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क्यों हिंसक हो जाते हैं पति?

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शशिकला पेशे से इंजीनियर हैं। वे स्वयं उसी संस्थान में कार्यरत हैं, जहां उनके पति कार्य करते हैं। विवाह से कुछ समय तो पति का बर्ताव उनके साथ ठीक रहा, लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब शशिकला का प्रमोशन हो गया और उनके पति का नहीं हुआ। पति का अहम यह बर्दाश्त नहीं कर सका। वह प्रतिदिन पत्नी को नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना ढूंढ उस पर हाथ उठाने लगा। प्रतिरोध करने पर वह और अधिक हिंसक हो उठता। एक दिन तो उसने शशिकला का हाथ इतनी जोर से मरोड़ा कि बांह की हड्डी टूट गई। अब शशिकला के सब्र का पैमाना छलक गया। उसने पति के विरुद्ध केस दर्ज कर उससे तलाक ले लिया।
निम्नवर्गीय तबके में पतियों का पत्नी को पीटना एक आम बात है। इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता, कोई शॉक नहीं लगता। यह सब रुटीन है उन लोगों के लिए। इस वर्ग की औरतें भी पिट-पिट कर पक्की हो जाती हैं और उसे बुरा नहीं समझती। आखिर पति है, दो-चार लात-घूंसे लगा भी दिये तो क्या हुआ। यह तो हुआ, वे जब वे होश में रहते हैं। पीकर नशे में वे औरतों पर जो जुल्म करते हैं उनका तो जिक्र ही क्या। नशे में आदमी वैसे भी जानवर बन जाता है।
यहां उसमें बसा पारंपरिक पति इसे अपना अधिकार मान ही पत्नी की पिटाई कर रहा होता है। उसने अपने परिवार में पिता, भाई, चाचा, दादा सभी मर्दों को यही करते देखा है इसलिए महज परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने पौरूष को प्रदर्शित करवाने की मानसिकता ही यहां कारण है।

कई बार सास-बहू की आपस में न पटने पर सास बेटे को बहू के खिलाफ भड़काकर पिटवाती है। कई बार विवाहेत्तर संबंध या दूसरी औरत भी कारण बन जाते हैं। निम्नवर्ग में जहां इस तरह की वारदातों पर पर्दा नहीं डाला जाता, वहीं उच्च और मध्यमवर्ग के लोग इस तरह की बातों को छिपा जाते हैं। सरला जैन एक बहुत बड़े उद्योगपति की पत्नी और अधेड़ उम्र की महिला हैं। पति ने किसी बात पर इतनी बुरी तरह पीटा कि सिर फट गया और टांके लगवाने पड़े। जब डॉक्टर ने पूछा कि चोट कैसे लगी तो पति से पहले वे स्वयं बोल पड़ीं, बाथरूम में पैर फिसल गया था।

इधर, जब से नारी शिक्षा के प्रचार प्रसार के कारण स्त्रियों में जागरुकता बढ़ी है, ज्यादा से ज्यादा स्त्रियां घर से बाहर कार्य कर नौकरीपेशा बन रही हैं। उनमें आत्मसम्मान बढ़ा है, आर्थिक स्वतंत्रता के कारण आत्मविश्वास जागा है। पुरुष को यह बात असहनीय लगने लगी है। उसकी सोच आज भी वही पुरातनपंथी ही है। स्त्री को वह महज अपने सुख का साधन मानकर ही चलता है।

पढ़ी-लिखी, उच्च ओहदों पर कार्यरत स्त्रियां भी पति की हिंसा चुपचाप झेल जाती हैं। अपनी बेइज्जती की कहानी की वे किसी को हवा तक नहीं लगने देतीं। स्त्री शोषण के खिलाफ जुलूस निकालकर नारे लगाना, उपदेश देना और बात है, लेकिन पति को हिंसक होते देख वे भीगी बिल्ली बन जाती हैं। हिंसक पति की पत्नी को तलाक दिलवाना, अलगाव कराकर घर तुड़वाना आसान है, लेकिन ऐसी स्त्री की जिम्मेदारी कौन उठाये। यहां सभी ओर अक्सर चुप्पी लग जाती है। अपने पैरों पर खड़ी होकर वह अपना खर्च उठा सकती है, लेकिन जीवन में आये एकाकीपन का क्या इलाज है। किस्मत से ही सौ में से दो-चार पुनर्विवाह कर सफल जीवन व्यतीत कर पाती हैं, वह भी तब, जब पहले पति से संतान न हो।

यह हैरत में डालने वाली बात है कि जहां शिक्षा के प्रसार ने लोगों की सोच विस्तृत कर उनके ज्ञान में वृद्धि की है, उनमें खुलापन, उदारता आई है, वहीं व्यक्ति भीतर से खोखला होता जा रहा है। हिंसा आज समाज को किस कदर अपने शिकंजे में जकड़ती जा रही है यह सर्वविदित है। पत्र-पत्रिकाएं, फिल्में, कहानियां, टीवी सीरियल हिंसा से भरपूर मिलेंगे। लोगों की जड़ता दूर करने का कहानीकारों के पास मानो यही एक तरीका रह गया है।

इसके अलावा आज की तनाव भरी जिन्दगी, महत्वाकांक्षाओं का पूर्ण न होना, पैसे की हवस, नैतिक मूल्यों का ह्रास होना, यह सब व्यक्ति में कुंठाओं को बढ़ा रहा है, जिसके चलते पुरुष अपना सारा फ्रस्टेशन अपनी पत्नी पर निकालता है, क्योंकि वह उसे आसानी से उपलब्ध है, ईजी टारगेट है। उसे ज्ञात है कि वह सब्र करती है और बाद में उसे जल्दी ही क्षमा भी कर देती है। उसे उससे किसी तरह का भय या खतरा नहीं है।

पत्नी का उससे डरना, उसे अपने पौरूष का प्रदर्शन प्रतीत होता है। पति की हिंसक प्रवृत्ति से निपटने का हर पति पर एक ही फॉर्मूला नहीं आजमाया जा सकता। उनकी मानसिकता को परखते हुए ही ऐसे में उनसे निपटा जा सकता है। कई पति गीदड़ भभकी देने वाले होते हैं, जो अपनी पत्नी का चंडी रूप देख शांत हो जाते हैं। कई पति समाज से डरते हैं। उनकी पत्नी, अगर घर में बड़े बुजुर्ग हैं, उन्हें कह-सुन सकती है। बच्चे बड़े होकर मां के लिए ढाल बन सकते हैं। पत्नी की समझदारी ऐसे में सर्वोपरि है।

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