Whats is NATO in Hindi || जानें रूस को क्यों खटक रहा है यह संगठन
Whats is NATO in Hindi: युद्ध की क्या परिभाषा हो सकती है? इंसान को इंसान से बेपनाह नफरत सिखाने की पाठशाला। मानवता को दुत्कारने का खुला निरंकुश मंच या एक जादुई मशीन जिसमें एक तरफ से मनुष्य डालों तो दूसरी तरफ से कसाई निकलता है। कितना अच्छा होता कि काश दुनिया के तमाम बड़े झगड़े प्रेम से सुलझाए जा सकते। तब दुनिया को बेमतलब खून खराबे की जरूरत नहीं होती। फिर बात वहीं आ जाती है कि ऐसा होता तो क्या होता। मगर ऐसा हो रहा है कि रूस और यूक्रेन का झगड़ा उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां से शांति की बातें बकवास दिखने लगी है। एक बार फिर युद्ध की आग में इंसानियत को झोंकने की तैयारियां हो चुकी हैं।
यूक्रेन पर रूस के हमले के साथ ही ऐसी जंग का आगाज हो चुका है जिसकी चिंगारी से पूरी दुनिया में आग लग सकती है। लंबे वक्त से इसकी आशंका जताई जा रही थी। लेकिन रोका नहीं जा सका। अब सवाल ये है कि क्या वाकई इस जंग को रोकने की वैसी कोशिश नहीं हुई जैसी होनी चाहिए थी। आखिर क्यों रूस ने उस देश पर हमला कर दिया जो 30 साल पहले उसका ही साथी था। इसमें एक नाम है जो खूब चर्चा में है इंग्लिश में NATO और हिंदी में नॉटो बोले या फिर नाटो भी कह सकते हैं।
लेकिन इसका फुल फॉर्म जरूर याद कर लीजिए शायद किसी परीक्षा में पूछ लिया जाए। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन हिंदी में कहे तो उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन। अभी वाला रूस और यूक्रेन का झगड़ा इसी नाटो को लेकर हो रहा है। यूक्रेन नाटो के साथ जुड़ने की जिद पर अड़ा रहा जो पुतिन को किसी भी सूरत में गंवारा नहीं था। रूस के पौने दो लाख सैनिक यूक्रेन के बाहर तंबू लगाकर खड़े हो गए और देखते ही देखते राजधानी कीव पर चढ़ाई भी कर दी। क्या है नाटो जिससे रूस को इतनी नफरत है जिससे जुड़ने की इच्छा रखने की खबर से ही पुतिन ही फौज ने यूक्रेन में तबाही मचाना शुरू कर दिया। क्यों नाटो देशों की सेनाएं यूक्रेन की सहायत के लिए मैदान में नहीं कूदी। क्या ये संगठन रूस को पुतिन को टक्कर दे सकता है। इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमें नाटो का इतिहास समझना होगा।
कहानी की शुरुआत इतिहास से करते हैं। साल 1945 की बात है दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो चुका था। सोवियत संघ और अमेरिकी दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच प्रभुत्व की लड़ाई जिसके बारे में आपने पढ़ा भी होगा और हम भी आपको कई दफा बता चुके हैं। फुल्टन भाषण व टू्रमैन सिद्धांत के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी करते हुए और स्टालिन की रेड आर्मी ने बर्लिन में झंडा फहरा दिया था।
अमेरिका को डर लगा कि स्टालिन के साम्यवाद की ये लहर ऐसी ही चली तो ये पश्चिमी यूरोप में भी पहुंच जाएगी। 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी की घटना ने अमेरिका के डर को और भी पुख्ता कर दिया। उसे लगा कि सोवियत संघ से निपटने के लिए एकजुट होने का वक्त आ गया है। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएं अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
4 अप्रैल 1949 को ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्सेमबर्ग ने बूसेल्स की संधि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। ये पूंजीवादी देशों की सोवियत विस्तार को चुनौती देने के लिए बना सैन्य संगठन था। इन देशों ने एक दूसरे को एक वादा किया है। कैसा वादा- एक दूसरे को खतरे की स्थिति में सहायता देने का वादा यानी सामूहिक सुरक्षा का वादा। किसी एक देश पर हमला तो माना जाएगा सबके सब देशों पर हमला।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक संधि पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका। शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार हो रहा।
