Nupur Sharma के बयान के बाद देशभर में मुसलमानों की आबादी में आक्रोश और अनेक शहरों में हो रही पत्थरबाजी की घटनाओं ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इसी बीच एक भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य स्वपन दास गुप्ता ने मुसलमानों की इतनी ज्यादा नाराजगी की कुछ वजहें गिनाते हैं।
उन्होंने कहा है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की दोबारा जीत होना, वाराणसी और अन्य जगहों पर धर्मस्थलों से जुड़े विवादों का होना व और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के मजबूत चुनौती पेश करने में नाकाम रहने की वजह से मुसलमान खार खाए बैठा था।
हालिया प्रदर्शनों के पीछे यह विश्वास है कि 2019-20 में ऐंटी-सीएए प्रदर्शनों की तरह सरकार को बैकफुट पर भेजा जा सकता है। गुप्ता के मुताबिक, मुसलमानों का उग्र प्रदर्शन करना कॉमन सिविल कोड लाने और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की समीक्षा को टालने की कोशिश है।
Nupur Sharma बन गईं पूरे विवाद का केंद्र विंदु
गुप्ता के मुताबिक, नूपुर शर्मा को इस तूफान के केंद्र में घसीट लिया गया है। वह लिखते हैं कि विवाद सिर्फ पैगंबर मोहम्मद की निजी जिंदगी तक सीमित नहीं है। टीवी डिबेट्स की एक टिप्पणी को पैगंबर के राजनीति से प्रेरित अपमान के उदाहरण के रूप में पेश किया गया। एक बार इतने गंभीर आरोप को इस्लामिक दुनिया की राजनीतिक और कूटनीतिक ताकत मिल जाती है तो तार्किक चर्चाओं की जगह खत्म हो जाती है। भाजपा सांसद के अनुसार, ऐसा ही कुछ डैनिश कार्टून्स विवाद में हुआ था और सलमान रश्दी की ‘सैटनिक वर्सेज’ से जुड़े बवाल में भी। ‘ओवरहीटेड माहौल में नूपुर शर्मा ने जो कहा, उसकी वैधता अप्रासंगिक हो जाती है।’
यह बहस का मुद्दा है कि कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अपमान करने का अधिकार निहित है या नहीं। इस पर भी बहस हो सकती है कि जो अपराध जान-बूझकर किया गया या अनजाने में हुआ। नूपुर शर्मा के मामले में जवाब जो भी हो, यह साफ है कि अभी की लड़ाई पूरी तरह राजनीतिक थी जिसमें बीजेपी का एक प्रतिनिधि शामिल था। इसलिए बेहद मूल सवाल पूछना जरूरी हो जाता है: क्या राजनीति के दायरे में धर्मशास्त्रों को शामिल किया जाना चाहिए?
भाजपा सांसद गुप्ता कहते हैं राजनीति में सत्ता की ताकत के सारे पहलू और सिविल सोसायटी शामिल होने चाहिए लेकिन इसे धर्मशास्त्रों में दखल नहीं देनी चाहिए। वह ISIS और तालिबान का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां पर धर्म और सेकुलर राजनीतिक के बीच की लाइन मिट गई है। गुप्ता लिखते हैं कि संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए प्रेरित किया गया है मगर मुस्लिम संगठन दावा करते हैं शरिया कानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
तो अब आपको समझमें आ गया होगा कि देशभर में आक्रोश की ज्वाला इतनी तेजी से क्यों धधक रही है और इसके पीछे क्या असली वजह है। हालाकि सरकार बहुत ही बैलेंस तरीके से इससे उबरने में कामयाब हो रही है लेकिन आने वाले समय में यदि नये कानून संसद में पेश हुए और उससे अल्पसंख्यकों पर बंधन हुआ तो वो इसी तरह से फन उठाकर विरोध करने से पीछे नहीं रहेंगे।