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कविता: हम मोहब्बत वतन से करेंगे

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ना किसी गुलबदन से करेंगे
ना किसी जानेमन से करेंगे
हम मोहब्बत वतन से करेंगे

उनका दुनिया में कुछ हित नहीं है
राष्ट्र को जो समर्पित नहीं है
वह जगत में कहीं जाकर रह ले
राष्ट्र के बिन सुरक्षित नहीं है

इसकी रक्षा लगन से करेंगे
हम मोहब्बत वतन से करेंगे

फूल में खुशबू रंगत चमन की
जब तलक है सुरक्षा वतन की
इतना अधिकार अब हम न देंगे
चाहे जो भी करें मर्जी मन की

यह उद्घोष रण से करेंगे
हम मोहब्बत वतन से करेंगे

मजहबों ने हमें क्या दिया है
आदमी से ही उल्टा लिया है
आग संसार भर में लगा दी
खून इंसानियत का पिया है

तोबा हम इस चलन से करेंगे
हम मोहब्बत वतन से करेंगे

सांप बच जाए हम से निकलके
अब ना बैठेंगे हम हाथ मलके
प्रांत हो या किसी भी हो दल के
देशद्रोही को रखदें कुचल के

गर्जना घोर घन से करेंगे
हम मोहब्बत वतन से करेंगे

सत्यपाल सत्यम | मेरठ
9897330612

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