What are the 4 types of immunity?
What are the 4 types of immunity? इम्यूनिटी के अध्ययन को विज्ञान में ‘प्रतिरक्षा विज्ञान’ (Immunology) कहते हैं। इसके अनुसार इम्यूनिटी को मुखयत: दो भागों में बांटा गया हैं। पहला जन्मजात इम्यूनिटी और दूसरा अर्जित इम्यूनिटी। वैज्ञानिकों ने इन दोनों immunities को पुन: सरलता की दृष्टि से अन्य भागों में बाँटा हैं।
यह इम्यूनिटी हमें अपने जन्म द्वारा अपने माता-पिता से मिलती हैं। वास्तव में यह वह इम्यूनिटी हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अनुवांशिक रूप से पहुँचती हैं। केवल यहीं नहीं जन्मजात इम्यूनिटी हमारे शरीर में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक हमारे साथ रहती हैं। इसलिए इसे स्वभाविक प्रतिरक्षा भी कहा जात है। जब भी शरीर पर किसी भी प्रकार के पैथोजन का हमला होता हैं यह तुरंत उपस्थित होती है। बिना पैथोजन में भेद भाव किए। इस कारण विज्ञान इसे अविशेष प्रतिरोधक क्षमता मानता हैं। वास्तव में यह हमारे शरीर की पहली सुरक्षा पंक्ति हैं।
अर्जित इम्यूनिटी को कई नामों से जाना जाता हैं जैसे- ‘अधिग्रहित इम्यूनिटी’; ‘प्राप्त की हुई इम्यूनिटी’; ‘अनुकूल प्रतिरक्षा’; ‘एडॉप्टिड इम्यूनिटी’; ‘एक्वायर इम्यूनिटी’ आदि। इस इम्यून क्षमता को हम अपने पर्यावरण, रहन-सहन और खान-पान के द्वारा अपने जीवनकाल में प्राप्त करते हैं। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह वह इम्यून क्षमता हैं जो जीवन भर हमारी बैक्टीरिया, वायरस या फंगल के संक्रमण से रक्षा करती हैं। इसे हम स्वयं किसी सूक्ष्म जीवी के हमला होने के बाद प्राप्त करते हैं। जिसे हमारा इम्यून सिस्टम याद कर लेता हैं।
जब व्यक्ति के शरीर में किसी नए प्रकार के वायरस का संक्रमण होता हैं। तब शरीर उस रोग से लड़ने के लिए धीरे-धीरे खुद से शक्ति को विकसित करता है। इस प्रकार की इम्यून क्षमता को पहली बार विकसित होने में कुछ दिनों या कुछ हफ्तों का समय लग सकता है। एंटीबाडी बना लेने के बाद हमारा इम्यून सिस्टम उसे याद कर लेता है। जब कभी भविष्य में वही वायरस शरीर पर दुबारा हमला करता है। तब शरीर तुरंत उसी एंटीबाडी का निर्माण करना शुरू कर देता है। इसलिए व्यक्ति पहले कि अपेक्षा जल्दी ठीक हो जाता हैं। इस प्रकार की इम्यून क्षमता कि विशेषता यह है कि यह लंबे समय तक हमारे शरीर में रहती हैं।
इस प्रकार की इम्यूनिटी व्यक्ति के शरीर में लंबे समय तक रहती है। इस इम्यून क्षमता को व्यक्ति के शरीर में कृत्रिम रूप यानि कि टीके के द्वारा मामूली तनाव देकर रोग से लड़ने के लिए विकसित किया जाता है। ताकि हमारा इम्यून सिस्टम उसे याद कर ले। भविष्य में जब कभी उस रोग के जीवाणु व्यक्ति पर हमला करें, तो बॉडी की इम्यून क्षमता को पता रहें कि उसे रोग से लड़ने के लिए किस प्रकार के सेल का उत्पादन करना है।
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