्मा को हिला देने वाला था।’ उन्होंने कहा कि, ‘यह भरोसा करना मुश्किल है कि रवींद्र नाथ टैगोर की धरती पर ऐसा हुआ है।’ उन्होंने स्थानीय महिलाओं से कहा कि, ‘चिंता मत कीजिए, आपको इंसाफ जरूर मिलेगा।’ यदि मामले की गंभीरता नहीं होती तो कोलकाता हाईकोर्ट इसका स्वतः संज्ञान नहीं लेता। शाहजहां शेख इतने लंबे समय तक गिरफ्तार नहीं हुआ है तो क्यों..? कोलकाता हाईकोर्ट का दबाव नहीं होता तो शायद उसकी गिरफ्तारी नहीं होती।
शर्मनाक बात तो यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी तक इस सच को स्वीकार नहीं कर रही हैं कि संदेशखाली प्रकरण के लिए तृणमूल कांग्रेस दोषी है। उन्होंने तो विधानसभा में बोलते हुए इस मामले में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घसीटा था। ममता ने कहा था कि, ‘संदेशखाली आरएसएस का गढ़ है। वहां पहले भी दंगे हुए थे।’ सवाल उठता है कि क्या आरएसएस में वहां शाहजहां शेख और तृणमूल के लोगों को सत्ताबल की बदौलत जमीन हड़पने और महिलाओं के वीभत्स यौन उत्पीड़न के लिए रास्ता तैयार किया..?
हालत यह है कि सरकार और प्रशासन अपनी खीझ पत्रकारों पर उतार रह है। एक पत्रकार को गिरफ्तार भी किया गया है। सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को शायद यह पता नहीं कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। उसकी लाठी बड़ी बेरहम होती है। पश्चिम बंगाल की अवाम आगामी चुनाव में उनके इस कृत्य का जवाब जरूर देगी।