Tourist Places in Meerut | Best Place on 1 Click

Tourist Places in Meerut | Best Place on 1 Click

Tourist Places in Meerut | मेरठ में घूमने की जगह…

Tourist Places in Meerut: अगर आप घूमने के शौकीन हैं और मेरठ के आसपास की जगहों में घूमना चाहते हैं आर्टिकल आपके लिए बेहद खास होने वाला है क्योंकि इसमें हम आपको मेरठ से जुड़ी हुई ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर घूमने के बाद आपको ऐसा कभी नहीं लगेगा कि आपके पैसे बेस्ट हो गए…

मेरठ क्रांति भूमि है और यहां से ही क्रांति की शुरुआत हुई थी ऐसे में विदेशों तक से लोग यहां घूमने आते हैं और यहां के विभिन्न जगहों को और यहां के विभिन्न जगहों को देखना चाहते हैं …

मनसा देवी मंदिर

मेरठ के मनसा देवी मंदिर में विराजमान मां मनसा देवी अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करती हैं। आपको बता दें कि यह मंदिर आजादी से पहले का है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां से मां किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटाती हैं। कहते हैं कि इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां आंखें बंद करके माता के आगे विनती नहीं होती बल्कि आंखें खोलकर माता के दर्शन करते हैं और उनसे मनोकामना मांगते हैं। शहर के प्राचीन भगवती मंदिरों में से एक मनसा देवी मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

अगर आप घूमने के शौकीन हैं और मेरठ के आसपास की जगहों में घूमना चाहते हैं आर्टिकल आपके लिए बेहद खास होने वाला है क्योंकि इसमें हम आपको मेरठ से जुड़ी हुई ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर घूमने के बाद आपको ऐसा कभी नहीं लगेगा कि आपके पैसे बेस्ट हो गए…
मेरठ क्रांति भूमि है और यहां से ही क्रांति की शुरुआत हुई थी ऐसे में विदेशों तक से लोग यहां घूमने आते हैं और यहां के विभिन्न जगहों को और यहां के विभिन्न जगहों को देखना चाहते हैं।

यह मंदिर साढ़े चार बीघा जमीन में बना है… मंदिर के अंदर छोटे द्वार भी हैं, जिनमें झुककर प्रवेश करना पड़ता है। मुख्य मंदिर के अलावा 25 अन्य मंदिर बने हैं। मुख्य मंदिर मां मनसा देवी का है। मां मनसा  देवी के मंदिर को मरघट वाली माता का मंदिर भी कहते हैं। पुराने समय में यहां जंगल था और जंगल के पास ही औरंगशाहपुर डिग्गी की शमशान भूमि थी। जिसके बीच में मूर्ति हुआ करती थी। इसलिए इसे मरघट वाली मां का मंदिर भी कहते हैं।

नवरात्र में मंदिर में नौ दिन लगातार माता का अलग-अलग शृंगार होता है। मंदिर की खासियत है कि यहां श्रद्धालुओं को नवरात्र के नौ दिन मां के नौ रूपों के दर्शन कराए जाते हैं।  बुधवार को मां हरे रंग का चोला, गुरुवार को पीला, शुक्र को जामुनी, शनिवार को नीला पहनाया जाता हैं।

यहां जो भक्त अपनी मुरादें लिखते है मां उनकी मुरादें जरूर पूरी करती हैं इसलिए लोग यहां दीवारों पर अपनी मुरादें भी लिखते हैं। नौ दिन हर सुबह मां का श्रृंगार और हवन होता है। रात्रि में विशेष पूजा अर्चना व दर्शन होते हैं। जिन भक्तों की मन्नत पूरी हो जाती है वो यहां रविवार को विशेष भंडारे का प्रसाद वितरित कराते हैं।

औघड़नाथ मंदिर-

यह वह स्थान है जहां 1857 में भारत की स्वतंत्रता का महान विद्रोह शुरू हुआ था। मेरठ के इस मंदिर का इतिहास बहुत कम जाना जाता है। हालांकि कहा जाता है कि इस मंदिर में मराठा शासक शुभ अवसरों पर तीर्थ यात्रा करते थे जिससे यह शहर में पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया।

आज के समय में औघड़नाथ मंदिर एक दिलचस्प जगह है जिसका न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है। औघड़नाथ मंदिर मेरठ में देखने लायक एक महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान शिव को समर्पित यह हिंदू मंदिर शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित है और मेरठ के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह वह स्थान है जहां 1857 में भारत की स्वतंत्रता का महान विद्रोह शुरू हुआ था। मंदिर परिसर में एक स्मारक भी शामिल है जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद में बनाया गया है।

