फीचर्ड

चुनाव में महापुरुषों का इस्तेमाल, कितना जायज?

  • अजीत द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार नई दिल्ली

यह भारत का दुर्भाग्य है कि देश के सारे महापुरुष अब एक पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने का माध्यम बन गए हैं। भारत अब तक स्मृति दोष का शिकार देश था। यह 130 करोड़ कृतघ्न लोगों का देश था, जो अपने महापुरुषों को याद नहीं करता था, उनका सम्मान नहीं करता और उनके बताए रास्ते पर नहीं चलता था। लेकिन उसी तरह यह भी सही है कि चुनिंदा तरीके से उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं होता था।

पिछले छह साल से जिस तरह के महापुरुषों का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हुआ है वह अभूतपूर्व है। हालांकि इसका एक फायदा यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उन महापुरुषों के बारे में जानने लगे हैं। पर चिंता इस बात की है कि उन महापुरुषों के बारे में इतनी झूठी बातों का प्रचार हो रहा है कि उनकी गलत छवि लोगों के मन में बन सकती है। मिसाल के तौर पर राजनीति की हर धूर्तता, तिकड़म और अनैतिकता को चाणक्य नीति का नाम दिया जा रहा है। इससे हो सकता है कि आने वाली पीढ़ियां महान चाणक्य को ठग मानने लगें!

बहरहाल, इन दिनों जिस महापुरुष को चुनावी एजेंडे में बदला गया है उनका नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। इससे पहले 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय भी इसका प्रयास किया गया था, जब प्रधानमंत्री नेताजी के परिवार के लोगों से मिले थे और उनसे जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने का ऐलान किया था। लेकिन 2016 के चुनाव में भाजपा को विधानसभा की सिर्फ तीन सीटें मिलीं, जिसकी वजह से नेताजी को महान, पराक्रमी आदि बनाने का अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

अब पांच साल बाद फिर से उसे ठंडे बस्ते से निकाल कर जोर-शोर से उसका प्रचार हो रहा है। अलग अलग कार्यकाल को मिला कर भाजपा की सरकार के शासन का 13वां साल चल रहा है पर पहली बार समझ में आया है कि नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाना चाहिए। हालांकि उनका जन्मदिन देशप्रेम दिवस के तौर पर मनाया जाता है पर केंद्र सरकार को लगा है कि देशप्रेम में वह बात नहीं है, जो पराक्रम में है। देशप्रेम की बजाय पराक्रम शब्द में चुनाव जिताने की ज्यादा क्षमता है।

नेताजी की 125वीं जयंती के बहाने इस बार प्रधानमंत्री उनकी जयंती मनाने कोलकाता पहुंचे और डाक टिकट से लेकर स्मृति चिन्ह के तौर पर सिक्का जारी किया। प्रधानमंत्री ने खूब भाषण भी दिया, जिसमें कहा कि नेताजी आज होते तो इस बात से खुश होते कि आत्मनिर्भर भारत कोरोना के संकट में दुनिया के दूसरे देशों की मदद कर रहा है। यह असल में नेताजी के प्रति सम्मान का भाव नहीं दिखाता, बल्कि अपनी सरकार के प्रचार का तरीका दिखाता है। नेताजी के बहाने प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के चुनाव से पहले अपनी सरकार का विज्ञापन किया और अपनी पार्टी का प्रचार किया। इससे पहले कभी नेताजी को इस तरह से याद नहीं किया गया था और उनके विचारों, सिद्धांतों का अनुपालन तो कभी नहीं किया गया। अगर प्रधानमंत्री को, केंद्र सरकार को और सत्तारूढ़ दल का नेताजी के विचारों के प्रति जरा भी सम्मान है तो उनको यह देखना चाहिए कि नेताजी ने हिंदुवादी संगठनों और उनके सांप्रदायिकता के एजेंडे के बारे में क्या कहा था।

