Sahityakar Dharmpal Ary की दूसरी बरसी पर मधुर विहार स्थित डीपीएस अकादमी में उनकी स्मृति को समर्पित एक भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गुरुकुल डौरली के प्रसिद्ध Sahityakar Dharmpal Ary की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में नामचीन कवियों ने भाग लेकर स्व0 धर्मपाल आर्य को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गजलकार ओंकार गुलशन ने की। संचालन सुमनेश सुमन ने किया। प्रतिभा त्रिपाठी की सरस्वती वंदना से काव्य गोष्ठी का शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कवि सुल्तान सिंह सुल्तान ने प्रेम को समर्पित पंक्तियाँ पढते हुए कहा-
तेरी एक झलक से खुद से अंजाना हो सकता है।
तेरे रूप शमां का कोई परवाना हो सकता है।
तेरी आँखों के मदिरालय में जी डूब गया कुछ पल,
सारी उम्र को दिलबर तेरा दीवाना हो सकता है।।
इसके बाद कवि चन्द्रशेखर मयूर ने अपनी माँ से जुड़ी कविता सुनाकर सबको विभोर कर दिया, उन्होंने कहा-
वो तन मन बार देती है बीज ममता के बोने में।
गूंजती तब हैं किलकारी मेरे आंगन के कोने में
करूं तुलना मैं ईश्वर से वो उससे कम नहीं होती।
जो रखती जां हथेली पर स्वयं की मां के होंने में।
ओंकार नाथ गुलशन जी ने अपनी चिर परिचित अंदाज में एक से बढकर एक गजल सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। गुलशन जी का यह शेर बारंबार सुना गया-
राह तक तक के थक गये होंगे
रास्ते दूर तक गये होंगे।
अब तो आजा कि याद करके तुझे
बाग के बेर पक गये होंगे।।
स्व0 धर्मपाल आर्य के सुपुत्र और अंतरराष्ट्रीय गीतकार मनोज कुमार मनोज सबसे पहले अपने पिता की कविताओं का पाठ किया। उसके बाद उन्होंने कृष्ण भक्ति के सवैये सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा-
श्याम सुधाम वरूँ मन से,प्रभु का हिय से सखि ध्यान करूँ।
दुनिया मुझको कुछ भी समझे, हरि की रसना रसपान करूँ।
उसकी बस छाँव मनोज रहे,दिन-रात वही गुणगान करूँ।
अभिमान करूँ मनमोहन पे, इस जीवन को रसखान करूँ।।
इसके बाद सुधीर शर्मा अनुपम ने अपनी रचनाओं से सभी भावविभोर कर दिया-
सूखे बरगद की हालत पर ऐसा तरह हुआ।
बादल मटकी भर भर पानी लाने लगता है।।
रिश्तों को पानी दोगे तो होंगे हरे- भरे।
बिन पानी के हर पौधा मुरझाने लगता है।।
डा0 रामगोपाल भारतीय ने एक रचनाकर के स्वाभिमान को उकेरते हुए कहा-
जवाब तेरी शिकायत का फिर कभी देंगे,
अभी तो पेट ने अपना सवाल रखा है।।
किसी फकीर की खुद्दारियां से मत उलझो,
अमीरे शहर को झोली में डाल रखा है ।।
कवयित्री प्रतिभा त्रिपाठी ने गोष्ठी में अध्यात्म का रंग घोलते हुए कहा-
कहने को उसकी जोगन हूं, जोगी मोरा मतवाला है।
जोगन के जीवन में बस अब,जोगी है उसकी ज्वाला है।
सुख दुख लगते हैं इक जैसे, क्या अपना क्या बेगानापन
इक हाथ में कासा मीरा के, दूजे में विष का प्याला है।
इसके अतिरिक्त काव्य गोष्ठी में सुमनेश सुमनेश सुमन और राजीव आर्य ने भी काव्य पाठ भी किया। काव्य गोष्ठी में डा0 पंकज योगी, नवीन कुमार, शचीन्द्र कुमार, मीनाक्षी सिंह, गीता सिंह, अभिलाषा, शालिनी, दिव्या सिंह और प्रवीण सिंह मुख्य रूप से उपस्थित रहे।