इसके साथ ही मंदिर में दो मंदिर भी हैं… शिव मंदिर और श्री कृष्ण मंदिर। दोनों मंदिरों में सेए श्री कृष्ण मंदिर औघड़नाथ मंदिर में हाल ही में जोड़ा गया है। 1944 तक मंदिर में एक बड़ा परिसर था जिसमें कई छोटे मंदिर और पास में एक कुआँ था। इसके अलावा यह पेड़ों के एक समूह से घिरा हुआ था जो औघड़नाथ मंदिर की स्थापना को सुंदर बनाता है।

1968 में पुराने परिसर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर आधुनिक वास्तुकला शैली में एक नए मंदिर का निर्माण किया गया। 1987 में मंदिर की संरचना में कुछ परिवर्तन किए गए। धार्मिक समारोहों और भजनों की मेजबानी के लिए परिसर में एक विशाल हेक्सागोनल हॉल भी जोड़ा गया था जो औघड़नाथ मंदिर की प्रमुख विशेषताओं में से एक है।

भगवान शिव को समर्पित औघड़नाथ मंदिर मेरठ शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित है। औघड़नाथ मंदिर को कालीपल्टन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद शिव लिंग स्वयं प्रकट हुए थे इसलिए यह शिव के उपासकों के बीच बहुत लोकप्रिय है।भक्तों का मानना ​​है कि उनकी पूजा से शिव को प्रसन्न करके वह आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

आपको बता दें कि औघड़नाथ मंदिर कहानियों और आख्यानों का खजाना है जिसने भारत के ताने-बाने को आकार दिया है। मंदिर में 1857 के विद्रोह के शहीदों के सम्मान में एक स्मारक भी बनाया गया है।

डोगरा मंदिर

मेरठ छावनी क्षेत्र में बना डोगरा मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर सैन्य क्षेत्र में बना है। सेना की डोगरा रेजीमेंट मंदिर की देखभाल करती है। लेकिन मंदिर में आम जनमानस भी मां ज्वाला के दर्शन करने जाते हैं।

अक्सर मंदिरों में मां ज्वाला के ज्वाला रूप में दर्शन होते हैंए लेकिन मेरठ के इस डोगरा मंदिर में मां ज्वाला के मूर्ति रूप दर्शन मिलते हैं। मेरठ सहित आसपास के इलाकों से भक्त मां के मूर्ति रूप दर्शन करने यहां पहुंचते हैं। बताते हैं 1974 में इस मंदिर का निर्माण फौज की डोगरा रेजीमेंट द्वारा कराया गया था। इसलिए मंदिर का नाम डोगरा मंदिर है। कुछ भक्त इसे ज्वाला मां का मंदिर भी कहते हैं।

मंदिर के बीच में ज्वाला मां विराजमान है उनके भवन के चारों ओर परिक्रमा मार्ग में अन्य 9 देवियां विराजमान हैं और साथ में ही शिवशंभू हैं। मुख्य भवन के बाहर दो अन्य मंदिर भी हैं। एक मंदिर में माता के अनन्य भक्त हनुमानजी हैं और दूसरा मंदिर शंकर भगवान का है। शिवजी के इस मंदिर में बना विशालकाय शिवलिंग भी आस्था का प्रमुख केंद्र है। सावन में यहां काफी भक्त आते हैं।

मंदिर परिसर में बेहद सुंदर वाटिका भी है। इस वाटिका में कई प्रकार के फल, फूलों के पौधे लगे हैं। पूरा बगीचा अलग-अलग भागों में बंटा है। यहां देसी और विदेशी कई किस्मों के फूलों के पौधे हैं। भक्तों के बैठने के लिए पत्थर की बेंच बनी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर जल कुंड है इसमें पैर रखकर भक्त मंदिर में अंदर प्रवेश करते हैं।

चंडी देवी मंदिर

दिल्ली से 65 किलोमीटर दूर मेरठ भैंसाली रोडवेज बस स्टैंड से चार किलोमीटर दूर करीब तीन हजार साल पुराना चंडी देवी मंदिर का निर्माण मेरठ कोतवाली क्षेत्र खंदक में रहने वाली दशानन रावण की पत्नी मंदोदरी ने बनवाया था।

कहते हैं कि घर से लेकर मंदिर तक करीब चार किलोमीटर सुरंग भी बनवाई गई थी जिस सुरंग से मंदोदरी मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आती थी। खुदाई के दौरान सुरंग मिलने के प्रमाण भी मिले। चंडी देवी मंदिर की स्थापना चैत्र नव संवत्सर में हुई थी इस दौरान तब यहां तीन दिन का चंडी देवी मेला लगता था जो पैंठ की शक्ल में होता था। धीरे-धीरे इस मेले की अवधि बढ़ती गई और अब यह मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा नौचंदी मेला के नाम से प्रसिद्ध है।

