World Book Day Special: पुस्तकों से वफादार कोई मित्र नहीं होता
World Book Day Special: पुस्तकों से वफादार कोई मित्र नहीं होता

World Book Day Special: पुस्तकों से वफादार कोई मित्र नहीं होता

0 minutes, 6 seconds Read
  • बाल मुकुन्द ओझा | जयपुर

World Book Day Special: समय परिवर्तनशील है। पुस्तकें कल की बात होगई है। आज इंटरनेट का भूत युवा पीढ़ी पर सवार है। आज का युवा प्रेमचंद को नहीं जानता। महादेवी वर्मा, दिनकर, विमल चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त, शरत चंद्र को नहीं पहचानता। इसका एकमात्र कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। स्कूल में पुस्तकालय है मगर वहां किशोर नहीं जाता। उसे मोबाइल की लत लग गयी है। अध्यापक भी पुस्तकालय जाने को प्रेरित नहीं करता इसलिए वह किसी नामचीन लेखक को नहीं जानता।

पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र थी मगर अब नहीं है। स्कूल की छोड़ों घर पर अभिभावक भी उन्हें अच्छी पुस्तकों से परिचित नहीं करवाते। युवा के लिए पाठ्यपुस्तक या कोचिंग की पुस्तकें ही सब कुछ है। कालजयी रचनाकार बाबू देवकी नंदन खत्री की पुस्तकों का ज्ञान भी नहीं है। पुस्तकें अब पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही है। चिंतन की बात तो यह है की पुस्तकें कैसे पुस्तकालय से बाहर निकले और युवा का रुझान इनके प्रति कैसे हो यह विचारने की बात है।

23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day Special) है। इंटरनेट के युग और भारी दौड़ भाग से बदली जीवन शैली के बीच इस समय कोरोना महामारी के बीच आप फुर्सत में है ऐसे में पुस्तक को आप अपना साथी बना सकते है। यदि पुस्तक आपके पास नहीं है तो इंटरनेट का सहारा ले सकते है। पुस्तकें निश्चित रूप से आपका ज्ञान बढ़ाएगी, इसमें कोई दो राय नहीं है।

अगर सच्ची दोस्ती चाहिए तो किताबों को दोस्त बना लो क्योंकि वो कभी दगा नहीं देती है और ना ही झूठ के रास्ते पर चलती।

लेकिन इंटरनेट के युग में व्यक्ति किताबों से काफी दूर हो गया है इसी बात के मद्देनजर और लोगों के दिलों में किताबों के प्रति प्रेम जगाने के लिए विश्व पुस्तक दिवस की शुरूआत हुई। विश्व पुस्तक दिवस दुनिया भर में 23 अप्रैल को मनाया जायेगा। पुस्तकें हमारे जीवन को सही दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और हमेशा हमारे साथ एक सच्चे दोस्त की तरह रहती हैं, बशर्ते हमारे अंदर पढ़ने और सीखने का जज्बा हो। एक जमाना था जब किताबें सभी की अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन बढ़ता गया किताबें भी हमसे दूर होती चली गईं। अब किताबों की जगह मोबाइल, कंप्यूटर आदि इंटरनेट माध्यमों ने ले ली है।

World Book Day Special: आज का युवा हो रहा इंटरनेट का शौकीन

आज का युवा पुस्तक का मतलब पाठ्यपुस्तक ही समझता है। स्कूल और कॉलेज में पुस्तक लाइब्रेरी जरूर है मगर उसमें जाने का समय विद्यार्थी के पास नहीं है। कक्षा में विषयों के पीरियड अवश्य होते है खेलकूद का भी समय होता है मगर पुस्तक पढ़ने अथवा पुस्तकालय का कोई पीरियड नहीं होता। अध्यापक भी बच्चों को पुस्तक या सद साहित्य पढ़ने संबंधी कोई जानकारी नहीं देते। यही कारण है कि इन्टरनेट के इस युग में हम पुस्तक को भूल गए है।

पढ़ने का मतलब इस संचार क्रांति में इन्टरनेट ही रह गया है युवा चैबीसों घंटे हाथ में मोबाइल लिए इन्टरनेट पर चैट करते मिल गाएंगे। वे पुस्तक से परहेज करने लगे है मगर मोबाइल को रिचार्ज करना नहीं भूलते। उन्हें घर या बाहर यह बताने वाला कोई नहीं है की पुस्तकों का भी अपना एक संसार है। वे प्रेमचंद की किसी पुस्तक के बारे में नहीं जानते। कॉमेडियन कपिल के शो के बारे में जरूर जानते है।

शरत चंद्र या हरिशंकर परसाई की किसी शख्सियत से वाकिफ नहीं है। उन्हें पुस्तक अथवा पुस्तक की महिमा से कोई लेना देना नहीं है। वे पुस्तक मेले में जाना नहीं चाहते। वे किसी अच्छे मॉल में जरूर जाना चाहते है जहाँ उन्हें अपनी मन पसंद खाने पीने और पहनने की वस्तु मिल जाये।

पुस्तक या किताब लिखित या मुद्रित पेजों के संग्रह को कहते हैं। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है। पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं। इनमें लेखकों के जीवन भर के अनुभव भरे रहते हैं। अच्छी पुस्तकें पास होने पर उन्हें मित्रों की कमी नहीं खटकती है वरन वे जितना पुस्तकों का अध्ययन करते हैं । पुस्तकें उन्हें उतनी ही उपयोगी मित्र के समान महसूस होती हैं । पुस्तक का अध्ययन मनन और चिंतन कर उनसे तत्काल लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

कहानियों के जरिये बच्चे बहुत सी नई चीजों को सीखते हैं। पुस्तकों का अध्ययन कम हो गया है। पुस्तकें ज्ञान की भूख को मिटाती है। किताबें संसार को बदलने का साधन रही हैं। जीवन में पुस्तकें हमारा सही मार्गदर्शन कराती हैं। एकान्त की सहचारी हैं । वे हमारी मित्र हैं जो बदले में हम से कुछ नहीं चाहती । वे साहस और धैर्य प्रदान करती हैं । अन्धकार में हमारा मार्ग दर्शन कराती हैं ।

  • लेखक जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
author

Pratima Shukla

प्रतिमा शुक्ला डिजिटल पत्रकार हैं, पत्रकारिता में पीजी के साथ दो वर्षों का अनुभव है। पूर्व में लखनऊ से दैनिक समाचारपत्र में कार्य कर चुकी हैं। अब ई-रेडियो इंडिया में बतौर कंटेंट राइटर कार्य कर रहीं हैं।

Similar Posts

error: Copyright: mail me to info@eradioindia.com