Nadanusandhan Kya Hai : नाद एवं नादानुसंधान का वर्णन
Nadanusandhan Kya Hai : नाद एक प्रकार की ध्वनि है जो एक बार उच्चारित करने पर सदैव गूंजती रहती है। हठयोग में नाद के माध्यम से उच्चावस्था की प्राप्ति की जा सकती है ऐसा वर्णन मिलता है अर्थात् नाद विधि का इस्तेमाल कर समाधि अवस्था प्राप्त की जा सकती है।
नाद दो प्रकार के होते हैं जिनके अलग-अलग अर्थ होते हैं-
(I) आहत नाद: ऐसी ध्वनि जिसके गूंजने से दु:ख का आभास होता है या ऐसी आवाजें जो सुनने में अच्छी नहीं लगतीं। ये आवाजें टकराव के पश्चात सुनाई देती हैं।
(II) अनाहत नाद: ऐसी ध्वनियां जिनके सुनने से मन आनंदित हो उठता है। ये आवाजें किसी टकराव के पश्चात नहीं बल्कि स्वत: उठतीं रहती हैं। यह ध्वनियां मनुष्य के अन्तर्मन में उठतीं हैं।
आपको बता दें कि सम्पूर्ण ब्रहमांड में एक ध्वनी सदा गूंज रही है किन्तु बिना सजग हुए हम इस ध्वनि को सुन नहीं सकते। सांसारिक शोर-शराबे या कोलाहाल में यह ध्वनी विलीन हो जाती है। अनंत काल से बिना किसी संयोजन के यह ध्वनी गूंज रही है। यह ध्वनी दो पदार्थों के टकराने से नहीं निकलती बल्कि वगैर किसी टकराहट या चोट के यह ध्वनी सदा से गूंज रही है इसलिए इसे अनाहत नाद या अनहद नाद भी कहा जाता है।
नादानुसंधान दो शब्दों से मिलकर बना है, नाद + अनुसंधान। नाद का अर्थ है ध्वनि या आवाज तथा अनुसंधान का अर्थ है बार-बार ध्वनियों को सुनना उनका मनन करना या ध्वनि पर ध्यान लगाना।
मुक्तासन या सिद्धासन में बैठकर, शाम्भवी मुद्रा लगाएं। कान, आंख, नाक व मुंह को हाथ की विभिन्न अगुलियों से बंद कर दाहिने कान से अन्तर्मन की उठने वाली आवाजों को बार-बार सुनना होता है।
Nadanusandhan Kya Hai: प्रारम्भ में आपको एक ध्वनी सुनाई देगी जो हो सकता है आपके ब्लड सर्कुलेशन या हृदय के धड़कने के कारण सुनाई दे। जब थोड़ा और गहरे में सुनेंगे तो आपको एक ऐसा ध्वनी सुनाई देगा जिसे आप कभी नहीं सुने हैं।
यह ध्वनी कैसी है पृथ्वी पर इसका कोई उदाहरण नहीं है। लेकिन पूरे होश व सजगता के साथ ही हमें इस ध्वनि को सुनना है। अभ्यास बढाने पर बाद में बिना किसी प्रयास के यह ध्वनी आपको सुनाई देने लगेगा।
योग में परमात्मा प्राप्ति के अनेकों साधन हैं, भिन्न-भिन्न विधियों के प्रयोग के पश्चात जब साधक तत्वज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ हो जाते हैं तब ऐसे लोगों के लिए गुरू गोरक्षनाथ जी ने नादनुसंधान या नाद की उपासना का वर्णन किया है।
नाद की चार अवस्थाएं होती हैं आरम्भावस्था, घटावस्था, परिचयावस्था व निष्पत्यावस्था। इसके किस अवस्था में क्या प्रभाव पड़ता है उसके बारे में यहां एक टेबल के माध्यम से समझ सकते हैं-
अवस्थाएं | किस चक्र पर प्रभाव | किस ग्रन्थि का भेदन | प्रभाव |
आरम्भावस्था | अनाहत चक्र | ब्रह्म ग्रन्थि | झण-झण की आवाज सुनाई देती है। इस अवस्था में साधक शून्यावस्था में होता है एवं प्रसन्न चित्त होता है। |
घटावस्था | विशुद्धि चक्र | विष्णु ग्रन्थि | भैरी नामक यंत्र की आवाज सुनाई देती है। साधक ज्ञानी व देवतुल्य हो जाता है। |
परिचयावस्था | मनस चक्र | किसी ग्रन्थि का नहीं | साधक परमानंद अवस्था में हो जाता है। इसमें ढोल की ध्वनि सुनाई देती है। |
निष्पत्यावस्था | आज्ञा चक्र | रुद्र ग्रन्थि | वीणा की झंकार का स्वर सुनाई देता है। अनन्त क्षमता हो जाती है। |
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