बताया जाता है कि मुगलकाल में करीब एक हजार साल पहले कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बाले मियां ने मंदिर के आसपास कब्जे को लेकर लड़ाई लड़ी थी। जहां आज बाले मियां की मजार बताई जाती है वहां पहले चंडी देवी मंदिर था। उस समय पंण् हजारी लाल की बेटी मधु चंडी बाला मंदिर के गेट पर खड़ी हो गई थी और बाले मियां का काफी विरोध किया था तब मधु चंडी बाला ने उसकी अंगुली काट दी थी।

इस लड़ाई में वह शहीद हो गई थी। बाले मियां ने तब इस मंदिर को तहस-नहस कर दिया था। बाले मियां की अंगुली जहां कटकर गिरी वहां मुस्लिमों ने उसके मरने के बाद मजार बना दी। हालांकि इतिहासकार बताते हैं कि बाले मियां की असली मजार बहराइच में है और वहां उर्स भी लगता है।

मंदिर तहस-नहस हो जाने के बाद वहां से 100 मीटर की दूरी पर जहां मंदोदरी ने पूजा के लिए गुफा बनवायी थी ब्रिटिश काल में यहीं पर पंडित चंडी प्रसाद ने मां चंडी देवी की मूर्ति स्थापना करके पूजा शुरू की थी। उसके बाद नव चंडी देवी मंदिर का निर्माण हुआ और तब से यहीं पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लोग आते हैं।

शहीद स्मारक

शहीद स्मारक मेरठ के सबसे पुराने स्थानों में से एक है जिसे 1857 के विद्रोह की याद में बनाया गया था। सभी शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए शहीद स्मारक निश्चित रूप से हर इतिहास प्रेमी के लिए एक खुशी की बात है। 1970 के दशक के अपने इतिहास को देखते हुए शहीद स्मारक शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित है। यह मेरठ के उन दर्शनीय स्थलों में से एक है जो आप में गर्व और स्वतंत्रता की भावना लाता है।

शाहिद स्मारक मूल रूप से मेरठ में एक ऐतिहासिक स्थल है जिसमें एक संग्रहालय भी है। संग्रहालय के अंदर दो गैलरी हैं जिनमें 1857 के सिपाही विद्रोह के चित्रों और चित्रण जैसे प्रदर्शनों का एक बड़ा संग्रह है। इसके अलावा यहां एक बड़ा परिसर भी है जो बेहद शांतिपूर्ण है और हरी-भरी हरियाली से खूबसूरती से सजाया गया है। कुल मिलाकर शहीद स्मारक परिवार के साथ घूमने और भारत की आजादी के इतिहास के एक हिस्से के बारे में जानने के लिए सबसे अच्छी जगह है।

मेरठ के सभी लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों की तरह शहीद स्मारक भी किसी भी समय जाया जा सकता है। हालांकि इस ऐतिहासिक स्थल को देखने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम है। अक्टूबर के महीने में शुरू होने वाला मेरठ में सर्दियों का मौसम ठंडा और सुखद मौसम लाता है जो इस पूरे समय में पर्यटन के लिए आदर्श रहता है। 

घंटाघर

Tourist Places in Meerut की बात हो और घंटाघर का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। घंटाघर नाम के रूप में शाब्दिक अर्थ है क्लॉक हाउस या क्लॉक टॉवर। क्लॉक हाउस एक कस्बे या शहर के लिए एक विशिष्ट लैंडमार्क के रूप में कार्य करते थे और आमतौर पर सबसे लोकप्रिय क्षेत्र में स्थापित होते थे। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान विभिन्न कस्बों और शहरों में आम तौर पर शहर के केंद्र में कई घंटाघर बनाए गए थे। भारत में इस तरह के क्लॉक टावर देहरादून, मेरठ, इंदौर, ग्वालियर आदि में बनाए गए हैं, ज्यादातर उत्तर भारत के अन्य कस्बों और शहरों में है।

मेरठ में घंटाघर एक शानदार संरचना है जिसे 1914 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। जिस टॉवर पर यह घड़ी लगाई गई है वह मूल रूप से एक द्वार हुआ करता था जिसे कम्बोह दरवाजा कहा जाता था। इस टावर के नाम पर स्थित घंटाघर चौक है और इस जगह को जीरो माइल पॉइंट कहा जाता है।

