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लोकतंत्र में अंतिम आदमी से भी शुचिता के पक्षधर हैं राम

लोकतंत्र में अंतिम आदमी से भी शुचिता के पक्षधर हैं राम

लोकतंत्र में अंतिम आदमी से भी शुचिता के पक्षधर हैं राम

राम मानवता की सबसे बड़ी निधि है।वे संसार में अद्वितीय प्रेरणापुंज है।वे शाश्वत धरोहर है मानवीय सभ्यता, संस्कृति और लोकजीवन के। राम जीवन के ऐसे आदर्श है जो हर युग मे सामयिकता के ज्वलन्त सूर्य की तरह प्रदीप्त है।मर्यादा,शील, संयम,त्याग,लोकतंत्र, राजनय,सामरिक शास्त्र,वैश्विक जबाबदेही,सामाजिक लोकाचार,परिवार प्रबोधन,आदर्श राज्य और राजनीति से लेकर करारोपण तक लोकजीवन के हर पक्ष हमें राम के चरित्र में प्रतिबिंबित औऱ प्रतिध्वनित होते है।

हमें बस राम की व्याप्ति को समझने की आवश्यकता है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम के चरित्र सन्देश की व्याप्ति को स्थाई बनाने का भागीरथी काम किया है।वैसे तो दुनियां में बीसियों रामायण प्रचलित है लेकिन लोकभाषा में राम को घर घर पहुंचाने का काम तुलसीकृत रामचरितमानस ने ही किया है।वस्तुतःराम तो मानवता के सर्वोच्च और सर्वोत्तम आदर्श है।उन्हें विष्णु के सर्वश्रेष्ठ अवतारों में एक कहा जाता है। तुलसी ने राम के दोनों अक्षर  ‘रा’और ‘ म ‘ की तुलना ताली से निकलने वाले ध्वनि सन्देश से की है।

राम हमें बनाते हैं आस्थावान

जो हमें जीवन के सभी संदेह से दूर ले जाकर मर्यादा और शील के प्रति आस्थावान बनाता है। राम उत्तर से दक्षिण सब दिशाओं में समान रूप से समाज के उर्जापुंज है।राम सभी दृष्टियों से परिपूर्ण पुरुष है उन्होंने अपने जीवन में जो सांसारिक लीला की है काल की हर मांग को सामयिकता का धरातल देता है।एक पुत्र का पिता के प्रति आज्ञा और आदरभाव,भाइयों के प्रति समभाव,पति के रूप में निष्ठावानअनुरागी चरित्र,प्रजापालक,दुष्टसंहारक अपराजेय योद्धा,मित्र,आदर्श राजा,लोकनीति और राजनीति के अधिष्ठाता से लेकर आज के आधुनिक जीवन की हर परिघटना और समस्या के आदर्श निदान के लिए राम के सिवाय कोई दूसरा विकल्प हमें नजर नही आता है।

राम ने सत्ता के लिए साधन औऱ साध्य की जो मिसाल प्रस्तुत की है वह आज भी अपेक्षित है।नए समाज के नए समाज शास्त्री राम को केवल एक अवतारी पुरुष के रूप में विश्लेषित कर उनकी व्याप्ति को कमजोर साबित करना चाहते है।खासकर वामपंथी वर्ग के बुद्धिजीवी राम की आलोचना नारीवाद, दलित और सवर्ण सत्ता को आधार बनाकर करते है।सच्चाई तो यह है कि राम को सीमित करने के लिए नियोजित और कुत्सित मानसिकता के दिमाग पिछले कुछ समय से ज्यादा सक्रिय है।वे तुलसीकृत मानस की कतिपय  चोपाई और दोहों की व्याख्या अपने नियोजित एजेंडे के अनुरूप ही करते आये है।पहले तो राम के अस्तित्व को ही नकारा जाता है।