इस गुट में अमेरिका सबसे ताकतवर था इसलिए उसे इसका मुखिया मान लिया गया। 18 फरवरी 1952 और 6 मई 1955 के बीच तीन और देशों को नाटो में शामिल किया गया। इनमें पश्चिम जर्मनी भी शामिल था। इससे सोवियत यूनियन की चिंता और बढ़ी, क्योंकि पूर्वी जर्मनी सोवियत समर्थक था।
अलबानिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, कनाडा, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्तोनिया, फ़्रान्स, जर्मनी, यूनान, हंगरी, आइसलैण्ड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, मॉन्टिनीग्रो
अमेरिका ने सोवियत के खिलाफ इतना बड़ा गठबंधन बना लिया तो ऐसे में वो क्या कर रहा था। उसने 1955 में वारसा पैक्ट की स्थापना की। ये कॉम्युनिस्ट देशों का साझा सुरक्षा संगठन था। यह समझौता अल्बेनिया (1968 तक), बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और सोवियत संघ के बीच हुआ। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध शुरू हो चुका था, जो समय के साथ बढ़ता चला गया। आज यूक्रेन की जो हालत है, उसे 1991 की घटनाओं से भी जोड़कर देखना जरूरी है।
असल में 1988 से सोवियत संघ का शुरू हुआ विघटन 26 दिसंबर 1991 को पूरा हुआ। तब सोवियत संघ टूटकर 15 देशों में बंट गया। इसमें सबसे बड़ा देश रूस है। 1991 में वारसा पैक्ट भी खत्म कर दिया गया। 1988 से 1991 के बीच जब सोवियत संघ विघटन की तरफ बढ़ रहा था, वहीं 1990 में पश्चिम जर्मनी और पूर्वी जर्मनी का विलय हो गया। माना जाता है कि इस विलय के समय मौखिक समझौता हुआ था कि नाटो अपना विस्तार पूर्वी यूरोप में नहीं करेगा, लेकिन पश्चिमी देशों ने यह वादा नहीं निभाया। 1999 में पोलैंड, हंगरी और चेक रिपब्लिक नाटो में शामिल हो गए। नाटो (Whats is NATO in Hindi) ने रूस को बड़ा झटका 2002 में दिया।
जब सोवियत संघ के सदस्य रहे लिथुआनिया, लातविया और ऍस्तोनिया जैसे पांच देश नाटो में शामिल हो गए। अब नाटो की पहुंच रूस के दरवाजे तक हो गई। रूस को डर है कि नाटो सदस्य देशों के जरिये अमेरिका अपने घातक हथियारों की तैनाती रूस के करीब कर रहा है। वहीं, रूस में जब येल्तसिन ने 1999 में राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया तो पूतिन शुरू में कार्यवाहक और बाद में राष्ट्रपति बने। तब से लेकर आज तक वह रूस की शीर्ष सत्ता में हैं।
कभी प्रधानमंत्री तो कभी राष्ट्रपति के रूप में। अब जब नाटो ने यूक्रेन के जरिये रूस के दरवाजे पर दस्तक देने की योजना बनाई तो पुतिन ने यूक्रेन पर हमला ही कर दिया। पुतिन के इस चाल ने नाटो को चकमा दे दिया है क्योंकि यूक्रेन अभी तक नाटो का सदस्य नहीं बना है और नाटो का कोई भी देश चाहकर भी यूक्रेन में कोई भी फौज नहीं भेज सकता है।
नाटो (Whats is NATO in Hindi) संधि के अनुच्छेद 4 में उस मामले को शामिल किया गया है जब कोई सदस्य देश किसी अन्य देश या आतंकवादी संगठन से खतरा महसूस करता है। 30 सदस्य देश तब धमकी वाले सदस्य के अनुरोध पर औपचारिक परामर्श शुरू करते हैं। वार्ता यह देखती है कि क्या कोई खतरा मौजूद है और इसका मुकाबला कैसे किया जाए, निर्णय सर्वसम्मति से आए। हालांकि, अनुच्छेद 4 का मतलब यह नहीं है कि कार्रवाई करने का सीधा दबाव होगा।
इस परामर्श तंत्र को नाटो के इतिहास में कई बार शुरू किया गया है। उदाहरण के लिए एक साल पहल, जब सीरिया के हमले में तुर्की के 39 सैनिक मारे गए थे। उस समय नाटो ने परामर्श करने का फैसला किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की।