इस द्वार का नाम बाद में सुभाष चंद्र द्वार रखा गया। इस जगह से आगे मोदीनगर और रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क है। यहाँ की घड़ी विशेष रूप से जर्मनी से आयात की गई थी और बाद में इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। हालाँकि कुछ साल पहले ही इस टॉवर को एक बार फिर से अपने मूल स्थान पर बहाल कर दिया गया था।

घंटाघर बाजार क्षेत्र से रेलवे स्टेशन तक एक द्वार के रूप में कार्य करता है। यहां का क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक सामान कपड़े और हार्डवेयर की दुकानों से भरा हुआ है। इस चौक से आगे लाला का बाज़ार है जहाँ खिलौने और ट्रिंकेट स्टेशनरी और घरेलू सामान बिकते हैं।

मेरठ के घंटाघर के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन इससे जुड़े किस्से आप शायद ही जानते हों। इसकी टिक-टिक करती घड़ी हमेशा लोगों को सही समय बताती रही है। एक समय था जब पूरा ही शहर इस घड़ी के पेंडुलम की आवाज पर चलता ओर थम जाता था। 

बताया जाता है कि अंग्रेजी शासन के दौरान घंटाघर की घड़ी ने अचानक समय बताना बंद कर दिया था। महीनों तक जब कोई कारीगर नहीं मिला तो तत्कालीन कलेक्टर ने जर्मनी की घड़ी कंपनी को इस समस्या के बारे में पत्र लिखा। कंपनी ने जवाब भेजा कि मेरठ का रहने वाला अब्दुल अजीज एक बेहतरीन घड़ीसाज है उसे इसकी मरम्मत के लिए भेजा जाएगा। अब्दुल अजीज जब मेरठ पहुंचे तो कलेक्टर ने उन्हें इस घड़ी के रख रखाव की जिम्मेदारी दी। तब से उनकी ही पीढ़ियां इस घड़ी को चालू रखे हुए हैं। उनके पौत्र आज भी घंटाघर की साफ सफाई और देख रेख करते हैं।

मेरठ का घंटाघर कितना प्रसिद्ध है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बॉलीवुड अभिनेता अपनी फिल्म ज़ीरो की शूटिंग पहले इसी लोकेशन पर करना चाहते थे। उन्होंने इस घड़ी को ठीक भी कराया था। लेकिन किसी वजह से बाद में इसका मुंबई में ही सेटअप तैयार किया गया। शाहरुख की फिल्म ज़ीरो में मेरठ के घंटाघर को खास रूप से फोकस किया गया है।

सूरजकुंड पार्क

परिवार और बच्चों के लिए एक आदर्श आनंद सूरज कुंड पार्क मुख्य रूप से अपनी शांतिपूर्ण सेटिंग और हरी-भरी हरियाली की वजह से मेरठ में सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। गांधी नगर में स्थित सूरज कुंड शहर के सबसे पुराने पार्कों में से एक है और इसका पौराणिक संबंध भी है। मान्यताओं के अनुसार यह वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण को कर्ण का कवच ;कवचद्ध भेंट किया गया था। यही कारण है कि इसे मेरठ के पवित्र पर्यटन स्थलों में से एक जाना जाता है। पार्क में एक ऐतिहासिक तालाब भी है जिसे एक व्यापारी लावर जवाहर लाला ने 1714 में बनवाया था।

वर्तमान में सूरज कुंड पार्क शहर में परिवार के साथ एक दिन बिताने के लिए एक आदर्श स्थान के रूप में कार्य करता है और इसलिए उन्हें पार्क में पिकनिक करते हुए देखा जा सकता है। बच्चे कुछ बाहरी खेलों को खेलकर अपने समय का आनंद ले सकते हैं जबकि वृद्ध लोग मेरठ के इस दर्शनीय पर्यटन स्थल पर टहलने या ध्यान या शायद दोनों का आनंद ले सकते हैं।

इसके अलावा सुबह और शाम के समय बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को टहलते और योगाभ्यास करते हुए भी देखा जा सकता है। कुल मिलाकर सूरज कुंड पार्क मेरठ के उन कुछ स्थानों में से एक है जहां अगर आप अपने प्रियजनों के साथ कुछ अच्छा समय बिताना चाहते हैं या बस शहर के जीवन की हलचल से छुट्टी चाहते हैं तो यात्रा करना सबसे अच्छा है।

सूरज कुंड पार्क में साल भर जाया जा सकता है। हालांकि इस जगह की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम है। नवंबर से शुरू होने वाला सर्दी का मौसम ठंडा और सुहावना मौसम होता है जो पर्यटन के लिए काफी अनुकूल होता है। फरवरी के महीने में सीजन खत्म हो जाता है।

