ईंरान द्वारा इजरायल पर 200 मिसाइलों से हमला करने के बाद पश्चिम एशिया में न सिर्फ भारी तनाव पसरा हुआ है, बल्कि बड़े पैमाने पर भयानक युद्ध की आशंका भी घर कर गईं है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में ईंरान के राजदूत इराज इलाही ने क्षेत्र में स्थिरता और शांति की बहाली कराने में भारत से हस्तक्षेप करने की अपील की है।
ईरानी राजदूत ने कहा है कि ‘‘भारत को इस अवसर का लाभ उठाकर इजरायल को क्षेत्र के आक्रामकता रोकने और शांति स्थिरता कायम करने के लिए राजी करना चाहिए।’’ यही नहीं राजदूत ने तो यहां तक कहा कि उनके देश और इजरायल के बीच तनाव को सिर्फ भारत ही कम करवा सकता है।
दरअसल पश्चिम एशिया में आज जो भी स्थिति पैदा हुईं है, उसके लिए अकेले इजरायल को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। गत वर्ष 7 अक्टूबर को हमास ने जिस तरह इजरायल के अंदर घुस कर अमानवीय कृत्य एवं बर्बरता की थी, उसके बाद ईरान उन देशों में से एक है, जिसने हमास को बधाई दी थी। यदि कुछ इस्लामिक देशों ने उसी वक्त हमास की आलोचना कर दी होती और इजरायल के प्रति संवेदना व्यक्त कर दी होती तो शायद तनाव इतना न बढ़ता। इजरायल पर हमास के हमले के बाद सारे फिलस्तीनी भी उतना खुश नहीं हुए होंगे जितनी कि खुशी हिज्बुल्लाह और ईरान ने मनाईं थी। हिज्बुल्लाह को ईरान ने हथियार और पैसे देकर इतना खतरनाक बना दिया कि वह हमास के समर्थन में ईरान के खिलाफ मोर्चा संभालने लगा। शुरुआती दौर में तो जब इजरायल पर हमास और हिज्बुल्लाह ने हमले तेज किए तो लगा कि इसका दुष्परिणाम इजरायल को भारी पड़ेगा, किन्तु प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने बड़ी ही चालाकी से रणनीति बनाकर हमले को रक्षा का माध्यम बनाया। जिस तरह से हमास और हिज्बुल्लाह इजरायल को परास्त करना चाहते थे, वह तकनीक इजरायल का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती।
इजरायल का वित्तीय स्रोत उसके अमूल्य खनिज हीरे का निर्यात है। इसके अलावा दुनिया भर में यहूदी उद्योपतियों का सहयोग है। उसकी रणनीतिक रक्षा उपकरण के सामने चीन, रूस यहां तक कि अमेरिका भी पीछे छूट चुका है। इसलिए युद्ध को जारी रखने में प्रधानमंत्री नेतान्याहू नुकसान नहीं, बल्कि चुनौती मानते हैं। इजरायल लोकतांत्रिक देश है और उनकी सरकार गठबंधन की है। दूसरे घटक दलों के नेता प्रधानमंत्री नेतान्याहू पर दबाव डाल रहे हैं कि वह बंधकों को छुड़ाने पर ज्यादा ध्यान दें न कि गाजा और लेबनान को बर्बाद करने पर किन्तु नेतान्याहू हर हाल में हमास और हिज्बुल्लाह को धूल चटाना चाहते हैं। यही नहीं इन दोनों के नाम से अब तक कुछ इस्लामिक देशों ने इजरायल को डराने की कोशिश की थी। जो देश इजरायल को भयाक्रांत करके रखना चाहते थे उनमें लेबनान और ईरान दोनों थे। हिज्बुल्लाह प्रमुख नसरुल्लाह के मारे जाने के बाद से लेबनान तो पस्त पड़ा है किन्तु ईरान को भी इस बात का एहसास हो गया कि इजरायल ठान ले तो वह किसी को कहीं भी ठिकाने लगा सकता है।
जहां तक ईरान द्वारा इजरायल को समझाने की उम्मीद भारत से लगाई जा रही है, इस बारे में तो यही कहा जा सकता है कि भारत की विदेश नीति में अब बदलाव और सक्रियता आ गईं है। भारत पहले युद्धरत देशों से दूरी बनाकर रखता था किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब भारत दोनों से संबंध बनाकर रखता है। यही कारण है कि जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो नईं दिल्ली स्थित उसके राजदूत ने भी यही बात की थी।
उसने कहा था कि दुनिया में को भी इस युद्ध को अगर रोक सकता है तो वह हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी! चाहे यूक्रेन हो या ईरान दोनों को यदि भारत से उम्मीद है तो इसलिए कि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत शांति का पक्षधर है और शांति एवं स्थिरता के लिए अपना योगदान देने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। जिस तरह से रूस के राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री मोदी के अच्छे संबंध हैं, उसी तरह इजरायल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू से भी अच्छे संबंध हैं। किन्तु सवाल तो यह है कि पश्चिम एशिया को युद्ध में झोंकने और यूक्रेन को रूस से भिड़ने में जिन लोगों ने षड्यत्र रचे उन्हें भी तो शांति और स्थिरता की कीमत ईमानदारी से महसूस करना चाहिए। ईरान ने हिज्बुल्लाह और हमास को जितना इजरायल से भिड़ने के लिए भड़काया, उसकी कीमत वह चुकाने के लिए बाध्य हैं और इसलिए वह भारत से उम्मीद लगा रहे हैं कि वह अपने संबंधों के आधार पर इजरायल को बदला लेने से रोके, लेकिन भारत भी अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर कूटनीतिक चाले चलता है। इसलिए पश्चिम एशिया में तो सब कुछ अनिश्चित ही लग रहा है।