लालची लोमड़ी!
डॉ. माध्वी बोरसे!(स्वरचित व मौलिक रचना)राजस्थान (रावतभाटा)
भरी दोपहर में एक दिन लोमड़ी भटके,
कर रही थी भोजन की तलाश,
दिखे उसे बेल में अंगूर लटके,
किया उसे तोड़ने का प्रयास!
लालची लोमड़ी कहने लगी स्वयं से,
इन स्वादिष्ट अंगूर को मुझे है खाना,
लगाई उसने छलांग जम जम के
,थक हार के बैठी और किया बहाना!
उसने अपने मन को समझाया,
बहुत ऊंचाई पर है,इसमें मेरा क्या कसूर,
अपनी कमजोरी को छुपाया,और कहां,
यह तो अंगूर खट्टे होंगे जरूर!
अगर हम कुछ प्राप्त ना कर पाए,
कीमती वस्तु को तुच्छ साबित ना करें,
जीवन में परिश्रम करते जाए,
रहे आखरी तक अपने लक्ष्य पर अड़े!!
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