गांधी बाग

माल रोड पर स्थित मेरठ के सबसे पुराने पार्कों में से एक गांधी बाग परिवार के साथ घूमने के लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित गांधी बाग एक अवकाश उद्यान है जो मेरठ में एक आदर्श पारिवारिक पलायन के रूप में कार्य करता है। हरियाली और भव्य फूलों की प्रचुरता इस जगह के आकर्षण को और बढ़ा देती है। यहां रहते हुए आपको या तो एक जगह पिकनिक मनाने का मौका मिलता है या फिर घूमने का या फिर दोनों का।

मेरठ में यह प्रसिद्ध बच्चों के अनुकूल स्थान आपको अपने बच्चे को नाव की सवारी पर ले जाने का अवसर भी देता है क्योंकि बगीचे में एक छोटा सा तालाब है। इसके साथ ही पार्क में एक समर्पित क्षेत्र है जिसमें बच्चों के लिए कई झूले हैं। मेरठ में पर्यटकों की रुचि का एक प्रसिद्ध स्थान होने के अलावा यह पार्क स्थानीय लोगों के लिए सुबह और शाम की सैर के लिए भी एक आदर्श स्थान है।

गांधी बाग किसी भी मौसम में जाया जा सकता है। हालांकि इस जगह की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का समय है। अक्टूबर के महीने से शुरू होकर सर्दियों के मौसम में मौसम सुहावना हो जाता है। ऐसी अनुकूल स्थिति यात्रियों को आराम से शहर के सभी आकर्षणों का पता लगाने की अनुमति देती है। फरवरी के महीने में सीजन खत्म हो जाता है।

आपको बता दें कि गांधी बाग मेरठ के सबसे पुराने पार्कों में से एक है जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित किया गया था। पार्क में 1025 मीटर का पैदल रास्ता, सुंदर वनस्पति उद्यान, 100 साल से अधिक पुराना बरगद का पेड़, क्रिकेट का मैदान, संगीतमय फव्वारा और बच्चों का पार्क है। इस पार्क की देखरेख मेरठ छावनी बोर्ड करता है। इसमें जलपान के लिए एक कैंटीन है और अच्छे स्नैक्स और भोजन के लिए एक आर्मी कैंटीन भी है। इस बाग की एक खास बात ये है कि इसमें एक पानी की टंकी है जो एक सदी से भी अधिक पुरानी है जिसे बहुत पहले अंग्रेज दिल्ली से लाए थे।

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हस्तिनापुर

हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार हस्तिनापुर शहर का एक बहुत ही अलौकिक इतिहास रहा है। हस्तिनापुर शहर आज से 5000 साल पहले द्वापर युग में कुरुवंश राज्य की राजधानी हुआ करता था। महाभारत के मुख्य पात्र कौरवों व पांडवों ने अपने जीवन का अधिकतर समय इसी पौराणिक शहर में व्यतीत किया था। आज भी हिंदू धर्म के लोग यहाँ स्थित पौराणिक मंदिरों और पूज्य स्थलों पर उतनी ही श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं।आज के समय में हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म के भी बहुत सारे मंदिर हस्तिनापुर शहर में स्थित है। जो इस पौराणिक शहर की पौराणिकता और सुंदरता को अधिक बढ़ाते है। 

हस्तिनापुर केवल भारत के गौरवशाली धार्मिक इतिहास को ही नहीं दिखाता है बल्कि हस्तिनापुर का महत्त्व भारत की राजनीति में भी बहुत उच्च है ऐसा माना जाता है कि यदि हस्तिनापुर लोकसभा सीट से जिस पार्टी का उम्मीदवार विजयी होता है उत्तर प्रदेश राज्य में उसी उसी पार्टी की सत्ता आती है तो ऐसा कह सकते हैं कि यदि आप घूमना पसंद करते हैं आपको इतिहास पसंद है आप राजनीति में रुचि रखते हैं तो आपको जरूर हस्तिनापुर आना चाहिए क्योंकि आपको यहाँ धर्म, इतिहास, प्राकृतिक सुंदरता, राजनीति सभी चीजों का संगम इस पावन धरती पर देखने को मिलेगा।

हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार हस्तिनापुर शहर का एक बहुत ही अलौकिक इतिहास रहा है। हस्तिनापुर शहर आज से 5000 साल पहले द्वापर युग में कुरुवंश राज्य की राजधानी हुआ करता था। महाभारत के मुख्य पात्र कौरवों व पांडवों ने अपने जीवन का अधिकतर समय इसी पौराणिक शहर में व्यतीत किया था। आज भी हिंदू धर्म के लोग यहाँ स्थित पौराणिक मंदिरों तथा पूज्य स्थलों पर उतनी ही श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं।आज के समय में हिंदू धर्म के साथ साथ जैन धर्म के भी बहुत सारे मंदिर हस्तिनापुर शहर में स्थित है।

जो इस पौराणिक शहर की पौराणिकता तथा सुंदरता को और बढ़ाते है। मैं आपको इतना विश्वास दिला सकता हूँ की एक पर्यटक के रूप में आपको यहाँ जो प्राकृतिक सौंदर्यताएदो धर्मों का अद्भुत मिलन तथा इतिहास के कुछ ऐसे अनसुलझे पहलू देखने के लिए मिलेंगे जो आपके जीवन में एक अद्भुत अनुभव ले कर आएँगे तथा आपको बार बार हस्तिनापुर आने के लिए प्रेरित भी करेंगे।

हस्तिनापुर केवल भारत के गौरवशाली धार्मिक इतिहास को ही नहीं दिखाता है बल्कि हस्तिनापुर का महत्त्व भारत की राजनीति में भी बहुत उच्च है ऐसा माना जाता है कि यदि हस्तिनापुर लोकसभा सीट से जिस पार्टी का उम्मीदवार विजयी होता हैए उत्तर प्रदेश राज्य में उसी उसी पार्टी की सत्ता आती है तो ऐसा कह सकते हैं कि यदि आप घूमना पसंद करते हैं आपको इतिहास पसंद है आप राजनीति में रुचि रखते हैं तो आपको जरूर हस्तिनापुर आना चाहिए क्योंकि आपको यहाँ धर्मए इतिहासए प्राकृतिक सुंदरताए राजनीति सभी चीजों का संगम इस पावन धरती पर देखने को मिलेंगे।

हस्तिनापुर गंगा नदी के तट पर स्थित है और इसका उल्लेख रामायण के साथ-साथ मौर्य साम्राज्य से संबंधित प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। हिंदू प्राचीन पाठ के अनुसार हस्तिनापुर प्राचीन काल में कुरु साम्राज्य की राजधानी थी जिसके शासकों को कौरवों के रूप में जाना जाता था। महाभारत का महान युद्ध हस्तिनापुर के बहुप्रतीक्षित सिंहासन के लिए हुआ था। युद्ध समाप्त होने के बादए पांडव विजयी रूप से उभरे और उन्हें सिंहासन का असली उत्तराधिकारी माना गया। पांडवों ने तब हस्तिनापुर पर 35 से अधिक वर्षों तक शासन किया।    

हालाँकि हस्तिनापुर का इतिहास हिंदू धर्म से निकटता से जुड़ा हुआ है फिर भी यह स्थान जैन समुदाय के लिए भी समान महत्व रखता है। हस्तिनापुर लोकप्रिय अस्तपद कमल मंदिर और दिगंबर जैन मंदिर के कारण जैनियों का एक तीर्थस्थल है जो यहाँ स्थित हैं।  

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई से साबित हुआ कि कुछ संरचनाएं चट्टानें आदि महाभारत जितनी पुरानी हैं। हस्तिनापुर कर्ण मंदिर पांडेश्वर मंदिर जैसे कई ऐतिहासिक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। कैलाश पर्वत और इसकी समृद्ध जैव विविधता जो प्रसिद्ध हस्तिनापुर राष्ट्रीय उद्यान में देखी जाती है।  

सरधना चर्च

मेरठ के सरधना कस्बे का ऐतिहासिक रोमन कैथलिक चर्च पिछले दो सौ साल से अपनी भव्यता और कला के बेजोड़ नमूूने को संजोए हुए है। इसे बेगम समरू द्वारा बनवाया गया था। यह चर्च सौहार्द आस्था और इतिहास का बेजोड़ नमूना है। चर्च को ईसाई धर्म के लोग कृपाओं की माता मरियम का तीर्थस्थान मानते हैं। मान्यता है कि माता मरियम श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती हैं। मां मरियम के दर्शन के लिए यहां देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। इस चर्च के कारण ही सरधना का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकता है। 

बेगम समरू द्वारा बनवाए गए इस चर्च को पोप जॉन 23वें ने 1961 में माइनर बसिलिका का दर्जा दिया था। बता दें कि ऐतिहासिक और भव्य गिरिजाघरों को ही यह दर्जा प्राप्त होता है। बड़ी बात यह है कि इस चर्च को बनाने में करीब 11 साल लगे। चर्च के निर्माण का कार्य साल 1809 में शुरू हुआ था।

