आजादी के बाद महज दो जवान हुए शहीद
गहमर गांव के लोग मां कामाख्या को अपनी कुलदेवी मानते हैं। आजादी के बाद 1961 की लड़ाई में जवान भानु प्रताप सिंह और 1971 की लड़ाई में शौकत अली ग्रेनेडियर शहीद हुए थे। उसके बाद आज तक कोई शहीद नहीं हुआ। मान्यता है कियह मां कामख्या के आशीर्वाद से है। हर सैनिक छुट्टी पर आने के बाद मां कामख्या का दर्शन करना नहीं भूलता है, वहीं सरहद पर जाने से पहले सैनिक मां कामाख्या धाम का रक्षा सूत्र अपनी कलाई पर बांध कर रवाना होता है।
कसरत करते दिखते हैं गांव के युवा, बेटियां भी हो रहीं सशक्त
यहां की लड़कियां पुलिस, टीचिंग एवं अन्य नौकरियों में कार्यरत हैं। उन्हें फक्र है कि उनके घर के लोग सरहद की सुरक्षा में जुटे हैं। गांव के बीच शहीदों के नाम का स्मारक है। पार्क भी बना है। जिसमें सुबह-शाम युवक सेना भर्ती की तैयारी करते दिखते हैं। गांव के अतुल सिंह बताते हैं “हम लोग भले ही सेना की तैयारी में जी-जान से जुटे हैं, किंतु लगभग 37 सालों से गांव में सेना भर्ती न होने से नाराजगी भी है। अगर सरकार ध्यान देती तो यहां से और भी ज्यादा संख्या में युवा देश की सेवा में खुद को समर्पित कर पाते।”
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