अर्नेस्ट हेमिंग्वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिंक्शन लेखकों में से एक हैं। उनकी पहली नