प्रभात कुमार राय
अमेरिका के डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप ने एक चुनाव में पराजित होकर फिर से चुनाव जीतने का ऐतिहासिक कारनामा एक बार फिर से दोहरा दिया है। ग्रोवर क्लीवलैंड सन् 1885 से 1889 तक अमेरिका के प्रेसिडेंट रहे थे। इसके बाद सन् 1889 के राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पराजय हो गई। इस पराजय के पश्चात एक दफा फिर से क्लीवलैंड सन् 1893 से लेकर सन् 1897 तक पुनः अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए। हिंसक कैपिटल हिल हिंसक कांड में कलंकित हुए डोनाल्ड ट्रंप फिर से अमेरिका के 50 राज्यों की 538 सीटों में से 295 सीटों को हासिल करके राष्ट्रपति पद का चुनाव प्रचंड बहुमत से जीत गए। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को 270 सीटों की आवश्यकता होती है। स्मरण कीजिए सन् 2020 का वर्ष जबकि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में पराजित हो गए थे। पराजित हो जाने के तत्पश्चात डोनाल्ड ट्रंप की समर्थकों की एक बड़ी हिंसक भीड़ पुलिस के बैरियर तोड़कर कैपिटल हिल नामक स्थान पर स्थित संसद भवन में घुस गई थी। अराजक हिंसक भीड़ में अनेक लोगों के पास घातक हथियार विद्यमान थे। कैपिटल हिल जहां से कुछ वक्त पहले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के आधिकारिक नतीजे का ऐलान किया गया था। कैपिटल हिल में घुसते ही अराजक भीड़ ने सांसदों को डराना धमकाना शुरू किया। अमेरिकी सांसदों और उपराष्ट्रपति माइक पेंस को कड़े सुरक्षा घेरे में संसद से बाहर निकाला गया। उपद्रवी हिंसक भीड़ ने तकरीबन चार घंटे तक अमेरिकन संसद को घेरे रखा था। जिस शख्स के लिए संसद में विकट दंगा अंजाम दिया गया था, उसका नाम डोनाल्ड ट्रंप है। डोनाल्ड ट्रंप सन् 2016 में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीते और चार वर्ष बाद सन् 2020 में चुनाव पराजित गए। चुनाव में पराजित हो जाने के पश्चात ट्रंप व्हाइट हाउस के प्राइवेट डायनिंग रूम में बैठकर अपने समर्थकों का उपद्रवी तमाशा टीवी पर लाइव देखते रहे। वस्तुतः ट्रंप के उत्तेजक भाषण के तत्पश्चात अराजक हिंसा प्रारंभ हुई। अपनी उत्तेजक तक़रीर में डोनाल्ड ट्रंप ने दावा पेश किया कि राष्ट्रपति चुनाव में उनके साथ जबरदस्त फ्रॉड किया गया। सन् 2021 में कैपिटल हिल दंगे के बाद ट्रंप पर हिंसक भीड़ को उकसाने का संगीन इल्जाम आयाद किया गया, किंतु रिपब्लिकन पार्टी की बहुमत वाली अमेरिकन सिनेट ने उनको इस इल्जाम से बाकायदा बरी कर दिया।
इस वारदात के लगभग चार साल व्यतीत हो जाने के बाद यक्ष प्रश्न है कि डोनाल्ड ट्रंप एक दफा फिर से राष्ट्रपति का ओहदा संभाल लेने के पश्चात आखिरकार ट्रंप कौन सी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का अनुसरण करेंगे? अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में 14 जून 1946 को डोनाल्ड ट्रंप का जन्म एक बड़े अमीर परिवार में हुआ था। सन् 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का राष्ट्रवादी नारा पुनः बुलंद करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के अभियान का आगाज़ किया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राजनीतिक चरित्र का गहन विश्लेषण अंजाम देकर ही यह समझा जा सकता है कि वह आने वाले भविष्य में किस तरह की गृह नीति और विदेश नीति का अनुसरण कर सकते हैं। राष्ट्रपति पद पर आसीन होकर अपने विगत कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने “अमेरिका फर्स्ट’ की विदेश नीति का डंका बजाया था। पेरिस जलवायु समझौते और ईरान परमाणु समझौते को डोनाल्ड ट्रंप ने निरस्त करके अमेरिका को इन समझोतों से बाकायदा बाहर कर लिया था। राष्ट्रपति के विगत कार्यकाल में उन्होंने नॉर्थ कोरिया के तानाशाह राष्ट्रपति किम जोंग के साथ बाकायदा मुलाकात की और राष्ट्रपति पुतिन के साथ दोस्ती निभाई। अमेरिकी राजनीति के प्रमुख जानकार जेरमी पीटर्स ने अपनी किताब “इमरजेंसी’ में लिखा कि बड़े अमीर कारोबारी डोनाल्ड ट्रंप का वस्तुत राजनीतिज्ञ चरित्र नहीं होना ही, उनका सबसे बड़ा कामयाब हथियार बना हुआ है। जिस तरह की राजनीतिक बयानबाजी डोनाल्ड ट्रंप करते रहे हैं, इस स्तर के राजनीतिक बयानों को यदि कोई अन्य राजनेता देता तो शायद उसकी राजनीति का अंत हो जाता। दरअसल ट्रंप को राजनीति के बारे में कदापि कोई गहरी जानकारी नहीं रही। वह जैसी तकरीरें करते हैं, उनमें वह बिना किसी लाग लपेट और बिना किसी खौफ़ के अपनी बातों को पेश कर देते हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने आक्रामक तेवरों से सबसे पहले अमेरिका के रूढ़िवादी वोटरों को अपने पक्ष में कर लिया। ट्रंप ने गर्भपात जैसे विवादित विषयों पर बेबाक बयान दिए। ऐसे बयान तो जार्ज बुश और मिट रोमन में जैसे दिग्गज रिपब्लिकन लीडर भी दबी आवाज में नहीं दे सके। डोनाल्ड ट्रंप ने फरमाया कि वह ऐसे जजों की नियुक्त कर देगें, जोकि गर्भपात के तमाम फैसलों को उलट कर रख देंगे। बाद में उन्होंने ऐसा ही कारनामा अंजाम दिया। इस कारनामे से रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक करोड़ों रूढ़ीवादी कैथोलिक वोटर उनके पक्ष में एकजुट हो गए। सन् 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में पराजित होने के बावजूद कोई भी शीर्ष रिपब्लिकन लीडर डोनाल्ड ट्रंप को कड़ी चुनौती नहीं पेश कर पाया। रिपब्लिकन पार्टी की नेतृत्वकारी पातों में अपने विरोधी लीडरों को एक-एक करके परास्त करने के बाद डोनाल्ड ट्रंप सन् 2024 में फिर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन गए और अंततः राष्ट्रपति पद का चुनाव वह जीत भी गए।
राष्ट्रपति के तौर पर विगत कार्यकाल में ट्रंप की मुस्लिम विरोधी छवि प्रबल बनी रही थी, लेकिन इस दफा के राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने अमेरिका में बसने वाले मुसलमानों का दिल जीत लिया और उनको भारी संख्या में मुस्लिम वोटरों का समर्थन हासिल हुआ, क्योंकि उन्होंने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अपनी तकरीरों में कहा था कि वह इसराइल को विवश करके गाजा युद्ध को समाप्त करके ही दम लेंगे। डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस गाजा और यूक्रेन युद्ध के ज्वलंत प्रश्नों पर प्रायः मौन ही साधे रहीं। यह तो भविष्य बताएगा कि डोनाल्ड ट्रंप गाजा की सरजमीं पर एक वर्ष से निरंतर जारी नृशंस युद्ध को किस युक्ति से खत्म करने का कितना प्रयास करेंगे। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी चुनाव तकरीरों में कहा कि गाजा और यूक्रेन युद्धों में अमेरिका की बाइडन सरकार ने बेतहाशा दौलत को बर्बाद किया है और यहां तक कि अमेरिका को आर्थिक दिवालियापन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इजरायल द्वारा फिलीस्तीनियों के विरुद्ध जारी आक्रमणों के विरुद्ध और युद्ध में इसराइल को अमेरिकी सैन्य मदद के विरोध में अमेरिका की तमाम यूनिवर्सिटियों के छात्रों ने जो बाइडन सरकार के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन जारी रखा। डोनाल्ड ट्रंप की युद्ध विरोधी तकरीरों की कारण डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक रहे मध्यवर्गीय छात्रों ने इस दफा डोनाल्ड ट्रंप का प्रबल समर्थन प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति के तौर पर विगत कार्यकाल में इजराइल के घनघोर समर्थक के रूप में अपना किरदार निभाया था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय शहर जेरूसलम को इजराइल का अभिन्न अंग करार दिया और अमेरिकन दूतावास को इजरायल की राजधानी तेल अबीब से स्थानांतरित करके जेरूसलम में स्थापित किया। अब्राहम पैक्ट के माध्यम से इजरायल और अमेरिका प्रभाव वाले अरब देशों के मध्य सुलहनामा कराने की जबरदस्त कोशिश डोनाल्ड ट्रंप ने अंजाम दी थी। अब देखना है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने इस कार्यकाल में युद्ध समाप्त करने की अपनी कोशिश में बेंजामिन नेतन्याहू जैसे कट्टरपंथी राजनेता से किस तरह से निपटते हैं। सर्वविदित है कि विगत दौर में डोनाल्ड ट्रंप और ब्लादिमीर पुतिन के मध्य एक सांठगांठ कायम बनी रही। यहां तक की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान व्लादिमीर पुतिन पर यह इल्जाम आयद किया गया कि उसने ट्रंप को विजय दिलाने के लिए रूस की हुकूमत द्वारा सब हथकंडे अपनाए। चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन-रूस युद्ध में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की नकारात्मक भूमिका को लेकर ट्रंप अनेक कटु प्रश्न खड़े करते रहे। यूक्रेन के राष्ट्रपति वाल्दोमीर जेलेंस्की के व्यक्तित्व को मसखरा निरूपित करके भी डोनाल्ड ट्रंप अनेक तंज कसते रहे। अपने चुनाव अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने दावा पेश किया कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करा देंगे। महंगाई और बेरोजगारी से संत्रस्त अमेरिकी जनमानस ने युद्धों के विरुद्ध वस्तुत ट्रंप को राष्ट्रपति निर्वाचित किया है। अमेरिकन राजनीति के नव साम्राज्यवादी कॉरपोरेट चरित्र को ध्यान में रखते हुए अभी नहीं कहा जा सकता की डोनाल्ड ट्रंप गाजा और यूक्रेन युद्धों को समाप्त कराने के चुनावी वादों पर खरे उतरेंगे अथवा नहीं उतरेंगे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के चुनावी वादे कहीं चुनावी जुमलेबाजी बनकर तो नहीं रह जाएंगे। अत्यंत गहराई से समझा जाए तो जो बाइडन प्रशासन की आर्थिक मोर्चे पर घोर असफलताओं ने निरंकुश प्रवृति के डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया है। अस्वस्थ जो बाइडन के स्थान पर कमला हैरिस को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार मनोनीत करने में डेमोक्रेटिक पार्टी ने काफी देरी अंजाम दी। इस राजनीतिक देरी का पूरा फायदा डोनाल्ड ट्रंप को हासिल हुआ।
जहां तक भारत का प्रश्न है डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति परम मित्रता का भाव प्रदर्शित करते रहे हैं। भारत की कस्टम ड्यूटी पर भारत सरकार की आलोचना करने में भी डोनाल्ड ट्रंप अग्रणी रहे। पाकिस्तान के हुकूमत के विरुद्ध डोनाल्ड ट्रंप ने अपने विगत कार्यकाल में बड़ी तल्ख टिप्पणियां कीं। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान को प्रदान की जाने वाली अमेरिकी सहायता राशि को घटाकर बहुत कम कर दिया था। उनका कहना था कि पाकिस्तान हुकूमत ने अधिकतर अमेरिकन सैन्य और आर्थिक सहायता का इस्तेमाल वैश्विक जिहादी आतंकवाद का परिपोषण करने में लगा दिया । चीन के विषय में ट्रंप की बड़ी बेबाक राय रही है। चीन के विस्तारवाद के विरुद्ध निर्मित किए गए क्वॉड मोर्चे पर डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बन जाने से काफी मजबूती आ जाएगी। कुल मिलाकर अगर संक्षेप में विचार करें कि ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाना भारत के पक्ष में सिद्ध हो सकता है।