दिल्ली में बहुत दिनों के बाद विस्फोट की खबर रविवार को रोहिणी से आई। खबर के मुताबिक कोईं जान तो नहीं गई, किन्तु यह इतना शक्तिशाली था कि दीवारों में दरार पड़ गईं हैं और खिड़की-दरवाजों के परखचे उड़ गए हैं। किसी की जान इस लिए नहीं गईं क्योंकि जिस वक्त सुबह विस्फोट हुआ, वहां पर कोई था ही नहीं। यह विस्फोट बाजार क्षेत्र में हुआ है, यदि यही दिन में और भीड़-भाड़ के वक्त हुआ होता तो काफी लोग मारे जाते। इसलिए इस विस्फोट के बारे में यही कहा जा सकता है कि जिसने भी इस कार्य को अंजाम दिया है या तो वह उपयुक्त समय नहीं निश्चित कर पाया अथवा उसने जानबूझकर ऐसा समय चुना जब वहां पर कोई हो ही नहीं। ऐसा होने का एक ही कारण है कि बम या विस्फोट सामग्री रखने वाले व्यक्ति ने इस बात का संकेत देने का प्रयास किया है कि दिल्ली में फिर पुराने दिन आने वाले हैं।
दरअसल पाकिस्तान, अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में रह रहे खालिस्तानी पंजाब में एक बार फिर आतंकी माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब और दिल्ली में खालिस्तानी उग्रवाद साथ-साथ रहा है। पाकिस्तान में सेना और सरकार दोनों ही भारत में अशांति के और अलगाववाद के लिए हिंसक वारदातें कराते रहे हैं और अब एक बार फिर वे ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह सही है कि पाकिस्तान ने भारत में हर तरह के आतंकवाद फैलाने के लिए अपनी राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बना लिया है, किन्तु इसी को बहाना बनाकर हम निश्चिंत तो नहीं हो सकते! सवाल हमारी सुरक्षा और खुफिया तंत्र पर भी उठते हैं। दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है कि आखिर त्योहारों के वक्त विस्फोट की इतनी बड़ी वारदात कैसे हो गईं! यह संयोग की ही बात है कि जी-20 का सफल आयोजन कराने वाली दिल्ली पुलिस की जो टीम काम कर रही है वह बहुत ही सक्षम, संवेदनशील और सक्रिय है। इसलिए उम्मीद तो यही है कि खुराफाती पकड़े जाएंगे और इस घटना का पूरा विवरण भी मिल जाएगा किन्तु लगता है कि दिल्ली पुलिस ही नहीं, बल्कि केन्द्रीय खुफिया तंत्र को इस साजिश की भनक नही लग पाई।
इंटेलीजेंस एजेंसियां आतंकियों और उनके हैंडलर के बीच होने वाली बातों को रिकार्ड करके या फिर पकड़े गए आतंकियों से जानकारी हासिल करके राज्य पुलिस को मुहैया कराते हैं। राज्य पुलिस का तंत्र इंटेलीजेंस इनपुट के इसी आधार को अपनी सतर्कता का सूत्र मानती हैं।
रोहिणी के इस विस्फोट के संदर्भ में इंटेलीजेंस इनपुट के अभाव में भी षडयंत्रकारी तत्व अपने दुष्प्रयास में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस घटना को लेकर दिल्ली पुलिस या खुफिया तंत्र की आलोचना की जाए। इन संगठनों में काम करने वाले लोग भी सामान्य मानव ही होते हैं। वे भी संपर्क सूत्र के आधार पर ही किसी घटना के संभावित कारकों तक पहुंचते हैं। वे न तो ज्योतिषी होते हैं और न ही त्रिकालदर्शी कि उन्हें इस बात की जानकारी हो जाए कि कब और कहां घटना होने वाली है। जिन उपद्रवियों ने रोहिणी में इस घटना की साजिश रची थी, उनका यह भी उद्देश्य था कि धमाके के बाद दिल्ली पुलिस और इंटेलीजेंस एजेंसियों की आलोचना होनी चाहिए। हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल रखना भी जरूरी है ताकि शरारती अपने मकसद में कामयाब न हो सकें।
अपना उद्देश्य किसी को भयभीत करने का नहीं है किन्तु वास्तविकता यही है कि इन दिनों भारत में बारूदी विचारकों ने भारत की विविधता को अलगाववादी सोच में बदलने की पूरी कोशिश में लगे हैं। बदकिस्मती से उन्हें कुछ बड़े सियासी संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है। ऐसी स्थिति में देश के सुरक्षा बलों , खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ आम नागरिक का भी दायित्व बढ़ जाता है।
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