यूपीए की सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा तक देकर उनकी काल्पनिकता को प्रमाणित करने से परहेज नही किया। यह अलग बात है कि उसी सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम के अस्तित्व को अधिमान्य कर रामद्रोहीयों पर एक वज्रापात किया है।असल में राम भारत की चेतना का शाश्वत आधार है।ठीक वैसे ही जैसे दही में नवनीत समाहित है।जिस अंतिम छोर तक राम लोगों को प्रेरित करते है वही राम की वास्तविक अक्षुण्य शक्ति भी है।राम के चरित्र को नारी और दलित विरोधी बताने का षडयंत्र हमारे सामने जिन कुतर्क औऱ प्रायोजित मानसिकता से किया जाता है उसे समझने की आवश्यकता है।नए एकेडेमिक्स में यह कहा जाता है कि राम एक असफल इंसान थे क्योंकि उन्होंने कभी पति धर्म का निर्वाह किया। एक अच्छे अविभावक नही थे।

राम ने त्याग दिया बहुपत्नी प्रथा

राम ने धोखे से दलित हत्या की।लेकिन हमें यह भी जानना चाहिये कि राम ने पति के रूप में एक उच्च आदर्श की स्थापना की है।सीता को मिथिला से अयोध्या लाकर राम ने पहला वचन यही दिया था कि वे जीवन भर एकपत्नी व्रत का पालन करेंगे। जिस सूर्यवंश में राम पैदा हुए वहां के राजा बहुपत्नी वाले हुए है। राजा दशरथ की स्वयं तीन रानियां थी लेकिन राम ने इस प्रथा को त्याग कर एक श्रेष्ठ पति के रूप में अपने दाम्पत्य की नींव रखी।

राम राजीवलोचन थे अप्रितम सौंदर्य और यौवन के स्वामी थे।रावण सीता जी का हरण करके ले गया राजकुमार राम चाहते तो किसी भी राज्य की राजकुमारी से विवाह रचा सकते थे लेकिन वह अपने पति धर्म के निर्वाह में सीताजी की खोज में उत्तर से हजारों किलोमीटर दूर लंका तक जाते है। वह इस संकट भरी यात्रा से बच भी सकते थे।

राम के साथ नारीवादी एक धोबी के कहने पर परित्याग को लांछित करते हैं।लेकिन यह भी तथ्य है कि रामायण में उत्तर कांड की प्रमाणिकता असन्दिग्ध नही है। बाल्मीकि रामायण रावण वध के बाद समाप्त हो जाती है।तुलसीकृत मानस की मूल पांडुलिपि का दावा भी कोई नही कर सकता है।जाहिर है अग्निपरीक्षा का प्रसंग मिथक और आलोचना के उद्देश्यों से स्थापित किया गया है।एक बार अगर इसे सच भी मान लिया जाए तो इस मिथ का प्रयोग आज के शासकों की सत्यनिष्ठा उनके पारदर्शी जीवन और जनविश्वास के साथ क्यों स्थापित नही किया जा सकता है?

राम लोकतंत्र में अंतिम आदमी से भी शुचिता की अधिमान्यता के पक्षधर है।

क्या आज के राजा यानी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के निजी जीवन को लेकर जनचर्चाएं नही होती है? क्या आज की दुनिया के ताकतवर शासकों को स्पष्टीकरण और स्तीफा नही देने पड़ते है? क्यों लोग उनके कतिपय आचरण पर सवाल उठाते है, इसलिए कि राजा जनता के विश्वास पर खड़ी एक महान व्यवस्था है। राम को लेकर अगर अयोध्या में ऐसी चर्चा थी कि उनका राजा एक ऐसी स्त्री के साथ है जो पराये आदमी के परकोटे में रही है। तो क्या राजा जनविश्वास को कायम रखे यह एक राजा का कर्त्तव्य नही है? यानी राम लोकतंत्र में अंतिम आदमी से भी शुचिता की अधिमान्यता के पक्षधर है।

