ओशो महापरिनिर्वाण दिवस: ध्यानोत्सव व संगीत ने बांधा समा, सन्यासी हुये मस्त
ओशो महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर मेरठ में संन्यासियों ने खूब मस्ती की। आनंदित भाव से सुबह 9:00 बजे से लेकर शाम के 6:00 बजे तक ध्यान उत्सव का कार्यक्रम चलता रहा।
मेरठ कैंट स्थित मधु वाटिका में सभी सन्यासियों ने एकत्रित होकर ओशो पर निर्वाण दिवस को आनंदित स्वरूप में मनाया और सभी ने ध्यान व प्रेम के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम स्थल के प्रदाता स्वामीआनन्द आलोक ने सभी सन्यासियों का प्रेम पूर्वक स्वागत किया और कहा कि पूरे साल में होने वाले ओशो के 5 बड़े कार्यक्रम अब से मधु वाटिका में ही आयोजित होंगे जिसमें सभी सन्यासियों को एक साथ, एक स्थान पर बैठकर ध्यान और प्रेम की बातें करने का मौका मिलेगा।
ओशो भारत के नहीं बल्कि पूरे दुनिया के एक ऐसे रहस्य दर्शी गुरु थे जिनके इशारे पर कोई कुछ भी करने को तैयार हो जाता था। उनके आध्यात्मिक साधना का ही परिणाम था कि उनके पीछे चलने वाले फॉलोवर्स का हुजूम देखा जाता था।
Osho Fallowers
उन्होंने कहा कि जब तक उनकी सास है तब तक यह स्थान साल के पांचों कार्यक्रमों के लिए ओशो को समर्पित रहेगा। स्वामी आनंद आलोक यानी मधु जी ने मधु वाटिका का निर्माण वैसे तो निजी व्यवसाय हेतु व्यवस्थित किया है लेकिन ओशो के प्रति प्रेम ने उनको इतना आह्लादित कर दिया कि वह सर्व स्वीकार भाव से अपनी व्यवस्था को न्यौछावर करने में जुट गए।
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कहते हैं कि संगीत का ध्यान में बेहद प्रभावशाली स्थान है और इसी का नमूना ओशो महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर देखने को मिला उस वक्त जब सूफी संगीत की मधुर आवाज बजनी शुरू हुई और स्वामी सुनील गंभीर के माइक पर संचालन की मीठी मीठी आवाजाें ने ऐसे व्यक्तियों के भी पांव में गति डाल दी जिन्होंने नृत्य ना आने का बहाना लेकर खुद को अलग किए हुए थे।
#ओशो_महापरिनिर्वाण_दिवस के अवसर पर मेरठ में ऐतिहासिक रूप से सन्यासियों ने एकत्र होकर अपनी उपस्थिती दर्ज कराई। #ध्यान, #सूफी और #आनंद की बरसात में लोगों के जीवन का एक-एक कोना भीग गया। तश्वीरों के माध्यम से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लोगों ने कितनी मस्ती की और लुत्फ उठाया।
ओशो महापरिनिर्वाण दिवस के खूबसूरत कार्यक्रम को सजाने में स्वामी मुनीष यादव ने पूरी मेहनत की, स्वामी रवि रस्तोगी के अतिथि भाव ने सबका दिल जीता। खूबसूरत कार्यक्रम को अंजाम देने में स्वामी राजीव रस्तोगी, स्वामी योगमूर्ति (चमन प्रकाश गोयल), स्वामी राजीव जी दवाई वाले, स्वामी दिनेश सक्सेना, स्वामी धर्मानन्द जी, निर्दोष बलविंदर (रवि रस्तोगी), स्वामी शांतम पर्वत जी, स्वामी राजीव गुप्ता (इवेंट वाले), स्वामी राजबहादुर, स्वामी आनंद असीम, स्वामी नोहारी लाल,स्वामी सुरेंद्र कुमार, मा शालिनी जी, मा चंचल जी, मा अर्चना जी, स्वामी अभय जी, मुनीष भारद्वाज, अमित निर्वाण, जितेंद्र जी के अलावा दर्जनों सन्यासी मौजूद रहे।
कहते हैं कि रजनीश ने अपना नाम और सो अपने जीवन के अंतिम समय में रखा। आपको बता दें कि ओशो अंग्रेजी कवि विलियम जेम्स की कविता और ओशनिक एक्सपीरियंस से लिया गया है जिसका अर्थ होता है सागरी अनुभव यानी समुद्र जैसे विराट या विस्तृत होने का एक्सपीरियंस।
ओशनिक एक्सपीरियंस ऐसे समझे जैसे कि एक बूंद सागर में गिरे तो वह सागर बन जाती है ठीक उसी तरह से आत्मा परमात्मा में मिलती है तो वह परमात्मा बन जाती है। रजनीश ने ओशनिक एक्सपीरियंस का अनुभव करते हुए एक नया शब्द अपने लिए बनाया।
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