वक्फ संशोधन विधेयक पर विपक्ष के बोल न फूटे, अखिलेश-राहुल ने बरगलाया

ना खुदा ही मिला ना विशाल ए सनम, ना इधर के रहे ना उधर के रहे।

राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता.. हाल ही में वक्फ संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया जिसमे विपक्ष सहित भाजपा के वरीष्ठ नेताओं ने ध्वनि मत से अपना समर्थन दिया।

सबसे खास बात ये है कि जब बिल को पास करने के दौरान इस पर चर्चा हो रही थी तो विपक्ष के किसी भी नेता के मुँह से इसके विरोध में कोई खास तथ्य परक जानकारी नहीं दी गई और यह बिल बिना किसी लागलपेट से पारित कर दिया गया।

तो आज चर्चा इसी बात पर होगी कि आखिर वक्फ संशोधन विधेयक पारित हो जाने से इसका राजनीतिक रूप से क्या असर पड़ने वाला है। क्या पार्टियों के मन में इस विधेयक को लेकर अब भी कोई तथ्य परक विरोध है या सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक विरोध ही कर रहे है।
देश में सांसदों के लिहाज से तीन बड़ी पार्टियां है जिनमें पहला है भाजपा, दूसरी है कांग्रेस और तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी शामिल है।
सबसे पहले सुनते हैं अखिलेश यादव ने क्या कुछ महत्वपूर्ण बात इस दौरान कहीं है
वीडियो फुटेज

सांसदों के लिहाज से देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव वक्त संशोधन विधेयक के विरोध में अपने भाषणों से तथ्यपरक खोखलेपन को उजागर कर रहे हैं। वक्फ संशोधन विधेयक में किसी वक्फ संपत्ति में विवाद होने पर हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऑप्शन मिलने पर अखिलेश यादव प्रतिक्रिया देते हुये दिखे, इससे साफ ज़ाहिर है कि वे चाहते हैं कि देश संविधान से नहीं बल्कि सरिया के कानून से चले।

इसके अलावा अखिलेश यादव ने यह भी कहा है कि इससे मुस्लिमों को बांटने की कोशिश की जा रही है… तो सबसे बड़ा सवाल ये है की आखिर वक्फ संशोधन विधेयक से मुस्लिम आखिर कैसे बटेंगे और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किस पर पड़ेगा?

चूंकि यह संशोधन कांग्रेस के द्वारा बनाए गए कानून में ही किया जा रहा है जिसके तहत वक्फ बोर्ड को यह पावर दी गई थी कि वह जिस संपत्ति को वक्फ बोर्ड की संपत्ति कह देगा वह संपत्ति बिना किसी वाद–विवाद के उसकी हो जाएगी। अब सरकार ने उस सेक्शन को ही खत्म कर दिया… इसका असर यह हो रहा है कि विपक्ष के जो बड़े चेहरे हैं उनमें यह दर्द है कि अब वह अपने चहेतों के नाम पर संपत्ति करवाकर उसका लुत्फ नहीं उठा पाएंगे।

आपको याद होगा कि 2014 में चुनाव होने से पहले मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू होने के कुछ घंटे पहले ही दिल्ली में सैकड़ों प्राइम लोकेशन की संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया था। कांग्रेस के नेताओं को यह बताना चाहिए कि आखिर उन्होंने चुनाव से ऐन वक्त पहले ऐसा कदम क्यों उठाया था? हालांकि बाद में हाईकोर्ट में मैटर गया और हाई कोर्ट ने इस प्रकरण को डिसमिस कर दिया था और कांग्रेस के चहेतों को उनके मनमुताबिक संपत्ति नहीं मिल पाई।

अब लोकसभा में जेपीसी रिपोर्ट के आधार पर बिल पेश किया गया और पास कर दिया गया है जेपीसी रिपोर्ट ने विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न लोगों से संपर्क कर इस पर रिकमेन्डेशन किया जिसके बाद लोकसभा में भी चर्चा के दौरान किसी भी विपक्ष के नेता को फ्रूटफुल वार्तालाप करते हुए नहीं देखा गया।

यहाँ तक की देश में दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी कांग्रेस है ओर जिसके युवराज राहुल गाँधी कहे जाते हैं वो भी वक्त संशोधन विधेयक पर बहुत कुछ नहीं बोल पाए। ऐसा लगता है कि सिर्फ मुस्लिम वोटर्स को लुभाने के लिए ही ये लोग उन के बीच गलत सही बयानबाजी करने में माहिर हैं चूँकि सदन में तमाम शिक्षित वर्ग के लोग बैठे रहते है और वहाँ पर बरगलाने वाली बात नहीं की जा सकती इसलिए ये तमाम नेता वहाँ पर तथ्यपरक रूप से नहीं बोल पाए।

वक्फ बोर्ड बनने के बाद जितने भी अमीर तबके के मुसलमान थे उनको सबसे ज्यादा फायदा हुआ। उन्होंने जब चाहा, जिसे परेशान करना चाहा बस तुरंत क्लेम कर दिया की अमुक जगह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। गरीब मुसलमान चाहकर भी कुछ तो अपने धर्म की शर्म के लिहाज से और कुछ वक्फ बोर्ड के कानून के दबाव में कोई कदम नहीं उठा सकता था।

वक्फ संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया है और इससे साफ ज़ाहिर है कि अब देश संविधान से चलेगा न कि शरीयत से। इस बिल के पास होने से गरीब मुसलमानों ने राहत की सांस ली है और ईमानदार मुस्लिम वर्ग ने इसकी सराहना की है तथा इस बिल को संविधानपरक बताया है
विपक्ष के नेताओं को यह भी उम्मीद थी की एनडीए के सहयोगी दल क्योंकि वो क्षेत्रीय दल हैं और उन्हें मुस्लिम वोटरों से काफी उम्मीदें हैं लिहाजा वो भाजपा का विरोध करेंगे लेकिन किसी भी सहयोगी दल के नेता ने इस विधेयक पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया बल्कि वह इस संशोधन विधेयक के पक्ष में पुरज़ोर तरीके से खड़े हुए दिखाई दिए।

यहाँ अखिलेश यादव और राहुल गाँधी को और भी झटका लग गया कि एनडीए गठबंधन में किसी तरह की कोई दरार नहीं कर पा रहे हैं। नीतीश कुमार चंद्रबाबू नायडू सहित एनडीए में शामिल अन्य घटक दलों के नेताओं ने अपनी सहमति जताकर इस बिल को पूर्ण रूप से सही ठहरा दिया।