सुलतानपुर के अखंडनगर स्थित श्रीविश्वनाथ शिक्षण संस्थान कलान में भगवान श्रीराम चंद्र की जीवनगाथा पर आधारित श्रीराम कथा के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय कथा वाचक आचार्य शान्तनु महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज भी वह गुरुकुल वैदिक परंपरा प्रासंगिक है।
क्योंकि आज हम शिक्षित तो बना पा रहे हैं। समझदार नहीं बना पा रहे हैं। शिक्षा और समझदारी में अंतर है। नए भारत का निर्माण यदि करना है शिक्षा के साथ-साथ संस्कार की भी अत्यंत आवश्यकता है।
उन्होंने कहा हम आने वाली पीढ़ियों को पैसे कमाने की मशीन बना रहे हैं। ऐसे बालक कभी भी अपने माता-पिता परिवार समाज राष्ट्र महत्व नहीं समझते। अतः भारत को यदि पुनः स्थापित करना है। इन छोटी-छोटी बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा जब भगवान प्रगट हुए तो देवता भी आकाश मार्ग से पुष्प की वर्षा करने लगे। अयोध्या के नागरिक भगवान के दर्शन के लिए दौड़ पड़े। इसी प्रसंग के अंतर्गत शान्तनु महाराज ने अयोध्या वासियों का उदाहरण देकर भगवान के दर्शन की आचार संहिता बताई।
भगवान को प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार की बनावट दिखावट की आवश्यकता नहीं है। आप जैसे हो उसी प्रकार से बस परमात्मा को पाने के लिए दौड़ जाओ। भजन में भक्ति में परमार्थ में स्वार्थी होना ही पड़ता है। जो जितना भजन में स्वार्थी हो जाता है। संसार के व्यवहार में परमार्थी हो जाता है। महाराज ने भगवान के बाल लीलाओं का श्रवण कराते हुए उनके रूप दर्शन का वर्णन किया। भगवान का रूप सर्वांग मधुर ही मधुर है।