देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता अवैध तरीके से जमीन जायदाद एकत्र करने के मामलों में फंसे हैं। इन मामलों को देखकर यह सोचने के लिए मजबूर होना पडता है कि क्या वास्तव में इन लोगों ने जन कल्याण एवं जनसेवा के लिए राजनीति की राह चुनी थी अथवा उनका मकसद अपनी आगे की पीढ़ियों के लिए जमीन जायदाद, धन दौलत इकट्ठा करने के लिए सियासत का दुरुपयोग करना था।
ताजा मामला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का है, जिनके ऊपर कर्नाटक भाजपा ने आरोप लगाया है कि उनके परिवार के एक ट्रस्ट को पांच एकड़ जमीन दी गई है। कहा जा रहा है कि राजधानी बेंगलुरू के पास हाई टेक स्पेस डिफेंस एयरोस्पेस पार्क में एयरोस्पेस बिजनेस के लिए आरक्षित जमीन में से उनके परिवार के ट्रस्ट को जमीन दी गई। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि जमीन सही तरीके से ली गई है। सवाल है कि
खुद खड़गे 1969 से किसी न किसी रूप में सत्ता का हिस्सा हैं और अब बेटे को भी मंत्री बना ही रखा है तो इधर उधर से इतनी जमीन इकट्ठा करने का क्या मतलब है? कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी जमीन के मामले में ही फंसे हैं। उनके ऊपर आरोप है कि उनकी पत्नी और कुछ अन्य लोगों ने जमीन के गलत दस्तावेज देकर मुआवजे के तौर पर मैसुर शहरी विकास प्राधिकरण की बेशकीमती जमीन हथिया ली। इसमें भी सिद्धरमैया जमीन लेने से इनकार नहीं कर रहे हैं, बस इतना कह रहे हैं कि दस्तावेज सही हैं। फिर वही सवाल है कि आखिर क्यों ..?
हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा जमीन के मामलों में ही केंद्रीय एजेंसियों की जांच का निशाना बने हैं। गुड़गांव से लेकर पंचकूला तक मनमाने तरीके से जमीन बांटने का मामला चल रहा है। उन पर यह भी आरोप है कि कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को नियमों का उल्लंघन करके उन्होंने जमीन दी। राजीव गांधी ट्रस्ट को भी इसी तरह जमीन देने का आरोप है। वाड्रा को राजस्थान में भी जमीन दिए जाने का मामला है। सोनिया व राहुल गांधी के खिलाफ चल रहा नेशनल हेराल्ड का मामला भी अंततः जमीन और इमारत का ही है।