नेताजी ने हिंदुवादी संगठनों के एजेंडे को लेकर कहा था- सांप्रदायिकता अपने पूरे नंगे स्वरूप में सामने आ गई है। हम हिंदुओं के बहुसंख्यक होने के कारण हिंदू राज की बात सुन रहे हैं। यह बिल्कुल बेकार का विचार है। क्या सांप्रदायिक संगठन कामगार वर्ग की किसी समस्या का समाधान कर सकते हैं? क्या इन संगठनों के पास बेरोजगारी और गरीबी दूर करने का कोई समाधान है? उन्होंने आगे कहा था- सावरकर और हिंदू महासभा के मुस्लिम विरोधी दुष्प्रचार का क्या मतलब है- अंग्रेजों से पूर्ण सहयोग! सोचें, सांप्रदायिकता और धर्म आधारित राजनीति के एजेंडे को लेकर जिस व्यक्ति की सोच इतनी स्पष्ट थी उसे हाईजैक किया जा रहा है उसी एजेंडे पर राजनीति करने के लिए! यह सोचना कितना बड़ा दुस्साहस है कि नेताजी के नाम पर सांप्रदायिक राजनीति हो सकती है?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस इकलौते स्वतंत्रता सेनानी नहीं हैं, जिनका इस तरह से राजनीतिक दुरुपयोग किया जा रहा है। इससे पहले भी अनेक स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों का ऐसा इस्तेमाल किया गया। मनमाने तरीके से उनके विचारों की व्याख्या की गई है। बिना किसी तथ्य के एक महापुरुष को दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया है। यह काम पिछले छह साल से चल रहा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल को नेहरू के खिलाफ खड़ा किया गया। दोनों के बीच छद्म दुश्मनी की कहानियां गढ़ी गईं। कांग्रेस और देश की पहली सरकार में दो सबसे करीब रहे दोस्तों, सहयोगियों और गांधी के अनुयायियों को एक-दूसरे का दुश्मन बताया गया।

कहा गया कि पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश की तस्वीर कुछ और होती, लेकिन यह नहीं सोचा गया तो उनके बाद क्या होता? उनका तो आजादी के तीन साल बाद ही निधन हो गया था! दूसरे इतिहास गवाह है कि उप मुख्यमंत्री रहते भी पटेल कभी नेहरू के अधीनस्थ नहीं थे और हमेशा अपने हिसाब से काम किया और अपनी सोच को लागू किया। लेकिन राजनीतिक एजेंडे के तहत देश को गुमराह करने का प्रयास हुआ। नेहरू के मुकाबले पटेल का कद बड़ा करने के लिए तीन हजार करोड़ की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनाई गई। यह नहीं सोचा गया कि पटेल ऐसी किसी मूर्ति के बगैर ही बहुत ऊंचे कद के थे।

इसी तरह नरेंद्र मोदी जब पहली बार चुनाव लड़ने बनारस पहुंचे तो मदन मोहन मालवीय का चौतरफा हल्ला मचा। उनके पौत्र को आगे किया गया और वे मोदी के नामांकन में प्रस्तावक बने। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? आज कहीं महामना मदन मोहन मालवीय की चर्चा हो रही है? मालवीय ने तमाम किस्म के अभावों के बीच काशी हिंदू विश्वविद्यालय का निर्माण किया था। उनको सच्ची श्रद्धांजलि तो यह होती कि उसी तरह के शिक्षण संस्थान देश भर में बनाए जाएं। लेकिन मालवीय का नाम भजने वाले आज देशी शिक्षण संस्थाओं को चौपट करके विदेशी संस्थानों को न्योता दे रहे हैं। इसी तरह देश को एकजुट करने वाले पटेल का गुणगान करने वाले देश के बंटवारे का बीज बो रहे हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि राजनीति करना और चुनाव जीतना ही सब कुछ नहीं है।

editor

पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

Recent Posts

यूक्रेन को उसके की शांति समझौता में नहीं बुलाया

एडिलेड। सऊदी अरब में अमेरिकी और रूसी अधिकारियों के बीच इस हफ्ते होने वाली महत्वपूर्ण…

2 days ago

भारत टेक्स 2025: ग्लोबल टेक्सटाइल कंपनियों के लिए भारत बना भरोसेमंद बाजार

नई दिल्ली। सरकार ने कहा है कि भारत के 5एफ विजन – फार्म (खेत) से…

4 days ago

भारत बनेगा परमाणु ऊर्जा का पावरहाउस: केंद्रीय मंत्री

नई दिल्ली। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि ‘विकसित…

4 days ago

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़, 18 की मौत

नई दिल्ली। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बड़ा हादसा हो गया है। यहां महाकुंभ की…

4 days ago

KMC Cancer Hospital में कैंसर गोष्ठी आयोजित

KMC Cancer Hospital में अन्तर्राष्ट्रीय ओएमएफ डे के अवसर पर कैंसर गोष्ठी का आयोजन किया…

6 days ago

Aaj Ka Rashifal: जानें क्या लिखा है आज के राशिफल में

Aaj Ka Rashifal: आज के राशिफल में क्या कुछ लिखा है इसे जानने के लिये…

6 days ago

This website uses cookies.