- पंजाब के किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर
- हरियाणा पुलिस व पंजाब के किसानों में संघर्ष जारी
- सरकार दिल्ली नहीं आने देना चाही किसानों को
पंजाब के किसान एक बार फिर नईं दिल्ली यानि राजधानी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए आना चाहते हैं किन्तु सरकार उन्हें आने से रोक रही है। यही कारण है कि हरियाणा पुलिस और पंजाब के किसानों के बीच रोज संघर्ष हो रहा है। असल में पंजाब के किसान यह समझते हैं कि केन्द्र सरकार पर दबाव डालने के लिए यही सबसे उचित समय है क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है, जबकि केन्द्र व हरियाणा सरकार चाहती हैं कि इस वक्त सुरक्षा कारणों से किसान नईं दिल्ली न आएं! पंजाब के किसान अपना आंदोलन वामपंथी तौर तरीके से करते हैं।
यह तरीका सरकारों से सौदेबाजी के लिए उपयुक्त नहीं होता। सच तो यह है कि वामपंथी आंदोलन अपनी प्रासंगिकता ही खो चुका है। इसका मतलब यह नहीं है कि किसानों की समस्याएं न सुनी जाएं! किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए हर तरीका अपनाते हैं। किसानों की राजनीति करने वाले वामपंथी यूनियन किसानों की आवाज को बुलंद करते हैं, तो इसमें कोईं गलत बात नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारें किसानों के आव््राोश और आंदोलन को संभालने के लिए संयम और समझदारी पूर्वक प्रयास कैसे करती हैं।
यदि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए भड़काए गए किसानों से हमारी सरकारें उलझने लगेंगी तब तो कभी भी कोईं आवाज उठाएगा ही नहीं। अच्छा होता सरकार के प्रातिनिधि किसान नेताओं से मिलकर उनकी बात सुनते और जो आसानी से मांगें पूरी की जा सकती थीं, उन्हें पूरा कर देते और जो मुश्किल होतीं उन पर बातचीत के लिए समय निर्धारित करते और जो मांगे पूरा कर पाना असंभव हैं, उनके लिए क्षमा मांगते तो किसान जरूर नरम रुख दिखाते।
इस कड़ाके की ठंड में किसानों के खिलाफ न तो बल प्रयोग उचित है और न ही किसान नेताओं द्वारा अपनी राजनीति चमकाने के लिए किसानों को हथियार बनाना। वामपंथी विचारधारा हमेशा विध्वंसकारी रही है। पहले वह उद्योगों और कामगारों को एक दूसरे का दुश्मन साबित करते रहे और अब किसान और सरकार में दुश्मनी पैदा करने पर तुले हैं। वामपंथियों की हकीकत दोनों यानि किसानों और सरकार को समझने की जरूरत है।