त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहां कठिन शब्द से तात्पर्य है, उस पर्व में पवित्रता, स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना। छठ महापर्व ऐसा ही एक त्योहार है, जिसकी परम्परा का स्रोत रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है।
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है।
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ।
राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
ये हैं छठ पर्व के नियम
छठ पूजा का पर्व नहाय-खाय के साथ शुरू होता है. इस दिन घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई वगैरह की जाती है और सात्विक भोजन किया जाता है. इस दिन से घर में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल बंद हो जाता है.
छठ का प्रसाद बनाते समय साफ-सफाई का बेहद खयाल रखा जाता है. इस प्रसाद को केवल वही लोग बना सकते हैं, जिन्होंने ये व्रत रखा हो. प्रसाद में इस्तेमाल किए जाने वाले अनाज को अच्छी तरह से साफ किया जाता है. इसे घर पर ही धोकर, कूटकर और पीसकर बनाया जाता है।
इस अनाज को कोई जूठा न करे या गंदे हाथों से न छुए, इस बात का विशेष खयाल रखा जाता है. ये प्रसाद चूल्हे पर बनाया जाता है और इसे बनाते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. प्रसाद को हमेशा हाथ-मुंह धोने के बाद ही हाथ लगाया जाता है।
छठी मैया को चढ़ाई जाने वाली हर चीज अखंडित होनी चाहिए. ऐसे में पूजा में उन फल और फूल को भी इस्तेमाल नहीं किया जाता, जिन्हें किसी पक्षी ने जूठा किया हो, या किसी अन्य कारणवश वो थोड़े भी कट गए हों। पूजा के दौरान पहनी जाने वाली साड़ी भी अखंडित होनी जरूरी है यानी उस पर सुई वगैरह से फॉल आदि न लगाई गई हो, कहीं से कटी-फटी न हो. एकदम कोरी और नई साड़ी ही इस पूजा में पहनी जाती है।
पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा नए सूप और थाल वगैरह इस्तेमाल किए जाते हैं. छठ का व्रत रखने वालों को चटाई बिछाकर जमीन पर सोने का नियम है. उनके लिए बिस्तर पर सोना वर्जित बताया गया है। आज़ यह लोक आस्था का पर्व केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अत्यंत श्रद्धा एवं हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है।
यह त्योहार केवल एक व्यक्ति या परिवार का नहीं होता बल्कि पूरे समाज को आपस में जोड़ कर रखता है। इस पर्व को केवल हिन्दू धर्म के लोग नहीं मनाते बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी पूरे आस्था एवम विधि पूर्वक पर्व करते हैं। इस पर्व में प्रयोग होने वाले पूजन सामग्री सभी धर्मों और जाति के लोगों के सहयोग से एकत्रित होता है। आज़ आधुनिकता के दौड़ में जब सेल्फी लेना और फ़ोटो खींचना सबसे ज़रूरी कार्य हो गया है, तब हम सभी अपने सांस्कृतिक विरासत को धीरे धीरे खत्म कर रहे हैं।
बांसफोर समाज के लोग सालों भर मेहनत करते हुए छठ पूजा के लिए सिपुली, दौरा, चंगेला बनाते हैं और बहुत ही कम क़ीमत में उपलब्ध कराते हैं, लेकिन आज हम प्लास्टिक या पीतल का सिपूली, दौरा ख़रीद रहे हैं, जिससे एक समाजिक पीढ़ी का व्यवसाय प्राभावित हो रहा। सोशल मीडिया पर वोकल फॉर लोकल की मुहिम का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि आपसे कई परिवारों ने उम्मीद लगा रखी है, की सामान बिकेगा तो उनकी भी कुछ जरूरतें पुरी होंगी।
इस त्योहार से एक उम्मीद प्रकृति ने भी लगा रखा है, गांव के पोखर तालाब सुख रहे हैं, उन्हें बचाना होगा, नहीं तो आने वाली पीढ़ी कहां अर्घ्य देगी । इस पर्व में ज़रूरी फ़ल फूल की खेती बढ़ानी होगी, उन किसानों के हाथों को मज़बूत करना होगा। आप शहर से गांव आएं या जहां हैं, वहीं छठ मनाएं, लेकिन इसी बहाने अपने कमाई का कुछ हिस्सा प्रकृति संरक्षण हेतु भी लगाएं। छठ पर्व करने वाला हर परिवार अपनी जिम्मेदारी निभा ले तो किसी भी सरकार को कोई योजना बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमारा त्योहार होगा, पर्यावरण स्वच्छ रहेगा, शुद्ध जल मिलेगा, आपसी सहयोग से प्रेम और भाई चारा कायम होगा।