निजी तौर पर मैं इस अग्निपरीक्षा को काल्पनिक और खुरापाती मानता हूं।मौजूदा सियासत के सर्वाधिक सुविधाजनक शब्द है “दलित आदिवासी”।इस वर्ग की जन्मजात प्रतिभा प्रकटीकरण के प्रथम अधिष्ठाता राम ही है। अवध नरेश का राज  पूरे भारत तक फैला था वह अगर चाहते तो अपनी शाही सेना के साथ भी रावण से युद्ध कर सकते थे।दूसरे राजाओं से भी सहायता ले सकते थे। लेकिन राम ने वनवासियों के साथ उनकी अंतर्निहित सामरिक शक्ति के साथ रावण और दुसरे असुरों से संघर्ष करना पसन्द किया।वनवासियों, दलितों के साथ पहली शाही सेना बनाने का श्रेय भी हम राम को दे सकते है।

ऊंच नीच के भाव से परे थे श्रीराम

राम के मन में ऊंच नीच का भाव होता तो क्यों केवट, निषाद,सबरी,वनवासी सुग्रीव, औऱ हनुमान के साथ खुद को इतनी आत्मीयता से सयुंक्त करते।असल में वनवासी राम तो लोकचेतना का पुनर्जागरण  करने वाले प्रथम प्रतिनिधि भी है ।गांधी जी ने राम के इस मंत्र को स्वाधीनता आंदोलन का आधार बनाकर ही गोरी हुकूमत को घुटनो पर लाने में सफलता हासिल की थी।राम वंचितों,दलितों,सताए हुए लोगों के प्रथम सरंक्षक भी है।वे उनमें स्वाभिमान और संभावनाओं के पैगम्बर भी है।इसलिए दलित चिंतन की धारा को यह समझना होगा कि राम पर विरोधी होने का आरोप प्रमाणिक नही मनगढ़ंत ही है।

राम की चिर कालिक व्याप्ति आज के जिनेवा कन्वेंशन और तमाम अंतरराष्ट्रीय सन्धियों ,घोषणाओं में नजर आती है।राम के दूत बनकर गए अंगद को जब बन्दी बनाकर रावण के दरबार मे लाया गया तब विभीषण ने यह कहकर राजनयिक सिद्धांत का प्रतिपादन किया’नीति विरोध न मारिये दूता”आज पूरी दुनियां में राजनयिक सिद्धान्त इसी नीति पर खड़े है।  जिस लोककल्याणकारी राज्य का शोर हम सुनते है उसकी अवधारणा भी हमें राम ने ही दी है।वंचित ,शोषित,वास्तविक जरूरतमंद के साथ सत्ता का खड़ा होना राम राज की बुनियाद है।वह राज्य में अमीरों से ज्यादा टैक्स वसूलने और गरीबों को मदद की अर्थनीति का प्रतिपादन करते है।

चीन और अमेरिका की नव साम्राज्यवादी नीतियों के लिए भी नैतिक आदर्श हैं राम

आज की सरकारें भी यही कहती है। राम आज चीन और अमेरिका की नव साम्राज्यवादी नीतियों के लिए भी नैतिक आदर्श है। राम ने बाली को मारकर उसका राज पाट नही भोगा।इसी तरह तत्सम के सबसे प्रतापी अनार्य राजा रावण के वध के बाद सारा राजपाट  विभीषण को सौंप दिया वह चाहते तो किष्किंधा और लंका दोनों को अयोध्या के उपनिवेश बना सकते थे।

साम्रज्यवाद की घिनोनी मानसिकता के विरुद्ध भी राम ने एक सुस्पष्ट सन्देश दिया है।राम भारत के सांस्कृतिक एकीकरण के अग्रदूत भी है।उत्तर से दक्षिण तक उन्होंने जिस आर्य संस्कृति की पताका स्थापित की वह सेना या नाकेबंदी की दम पर नही बल्कि अनार्यों के सहयोग से ही की उनका दिल जीतकर उन्ही के बल औऱ सदिच्छा जाग्रत कर।राम अकेले ऐसे राजा है जो विस्तारवाद,साम्राज्यवाद और नस्लवाद को नीति और नैतिकता के धरातल पर खारिज करते है।ध्यान से देखें तो आज के सभी वैश्विक संकट राम पथ से विचलन का नतीजा ही है।

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