समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के नीचे भी शिवलिंग है, खुदाईं कराएं। पूर्व मुख्यमंत्री की भाषा और भाव दोनों ही इस बात की तरफ संकेत करते हैं कि उन्हें इस बात की नाराजगी है कि आए दिन हिंदू पक्ष मस्जिदों और दरगाहों में सर्वेक्षण के लिए अदालत जाता है और वहां से एएसआईं टीम सर्वे करती है। यही नहीं जिस तरह खुदाईं के बाद मंदिर की मूर्तियां और अवशेष मिल रहे हैं, वह भी अखिलेश को हास्यास्पद लग रहा है।
दरअसल अखिलेश यादव को लग रहा है कि यही सही वक्त है, यदि उन्होंने मुस्लिम भावनाओं के अनुरूप राजनीति नहीं की तो चूक जाएंगे। साथ ही अखिलेश को कांग्रेस की चुनौती भी सता रही है जिसको लगातार उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का समर्थन मिल रहा है। यही कारण है कि सपा नेता सर्वे और खुदाईं दोनों का विरोध कर रहे हैं और मजाक भी उड़ा रहे हैं।
राजनीति में समय का बड़ा महत्व होता है। उत्तर प्रदेश में इस वक्त हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग यह मानकर मस्जिदों और दरगाहों के आसपास और नीचे खुदाई का समर्थन कर रहा है जबकि मुसलमानों में यह धारणा व्याप्त हो गईं है कि उनकी सारी मस्जिदों और दरगाहों का सर्वेक्षण हो सकता है। यह सामाजिक माहौल राष्ट्रीय एकात्मकता के लिए खतरनाक है। ऐसे में अखिलेश यादव माहौल को और संवेदनशील बनाने में जुटे हैं।
बहरहाल अखिलेश बड़ी चलाकी से अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं कितु लगता है कि वह जिस तरह फर्जी विमर्श बनाकर हिंदुत्व को बदनाम करने, योगी आदित्यनाथ को चिढ़ाने तथा तुष्टीकरण के लिए आयं वायं सायं बोल रहे हैं, वह उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
विधानसभा में प्राय: योगी ने संकेत दिया है कि कुछ नेता ऐसे हैं जो भ्रष्टाचार के आरोपों से तो घिरे हैं किन्तु उन्हें लगता है कि कानून का हाथ उन तक नहीं पहुंच पाएगा। आस्ट्रेलिया में खरीदे गए द्वीप की बात करके वह इस बात का संकेत देते रहते हैं कि उन्हें सबकी वास्तविकता का पता चल गया है।
सच तो यह है कि अखिलेश के परिवार के कईं सदस्य भाजपा में नेता हैं और उनकी जाति के तमाम कार्यंकर्ता पार्टी से जुड़े हैं। यही कारण है कि तमाम उकसाने वाली घटनाओं के बावजूद भी भाजपा नेतृत्व अखिलेश के खिलाफ कोई कार्रवाईं नहीं करना चाहता। अखिलेश को भी इस बात का एहसास है कि मर्यादा की लक्ष्मण रेखा बहुत ही पतली है।
जरा सी झटका लगने पर वह टूट सकती है। यही कारण है कि अपने मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए वह चाहे जितना भाजपा नेताओं को चिढ़ाएं और तंज करें इससे वोटरों का वही वर्ग उनकी प्रशंसा करेगा जो पहले से ही उनके साथ है। उन्हें यह भी पता है कि वे जब भी भाजपा के खिलाफ कुछ बोलते हैं तो उनके विरोधी भाजपा की तरफ आकर्षित होते हैं। इसका मतलब स्पष्ट है कि वह मुस्लिम वोटरों पर अपना एकाधिकार मानते हैं।
यही कारण है कि संभल की घटना के बाद समाजवादी पार्टी खुद तो मुसलमानों की हितैषी साबित करने में जुटी है जबकि कांग्रेस के हर उस प्रयास का मजाक उड़ाती है जब सोनिया गांधी के परिवार का कोई सदस्य मुस्लिम हितों के लिए उत्साह दिखाता है। दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जिस तरह मुस्लिम वोटरों की भावनाओं से जुड़ने की कवायद कर रही हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि उन्होंने मान लिया है कि बहुसंख्यक हिंदू भाजपा के साथ है।
सपा और कांग्रेस की मुसीबत ही यही है कि उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा उठता है तो ध्रुवीकरण की संभावना बनने लगती है और उस माहौल का लाभ इन दोनों के विरोधी यानि भाजपा को मिलना निश्चित है। कहने का सार यह है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल पूरी तरह सांप्रदायिक हो चुका है और जो जैसे फायदा उठा सके, प्रयास कर रहा है। किंतु अखिलेश को यह तथ्य समझना होगा कि उनके हर तुष्टीकरण के उद्देश्य से की गईं टिप्पणी का असर हिंदू वोटरों पर भी पड़ता है और ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा हो सकती है।
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