तुर्की द्वारा 2003 इराक युद्ध, जून 2012 में सीरिया द्वारा तुर्की सैन्य जेट को मार गिराने के बाद, अक्टूबर 2012 में तुर्की पर सीरियाई हमलों और उनके पलटवार के बाद और फरवरी 2020 में बढ़ते तनाव के बीच उत्तर पश्चिमी सीरिया के हमले के दौरान इसे अब तक चार बार लागू किया गया है। अनुच्छेद 4 नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 से अलग है। वह बाद में पूरे गठबंधन द्वारा सैन्य सहायता देता है यदि सदस्य राज्यों में से एक पर हमला किया जाता है। नाटो संधि केवल सदस्य देशों पर लागू होती है। यह देखते हुए कि यूक्रेन गठबंधन का हिस्सा नहीं है तो अनुच्छेद 4 उस पर लागू नहीं होता है।
अनुच्छेद पांच उत्तरी अटलांटिक संधि का हिस्सा है, जिस पर 1949 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें सदस्य इस बात से सहमत हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में उनमें से किसी एक के खिलाफ सशस्त्र हमले को उन सभी के खिलाफ हमला माना जाएगा। इसमें इस बात पर सहमति जताई गई है कि उनमें से प्रत्येक सदस्य देश सशस्त्र बल के उपयोग सहित, आवश्यक समझी जाने वाली कोई भी कार्रवाई करके हमला करने वाले पक्षों को सबक सिखाया जाएगा।
आज नाटो के सभी सदस्यों में गठबंधन के 30 सदस्य हैं, और उन सभी ने आर्टिकल फाइव पर हस्ताक्षर किए हैं। 24 फरवरी के एक बयान में, नाटो ने कहा कि “वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 के प्रति उसकी प्रतिबद्धता लोहे की कवच जैसी है और हम एक दूसरे की रक्षा के लिए एकजुट हैं। अनुच्छेद पांच केवल नाटो सदस्यों पर लागू होता है, और यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है। केवल 2001 में अमेरिका पर 9/11 के हमलों के बाद अनुच्छेद 5 का उपयोग किया गया था। नाटो ने साथ में एक मिशन भेजा था।
सीएनबीसी के अनुसार, यूक्रेन, पोलैंड, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया पर रूस के हमले के बाद अनुच्छेद चार को लागू किया गया। अनुच्छेद चार में कहा गया है कि सदस्य देशों में से किसी की क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता या किसी भी दल की सुरक्षा को खतरा होगा, एक साथ परामर्श करेंगे। अनुच्छेद चार खतरों से संबंधित है और अनुच्छेद पांच हमलों से संबंधित है।
अनुच्छेद पांच में इस बात की आजादी दी गई है कि प्रत्येक देश संप्रभुता से निर्णय करेगा कि वह किसी हमले का जवाब कैसे देगा। यदि अनुच्छेद पांच लागू किया जाता है, “यह अभी भी सदस्य राज्यों पर निर्भर है कि वे इसके जवाब में कौन सा सैन्य बल लागू करना चाहते हैं।
आंकड़ों से पता चलता है कि रूस की सेना अमेरिका के बाद दूसरी बड़ी सेना है। सशस्त्र बलों के आंकड़े बताते हैं कि देश में लगभग 1,154,000 सक्रिय सैनिक हैं। सेना को रिजर्व में रखे गए लगभग 250,000 और सैनिकों का समर्थन प्राप्त है। रूस के पास लगभग 6,400 वॉरहेड की आपूर्ति के साथ, परमाणु हथियारों का दुनिया का सबसे विशाल संग्रह है।
नाटो सदस्यों के पास लगभग 1,346,400 कर्मियों की सेना है। उनमें से मोटे तौर पर 165000 सैनिक तैनात हैं, जबकि 799,500 रिजर्व सैनिक हैं। नाटो (Whats is NATO in Hindi) 30 देशों का एक ग्रुप है। लेकिन जो सैनिक सक्रिय हैं, वही युद्ध की स्थिति में सबसे पहले उतारे जाएंगे।
यूक्रेन नाटो का मेंबर नहीं है बल्कि उसका साझेदार है। मतलब नाटो में उसके शामिल होने के दरवाजे खुले हैं। अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो रूस की दो तिहाई से ज्यादा पश्चिमी सीमा नाटो की पहुंच में आ जाएगी। बस इसी बात पर रूस को आपत्ति है। जिसे रोकने के लिए वो मरने मारने पर उतारू है।
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