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जनसंख्या पर दिनेश तलवार का ये आंकड़ा क्या कहता है

जनसंख्या पर दिनेश तलवार का ये आंकड़ा क्या कहता है

जनसंख्या पर दिनेश तलवार का ये आंकड़ा क्या कहता है

देनेश तलवार पिछले बीस वर्षों से अधिक समय से जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने हजारों किलोमीटर पैदल यात्राएं की हैं, और उल्टे चलकर यह संदेश दिया कि सरकार जनसंख्या पर ध्यान न देकर सुविधाओं को बढ़ाने के लिए प्लान बनाती है जबकि जनसंख्या ज्यादा होने से सभी प्लानिंग लगभग फेल हो जाती हैं। ऐसे में दिनेश तलवार ने कुछ आंकड़ों के जरिए बताया कि आखिर भारत में इतनी भुखमरी, अशिक्षा व गरीबी क्यों है-

जनसंख्या विस्फोट के कारण बहन-बेटियों को समान अधिकार और समान सम्मान नहीं मिलता है। बहन बेटियों को घर की सेविका और बच्चा पैदा करने की मशीन समझा जाता है। समान शिक्षा, समान नागरिक संहिता और जनसँख्या नियंत्रण कानून के बिना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान तो सफल हो सकता है लेकिन विवाह के बाद बेटियों पर होने वाले अत्याचार को नहीं रोका जा सकता है. जो लोग जनसंख्या विस्फोट करते हैं उन्हीं के बच्चे चोरी लूट झपटमारी बलात्कार और बम विस्फोट करते हैं। बेटा-बेटी में गैर-बराबरी बंद हो, उन्हें बराबर सम्मान मिले, बेटियां पढ़ें, बेटियां आगे बढ़ें और बेटियां सुरक्षित भी रहें, इसके लिए समान शिक्षा, समान नागरिक संहिता के साथ ही एक कठोर और प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना नितांत आवश्यक है।

प्रत्येक वर्ष 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस और 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाते हैं, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए पिछले सात वर्ष में विशेष प्रयास भी किए गए लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वायु, जल, ध्वनि और मृदा प्रदूषण की समस्या कम नहीं हो रही है अपितु बढ़ती जा रही है और इसका मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है।

जनसँख्या विस्फोट के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है इससे स्पष्ट है कि एक कठोर और प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण कानून के बिना स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत अभियान का सफल होना मुश्किल है।

प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को हम महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाते हैं लेकिन महिलाओं पर हिंसा बढ़ती जा रही है और इसका मुख्य कारण जनसँख्या विस्फोट है। बेटी पैदा होने के बाद महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार किया जाता है, जबकि बेटी पैदा होगी या बेटा, यह महिला नहीं बल्कि पुरुष पर निर्भर करता है। कुछ लोग 3-4 बेटियां पैदा होने के बाद पहली पत्नी को छोड़ देते हैं और बेटे की चाह में दूसरा विवाह कर लेते हैं।

बेटियों को बराबरी का दर्जा मिले, बेटिया स्वस्थ रहे, बेटियां सम्मान सहित जिंदगी जीयें तथा बेटियां पढ़ें और आगे बढ़ें, इसके लिए समान शिक्षा और समान नागरिक संहिता के साथ ही एक कठोर और प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना बहुत जरूरी है।

एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग वाली मेरी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी किया था लेकिन अभीतक किसी का जबाब नहीं आया। आश्चर्य तो तब हुआ जब स्वास्थ्य मंत्रालय ने याचिका का का यह कहते हुए विरोध किया कि जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत ही नहीं है जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय इस मामले में पार्टी भी नहीं है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने एफिडेविट में कहा है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून केंद्र का विषय ही नहीं है जबकि 1976 में 42वां संविधान संशोधन हुआ था और संविधान की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची (समवर्ती सूची) में “जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन” शब्द जोड़ा गया था। 42वें संविधान संशोधन द्वारा केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों को भी “जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन” के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है लेकिन वोटजीवी नेताओं ने 44 वर्ष बाद भी चीन की तरह एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया जबकि देश की 50% से अधिक समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है।

सरकार के पास राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर लिस्ट है और इनके आधार पर आसानी से पता किया जा सकता है कि कितने लोग “हम दो हमारे दो” नियम का पालन कर रहे हैं और कितने लोग “जनसंख्या विस्फोट” कर रहे हैं। कड़वा सच तो यह है कि बहुत से लोग जानबूझकर “हम दो हमारे दस” और “हम दो हमारे बीस” के एजेंडे पर चल रहे हैं।

जो लोग “हम दो हमारे दो नियम” का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं उन्हें एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून से किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी और जो लोग जनसंख्या विस्फोट करने वाले हैं वे एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनने के बाद “हम दो हमारे दो नियम” का पालन करेंगे अर्थात दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या नियंत्रण कानून नितांत आवश्यक है।

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