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युगद्रष्टा

santosh tripathy khwabon ka veerana

काले सायों ने घेरा है,
जबकि घना अंधेरा है।
लंबी है काली रात बड़ी;
अभी दूर बहुत सवेरा है।।

अरमानों के उजाले,
चकनाचूर हो चुके हैं।
तन्हा अंधेरे में रहने को;
हम मजबूर हो चुके हैं।।

उम्मीद की किरण भी,
कहीं दिखती नहीं है।
उजालों में रहने की ख्वाहिश;
फिर भी मिटती नहीं है।।

इस अंधेरी रात में,
भला ये पास कौन आता है।
यह यमराज तो नहीं हैं;
फिर भी पसरा क्यूं सन्नाटा है।।

काली दुनिया का राजा ये,
क्यूं मेरे पास आया है।
पहचाना सा लग रहा;
जब और अधिक नियराया है।।

अपनी अब तक की,
गलतियों से अनजान है।
सच कहूं्! ये तो;
मेरे अन्दर का शैतान है।।

अलविदा कहने आया है,
इसको मुझसे दूर बहुत जाना है।
नेकी-बदी से चलती है दुनिया;
ऐसा अब इसने भी माना है।।

बांधकर ले जा रहा ये गट्ठर,
मेरी कमजोरियों, नाकामियों एवं दुर्भाग्य का,
अंधकार मिटेगा अब जीवन का;
मैं भी युगद्रष्टा बन सकूंगा समाज का।।

यह कविता काव्य संग्रह ‘ख्वाबों का वीराना’ पुस्तक से ली गई है। इस पुस्तक के रचयिता हैं वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार श्री संतोष त्रिपाठी जी। उनका पूरा परिचय निम्न प्रकार है-
नाम- संतोष कुमार त्रिपाठी ‘प्रखर’
पिता का नाम- स्व. श्याम शंकर त्रिपाठी
माता का नाम- श्रीमती जड़ावती त्रिपाठी
ग्राम- श्रीकांत का पुरवा
ग्रामसभा- अमरौना
विकास खण्ड क्षेत्र- लक्ष्मणपुर
तहसील- लालगंज
थाना- जेठवारा
जनपद- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा- परास्नातक- राजनीति विज्ञान एवं जनसंचार।
कार्यक्षेत्र- पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय हैं।

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