इस ऐतिहासिक चर्च के खास दरवाजे पर इमारत के बनने का साल 1822 दशार्या गया है। इस चर्च के निर्माण में कई सौ लोग समेत कलाकार भी लगे थे। यहां हर साल नवंबर माह के दूसरे शनिवार व रविवार को मेले का आयोजन होता है। 25 दिसंबर यानी क्रिसमस-डे पर लोग मां मरियम के दर्शन करने आते हैं। 

वाल्टर रेनार्ड समरू की मौत के बाद बेगम समरू ने शासन किया और कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया। इसी दौरान उन्होंने इस चर्च का निर्माण कराया था। चर्च में जिस स्थान पर प्रार्थना होती है उसे अल्तार कहा जाता है। अल्तार के निर्माण के लिए सफेद संगमरमर जयपुर से लाया गया था। इसमें फूलों की पच्चीकारी खूबसूरत है। इसमें कौरनेलियन जास्पर और मैलकाइट जैसे कई कीमती पत्थर जड़े हैं। निर्माण के दौरान चर्च की सुंदरता को नहीं बल्कि कैथोलिक मजहब के रिवाज को ध्यान में रखा गया। 

चर्च को ईसाई समाज के लोग कृपाओं की माता मरियम का तीर्थस्थान मानते हैं। मान्यता है माता मरियम अपने श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती हैं। मां मरियम की कृपाओं का हिस्सेदार बनने के लिए हर धर्म और पंथ के लोग अकीदे के साथ यहां आते हैं। इस चर्च के कारण सरधना का नाम भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकता है। 

शीशे वाला गुरूद्वारा

मेरठ क्रांतिकारी शहर है। अग्रेजों से लेकर रामायण और महाभारत काल से भी मेरठ का ऐतिहासिक संबंध है। मेरठ आस्था के केंद्र का भी शहर हैं। गुरुद्वारों का बात करें तो मेरठ के बड़े गुरुद्वारों में से एक शीशे वाले गुरुद्वारा की अपनी ही अलग पहचान है। पाकिस्तान पर जीत की निशानी के तौर पर पहचाने जाने वाला यह गुरुद्वारा बाबा दीप सिंहजी शहीद का स्थान भी है।

आपको बता दें कि मेरठ छावनी में शीशे वाला गुरुद्वारा का सीधा संबंध पंजाब रेजीमेंट से है। अपने पराक्रम से न सिर्फ देश बल्कि विश्वपटल पर भी गौरव गाथा रचने वाली पंजाब रेजीमेंट 1929 से 1976 तक मेरठ में ही रही। रामगढ़ जाने से पहले पंजाब रेजीमेंटल सेंटर ने यहीं शीशे वाला गुरुद्वारा बनवाया। 1971 में भारत-पाक युद्ध में मिली जीत के बाद 1972 में यहां शीशे वाले गुरुद्वारा की स्थापना की गई थी।

जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा स्वयं मेरठ पहुंचे थे। जनरल अरोड़ा वही सैन्य अफसर हैं जिनके समक्ष 1971 में पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने बांग्लादेश की धरती पर 90 हजार से अधिक सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था। यह आत्मसमर्पण विश्व के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा आत्म समर्पण है। ऐसे में इस गुरुद्वारे को जब भी हम देखते हैं तो 1971 की जंग के हमारे जांबाज सैनिकों की गौरवगाथा आंखों के सामने तैरने लगती है और फक्र से सीना और चौड़ा हो जाता है।

सिख समाज में बाबा दीप सिंहजी का अपना अहम स्थान है। बाबा दीप सिंह के बारे में सिख समाज के जानकार बताते हैं कि जब मुगलों का आतंक बढ़ गया और उन्होंने दरबार साहिब और पवित्र सरोवर को नुकसान पहुंचाया तो दमदमा साहिब में रह रहे बाबा दीप सिंह का खून खौल उठा और वे 18 सेर का खंडा उठाकर मुगलों की सेना से भिड़ने चल पड़े। युद्ध के दौरान कई आततायियों को रौंदते हुए वे बढ़ रहे थे कि दोहरे वार से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।

इसके बाद भी बाबा दीप सिंह रुके नहीं और बायें हाथ में अपना सिर रखकर दाहिने हाथ के खंडे से वे वार करते हुए तीन कोस बढ़ते चले गए। यह देख दुश्मनों के पांव उखड़ गए। इसके बाद इन्होने हरमंदिर साहिब की परिक्रमा करते हुए अपना शीश भेंट कर दिया और 11 नवंबर 1760 को शहादत को चूम लिया और तब से ही इन्हीं बाबा दीप सिंहजी शहीद के स्थान के तौर पर शीशे वाले गुरुद्वारे की पहचान है।

