Rakesh Tikait Biography in Hindi: किसान आंदोलन कुछ अति उत्साही किसान युवकों की वजह से खत्म होने की कगार पर पहुंच गया था कि अचानक चौधरी राकेश टिकैत कि कैमरे के सामने फूट-फूट कर रोना किसानों की वेदना को झकझोर गया।
लगभग मिटने को तैयार हो चुका किसान आंदोलन रातों-रात फिर से नया हो गया। मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत में खाप पंचायतों की बैठक बुलाई और हजारों की तादात में किसानों की मौजूदगी यह बता रही थी कि किसान आज भी मजबूत है और किसी से डरता नहीं। आपको बता देंं कि राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के उस कोर ग्रुप में शामिल हैं जो कृषि संशोधन बिल पर लगातार सरकार से बात कर रही है।
परिवार में फूट के बावजूद एक हुए दोनों भाई
राजनीतिक रूप से अलग-अलग रहने वाले नरेश टिकैत और राकेश टिकैत बंधुओं की कहानी (Rakesh Tikait Biography in Hindi) शायद ही कोई ऐसा किसान होगा जो न जानता हो। किसान नेता चौधरी महेंद्र टिकट के पुत्र राकेश और नरेश स्वाभाविक रूप से किसान नेता बने।
किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे नरेश टिकैत वेस्ट यूपी के शक्तिशाली बलियान खाप के प्रमुख हैं। वहीं, छोटे बेटे राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई करने के बाद एलएलबी की है।
Rakesh Tikait Biography in Hindi: राकेश टिकैत 44 बार जा चुके हैं जेल
किसान मसीहा बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के यहां 4 जून, 1969 में जन्में राकेश टिकैत किसानों के लोकप्रिय नेता (Rakesh Tikait Biography in Hindi) भी हैं और उनके सुख-दुख में साथ भी देते हैं। कई दशकों से किसानों के हक की लड़ाई के लिए सक्रिय हैं। किसानों के अधिकार की लड़ाई के चलते राकेश टिकैत 44 बार जेल जा चुके हैं।
मध्य प्रदेश में भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ हुए आंदोलन में राकेश टिकैत को 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। कुछ साल पहले दिल्ली में संसद भवन के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उन्हें संसद भवन के बाहर गन्ना जलाने की वजह से तिहाड़ जेल भेज दिया गया था।
लोकप्रियता के बावजूद लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त
किसान आंदोलनों के बीच देश में प्रसिद्ध हो चुके राकेश टिकैत (Rakesh Tikait Biography in Hindi) ने राजनीति में अपना रुख किया लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें फतेह नहीं मिली। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में अमरोहा सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाया था।
किसानों के लिए छोड़ दी कॉन्स्टेबल की नौकरी
जनता की आवाज को मुखरता से उठाने वाले राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल थे। 1992 में दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल पद से उस वक्त इस्तीफा दे दिया जब उनके पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत 1993-94 में लाल किले पर किसानों का नेतृत्व करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे। राकेश टिकैत (Rakesh Tikait Biography in Hindi) पर सरकार ने आंदोलन खत्म कराने का दबाव बनाया। साथ ही कहा कि वह अपने पिता और भाइयों को आंदोलन खत्म करने को कहें, जिसके बाद राकेश टिकैत पुलिस की नौकरी छोड़ किसानों के साथ खड़े हो गए थे। पिता की मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन (BKU) की कमान संभाल ली।
लगभग खत्म हो चुके आंदोलन को कर दिया जिंदा
ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ अति उत्साही किसान युवकों द्वारा लाल किला पर धार्मिक पता का पहरा देना और पताका फहराने के दौरान तिरंगे को ऊपर से ही फेंक देना देशवासियों को झकझोर गया। यही कारण था कि 2 महीने से आंदोलनरत किसानों के विरोध में स्थानीय ग्रामीणों की फौज इकट्ठा हो गई। देशभर के लोगों ने किसानों के प्रति सहानुभूति कम कर दिया।
26 जनवरी को किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान कर दिया। इस परेड के दौरान ही दिल्ली में लाल किले समेत अनेक जगहों पर हिंसा की वारदातें हुईं। किसान आंदोलन की आड़ में उपद्रवियों ने जमकर बवाल किया। हंगामे के दौरान जहां एक किसान की मौत हो गई वहीं 300 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए। इसके बाद पूरे देश में किसान आंदोलन पर सवाल उठने शुरू हो गए। बीकेयू समेत तीन किसान संगठनों ने अपना धरना वापस भी ले लिया।
मुजफ्फरनगर महापंचायत में हुंकार भर रहे हजारों किसान
वहीं, गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे राकेश टिकैत (Rakesh Tikait Biography in Hindi) अड़ गए। उन्होंने चेतावनी दे दी कि अगर प्रशासन जबरदस्ती किसानों को हटाने की कोशिश करेगा तो वह आत्महत्या कर लेंगे। इस दौरान उन्होंने रोते हुए पूरे देश के किसानों से अपना साथ देने के लिए कहा। उनके आंसुओं को देख किसानों का खून खौल उठा। यूपी सरकार के विरोध में मुजफ्फरनगर में महापंचायत की जा रही है। इस महापंचायत में कई राज्यों से किसान शामिल हुए हैं। देखते ही देखते राकेश टिकैत किसानों के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। खासकर पश्चिमी यूपी के किसान उनके एक इशारे पर कुछ भी करने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन की नींव कैसे पड़ी
भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी। इस संगठन ने बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था। इस दौरान हुई हिंसा में किसान जयपाल और अकबर पुलिस की गोली मर गए थे। इसके बाद भारतीय किसान यूनियन का गठन हुआ और अध्यक्ष बने चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत।
दो बच्चों के पिता हैं राकेश टिकैत
राकेश टिकैत की शादी वर्ष 1985 में बागपत जिले के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी। इनके एक पुत्र चरण सिंह दो पुत्री सीमा और ज्योति हैं। इनके सभी बच्चों की शादी हो चुकी है।
भारतीय किसान यूनियन के जनक बाबा महेंद्र सिंह टिकैत
महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में हुआ था। उन्होने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था।
इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था। इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी।
इसके बाद से ही टिकैत पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम किया। उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए।
महेन्द्र सिंह टिकैत (जन्म: 1935 – मृत्यु : 15 मई 2011) उत्तर प्रदेश के किसान नेता तथा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे। टिकैत पिछले क़रीब 25 सालों से किसानों की समस्याओं के लिए संघर्षरत थे और विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसानों में उनकी साख थी।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने बताया कि कैसे उठाते हैं आवाज
दिल्ली में इतने महीनों से धरना दे रहे किसानों के अंदर आत्मविश्वास कहां से आया था? सत्ता से टकराने का जज्बा उन्हें कहां से मिला था? इन सबका एक ही जवाब है – भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत। किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले बाबा टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। कहा तो यहां तक जाता था कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।
1988 में सरकार हो उठी बेबस
आपको बता दें कि इससे पहले वर्ष 1988 में भी किसानों का विशाल आंदोलन हुआ था। बाबा महेंद्र सिंह टिकैट के नेतृत्व में पूरे देश से करीब 5 लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। अपनी मांगों को लेकर इस किसान पंचायत में करीब 14 राज्यों के किसान आए थे। सात दिनों तक चले इस किसान आंदोलन का इतना व्यापक प्रभाव रहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को किसानों की सभी 35 मांगे माननी पड़ीं, तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था।