उत्तर प्रदेश

शिवपाल यादव बोले, अखिलेश में दिखती है नेता जी की झलक

शिवपाल यादव क्या बोले: समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के अलग रह रहे परिवार के सदस्य पार्टी के मुखिया के निधन के बाद एक-दूसरे के करीब आते दिख रहे हैं। सपा संरक्षक के छोटे भाई और पीएसपीएल प्रमुख शिवपाल यादव ने अपने भतीजे एवं वर्तमान पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के लिए एक बड़ा संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि वह अब सभी को साथ ले जाना चाहते हैं और अपने दिवंगत बड़े भाई मुलायम सिंह यादव द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना चाहते हैं।

सैफई में पत्रकारों से बात करते हुए शिवपाल यादव ने कहा, ”नेताजी ने समाजवाद की नई गाथा लिखी थी। उनकी विचारधारा अमर रहेगी। वह सबको साथ लेकर चलते थे, मैं भी उसी रास्ते पर चलूंगा। मैंने अपने जीवन में हर निर्णय केवल नेताजी के निर्देश पर लिया। मैं अखिलेश में नेताजी की झलक देखता हूं।

शिवपाल ने संवाददाताओं से यह भी कहा कि उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी वह वह संभालेंगे। पीएसपीएल के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर शिवपाल ने कहा, “यह इस बारे में बात करने का समय नहीं है। हालाकि वह जो भी फैसला लेंगे, वह सभी की सहमति से होगा।’

2017 में पार्टी की बागडोर संभालने वाले अखिलेश यादव को अब परिवार की भी जिम्मेदारी संभालनी होगी। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह के निधन ने अखिलेश यादव के कमजोर कंधों पर बोझ कई गुना बढ़ा दिया है। अखिलेश यादव को अब पार्टी और परिवार को एक साथ रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि यादव परिवार और समाजवादी पार्टी अब तक कमोबेश एक इकाई के रूप में मौजूद रहे हैं। 

जब तक मुलायम सिंह जीवित थे, उनकी आज्ञा थी और पार्टी या परिवार में किसी ने भी उनकी अवज्ञा करने की हिम्मत नहीं की- भले ही अखिलेश पार्टी प्रमुख थे। मुलायम ने पारिवारिक संबंधों में संतुलन बनाए रखा और परिवार के प्रत्येक सदस्य को राजनीतिक महत्व सुनिश्चित किया। यह मुलायम ही थे जिन्होंने देश में सबसे बड़े राजनीतिक राजवंश का निर्माण किया, जिसमें महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व मिला। जबकि मुलायम कबीले के निर्विवाद नेता बने रहे, यह संभावना नहीं है कि अखिलेश को वही पद दिया जाएगा।

अखिलेश के साथ पांच साल के तनावपूर्ण संबंधों के बाद उनके चाचा शिवपाल पहले ही अलग हो गए हैं, जबकि छोटी भाभी अपर्णा बिष्ट यादव भाजपा में शामिल हो गई हैं। अखिलेश को अब परिवार को एक साथ रखने और यह सुनिश्चित करने के कठिन काम का सामना करना पड़ रहा है कि उनके मार्गदर्शक मंडल में शिवपाल शामिल हैं या नहीं।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार उनकी सबसे बड़ी परीक्षा मैनपुरी में उपचुनाव होगा, जो मुलायम सिंह के निधन के बाद होने वाला है। लंबे समय से सपा का गढ़ माने जाने वाली सीट को बरकरार रखने के लिए अखिलेश को परिवार के सक्रिय समर्थन की जरूरत होगी। राजनीतिक गलियारों में पहले से ही यह कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा मास्टरस्ट्रोक खेल सकती है और शिवपाल को उनके भाई की सीट पर चुनाव लड़ने और जीतने के लिए मना सकती है। अगर ऐसा होता है, तो इस साल की शुरुआत में बीजेपी के हाथों रामपुर और आजमगढ़ हारने के बाद सपा लगातार अपना तीसरा गढ़ खो देगी।

अब तक असंतुष्ट लॉबी अपनी शिकायतों को लेकर मुलायम सिंह के पास दौड़ पड़ते थे और मुलायम उन्हें शांत करते थे और सुनिश्चित करते थे कि वे खुशी से अपना काम करें। अब मुलायम के न रहने पर अखिलेश को कार्यकर्ताओं के लिए खुद को और अधिक सुलभ और सुझावों के प्रति ग्रहणशील बनाना होगा।

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