फैंटसी वर्ल्ड

फैंटसी वर्ल्ड…. जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है एक काल्पनिक दुनिया जिसमें जो भी जाता है उसका फिर वापस आने का मन नही होता.. क्योंकि सभी की कोई न कोई एक काल्पनिक दुनिया होती है जिसमें वह खूब एंजॉय करता है। लेकिन अब एक ऐसा वर्ल्ड है जो है तो काल्पनिक लेकिन हकीक़त में है… यानी उसका नाम फैंटसी वर्ल्ड है लेकिन असल जिंदगी में वो है जो कि मेरठ में ही स्थापित है।

इसमें लोग अपने परिवार के साथ जाते है और खूब एंजॉय करते है। जी हां.. हम बात कर रहे है काल्पनिक विश्व जल पार्क की जिसमें वाटर पार्क में बड़ी जल स्लाइड, विशाल क्रिस्टल, शुद्ध जल संयंत्र, वर्षा जल डांस फ्लोर, स्विमिंग पूल, किड्स ज़ोन शामिल हैं। पार्क में मल्टीलेन वॉटर राइड और कई फव्वारे हैं। वाटर पार्क परिवार के साथ घूमने, बच्चों के साथ पिकनिक, अलग पार्किंग की सुविधाएं, लॉकर, चेंजिंग रूम की सुविधा आदि के लिए सबसे अच्छी जगह है। वाटर पार्क में कुछ स्वादिष्ट स्थानीय और चीनी परोसे जाने वाले स्वादिष्ट भोजन भी हैं।

सेंट जोंस चर्च

मेरठ का सेंट जॉन चर्च उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च है जिसे 1819 से 1821 में बनाया गया था। सेंट जॉन यीशु के धर्म गुरू थे। सेंट जॉन की माता सेंट एलिजाबेथ यीशु की माँ मैरी की रिश्तेदार थी। 25 मार्च को स्वर्गदूत गेब्रियल ने घोषणा में मैरी को बताया कि वह एक पुत्र को जन्‍म देगी इस समय तक एलिजाबेथ छह महीने की गर्भवती थी। मैरी ने जब घोषणा की बात एलिजाबेथ को बतायी तो उनके गर्भ में मौजूद सेंट जॉन ने जोर से प्रतिक्रिया की। यह घोषणा यीशु के जन्‍म दिवस क्रिसमस से ठीक नौ महीने पहले हुई थी।

जब यीशु तीस वर्ष के थे तब उन्‍हें जॉर्डन नदी में सेंट जॉन द्वारा बपतिस्मा दी गयी थी। आपको बता दें कि आज भी विश्‍व भर में इनके अनुयायी मौजूद हैं।

द्रौपदी की रसोई

द्रौपदी की रसोई के रूप में अनुवादित यह स्मारक मेरठ में बुरीगंगा नदी के तट पर स्थित है। कहते है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने यहां पूरे परिवार के लिए भोजन बनाया था। जब पांडव वनवास में हस्तिनापुर में रुके थे तब माना जाता है कि भगवान कृष्ण उनसे मिलने आए थे। जब उन्होंने भोजन मांगा तो द्रौपदी के पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं था। कहा जाता है कि कृष्ण ने एक चमत्कारी बर्तन का निर्माण किया था जिसने द्रौपदी की रसोई में असीमित भोजन की असीमित आपूर्ति की थी और यह स्थल इस अविश्वसनीय उपलब्धि को चिह्नित करता है। आज यह क्षेत्र द्रौपदी घाट के ठीक बगल में एक पसंदीदा पिकनिक स्थल है।

बुरीगंगा के तट पर स्थित द्रौपदी की रसोई मेरठ आने वाले पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। यह उन लोगों के लिए रोमांचकारी जगह है जो इतिहास और महाकाव्य की कहानियों से प्यार करते हैं। यह 1952 तक उत्तर प्रदेश में एक भूला हुआ गाँव था जब पुरातत्व विभाग को द्रौपदी की रसोई, विदुर का टीला, विदुर का महल और द्रौपदी घाट मिले। उन्होंने तांबे के बर्तन चांदी और सोने से बने आभूषण कई आयताकार आकार के हाथीदांत के पासे और लोहे की मुहरों का पता लगाया।

इनके अलावा आप गांधारी तालाब, दिगंबर जैन मंदिर, मुस्तफा कैसल, शाही ईदगाह, सेंट जॉन कब्रिस्तान, अबू का मकबरा आदि जगहो पर भी घूम सकते है।

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