मेरठ

Media Center Meerut: 1 क्लिक पर जानें बर्बादी की कहानी

Media Center Meerut: मेरठ में पत्रकारिता की बुनियाद पहले की अपेक्षा कमजोर होती जा रही है। कारण है यहां पर पत्रकारों का एकजुट न रहना और राष्ट्रीय संस्थान के पत्रकारों का स्थानीय अखबार के पत्रकारों के साथ सौतेला व्यवहार करना।

राष्ट्रीय लेवल पर चलने वाले मीडिया संस्थान यह कतई नहीं चाहते कि किसी भी जगह पर पत्रकारों की कोई संस्था चले, जो अपनी आवाज को बुलंद कर सके। प्रत्येक राष्ट्रीय मीडिया संस्थान यह चाहता है कि उसके पत्रकार उसके ही अधीन रहकर कार्य करें, वह जिस तरह की भी ज्यादती चाहे वैसा कर्मचारी रूपी पत्रकार सहे।

राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को सताता है वजूद टूटने का डर

मीडिया संस्थानों को यह डर रहता है कि पत्रकारों का संगठन बना और सभी पत्रकार एक बैनर के नीचे आए, एकता दिखाई तो कहीं ना कहीं उनके द्वारा की जा रही ज्यादती में हस्तक्षेप होगा, जो वह कतई नहीं चाहते।

मेरठ मीडिया सेंटर (Media Center Meerut) पूर्व की भांति गुलजार नहीं होता है। यहां की खंडहर इमारतें यह बताती हैं कि यहां के पत्रकार जीवित होते हुए भी मृत देह धारण किए हुए हैं। पत्रकारिता का वसूल यह है कि वह सामाजिक ताने-बाने को सहज करने के उद्देश्य से शासन-प्रशासन और सरकार से सवाल जवाब करता है, लेकिन जब अपनी बात आती है तो चंद मौकापरस्त लोगों की वजह से बुलंदी के साथ आवाज नहीं उठ पाती।

मेरठ मीडिया सेंटर (Media Center Meerut) क्यों हो रहा बर्बाद?

मेरठ मीडिया सेंटर (Media Center Meerut) या मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) को बर्बाद होने करने में सबसे बड़ा योगदान है आपसी फूट का। इसी के कारण अधिकारियों को पत्रकारों की एक-एक नब्ज का पता लगता रहता है और वह आराम से कुर्सी पर बैठकर इन सभी की ओछी मानसिकता की चुस्कियां लेते हैं।

साप्ताहिक, मासिक व अन्य अखबार के लोग रहते हैं अलग-थलग

अक्सर यह देखा गया है कि मेरठ में पत्रकारिता करने वाले नेशनल मीडिया संस्थान के लोग साप्ताहिक, मासिक व अन्य पीरियाडिकल अखबार वाले संपादकों व पत्रकारों से एक दूरी बना कर चलते हैं। इसका सीधा सा कारण होता है उनकी आंखों पर चढ़ा हुआ गलतफहमी का चश्मा। 

उनका मानना होता है कि वह नेशनल मीडिया संस्थान के पत्रकार हैं और वही असल में मीडिया के माई-बाप हैं। लेकिन यह गलतफहमी उस समय जार-जार हो जाती है जब उन पर कोई आफत आ पड़ती है, इस गंभीर समय में मीडिया संस्थान दो टूक जवाब देने से पीछे नहीं हटते कि अमुक व्यक्ति उनके यहां पत्रकार है ही नहीं अथवा कुछ दिन पहले उसे हटा दिया गया है।

इसके बाद ऐसे पत्रकारों की अकल ठिकाने होती है और उनकी इज्जत बचाने के लिए साप्ताहिक, मासिक अखबार व वेब चैनल चलाने वाले पत्रकार सामने आते हैं।

सिर्फ राष्ट्रीय मीडिया संस्थान के पत्रकार ही नहीं हैं दोषी

मैं नहीं कहता इसमें उनकी अकेले की गलती है। सवाल जिजीविषा का है, जब तक रोजगार किसी संस्थान से जुड़ा हुआ है तब तक उसकी माननी मजबूरी है। लेकिन एक झुकने की भी अवस्था होती है, कई बार यह महसूस किया गया है कि मेरठ में इस झुकने की अवस्था को भी तोड़कर जमींदोज कर दिया गया है।

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सूचना विभाग हो गया गूंगा व बहरा

उधर सूचना विभाग की जिम्मेदारी होती है कि पत्रकारों के लिए आवंटित की गई इमारत की रक्षा करे, नहीं कर सकती तो अधिकारियों को सूचित करें। लेकिन दुखद बात यह है कि मेरठ सूचना विभाग भी इस तरफ निगाहें नहीं करता। वह गूंगा व बहरा बनकर बैठा है।

पत्रकारों के वजूद को लग रहा है बट‍्टा

फिलहाल मेरठ मीडिया सेंटर की खस्ता-हाली और यहां के पत्रकारों की आपसी फूट की वजह से मेरठ में पत्रकारों का वजूद दिनों-दिन खत्म होता जा रहा है जिसका नतीजा है कि किसी भी स्तर का व्यक्ति, किसी भी स्तर का अधिकारी कभी भी यहां के पत्रकारों को अपमानित करने से गुरेज नहीं करता।

मेरठ मीडिया सेंटर (Media Center Meerut) या मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) का भवन हो रहा है जर्जर

मेरठ मीडिया सेंटर (Media Center Meerut) या मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) के लिए आवंटित की गई बिल्डिंग गिरने की अवस्था में आ गई है, चारदीवारी की ईंटों को तोड़कर हटा दिया गया है, आस-पास जंगलों ने अपना रौद्र रूप धारण करना शुरू कर दिया है। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ भू-माफियाओं की नजरें भी इस ओर बेसब्री से देख रही हों और आने वाले समय में वहां पर एमडीए की मेहरबानी पर कोई बड़ा भवन भी देखने को मिल जाये।

2010 में पिटे पत्रकार तो जगमोहन शाकाल ने दिया था इस्तीफा

साल 2010 में मेरठ में मीडिया कर्मियों को पीटने वाले एक इंस्टिट्यूट के संचालकों के साथ मेरठ के कुछ रसूखदार पत्रकार खड़े दिखाई दिया। इस घटना के बाद से मेरठ में पत्रकारों का विखंडन शुरू हो गया था।

इस प्रकरण में संपादकों और संचालकों के बीच समझौता होने की खबर से मेरठ के आम मीडियाकर्मियों में आक्रोश बढ़ा इसके बाद मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) के उपमंत्री जगमोहन शाकाल ने पद से इस्तीफा दे दिया था।

2008 की कमेटी के बाद पीडी शर्मा को मिली जिम्मेदारी, नहीं कराया चुनाव

अप्रैल 2008 में बनी कमेटी का कार्यकाल पूरा होने के बाद नई टीम का चुनाव नहीं किया गया। इसके बाद से लगातार चुनाव कराने की मांग होती आ रही है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल रहा है।

नई कमेटी गठित न होने की वजह से कार्यकाल खत्म कर चुकी कमेटी के लोगों ने मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) पर खुद का अधिकार जमाए रखा इसके बाद पत्रकारों में रोष पनपना शुरू हो गया और उन्होंने डीएम से शिकायत की।

तत्कालीन जिलाधिकारी मेरठ ने अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर पुरानी प्रबंधक कमेटी से प्रबंधन का जिम्मा ले लिया।

इसके बाद मेरठ में नवभारत टाइम्स के संवाददाता प्रेम देव शर्मा को प्रशासक यानि कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। लेकिन प्रेम देव शर्मा अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभा नहीं सके, जबकि उनको यहां तक अधिकार दिया गया कि वह 9 या 11 लोगों की सहयोगी टीम भी बना सकते हैं। उन्हें जिलाधिकारी ने ये भी निर्देशित किया है कि वो अपनी कार्यवाही से सूचनाधिकारी के माध्यम से समय समय पर जिला प्रशासन को अवगत कराते रहें।

12 अक्टूबर 2010 को मिले जिलाधिकारी के पत्र के बाद प्रेम देव शर्मा ने पूर्व प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह और सचिव लोकेश पंडित से कार्यभार ग्रहण कर लिया। लेकिन उसके बाद से आज तक चुनाव नहीं कराया गया और इस तरह से मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) विरान पड़ा हुआ है।

दिनेश चंद्रा ने उठाई आवाज

मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) का चुनाव कराने और कमेटी को गठित करने के लिए स्थानीय पत्रकारों के साथ एकजुटता दिखाते हुए दिनेश चंद्रा ने कई बार आवाज उठाई, जिलाधिकारी से लेकर सूचना अधिकारी और सूचना उपनिदेशक तक शिकायत की गई। कई बार तो ऐसी स्थिति बन पड़ी थी कि शायद मेरठ प्रेस क्लब (Meerut Press Club) का गठन हो जाएगा। लेकिन गलतफहमी का चश्मा और आपसी फूट ने मेरठ प्रेस क्लब का बंटाधार कर ही डाला।

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editor

पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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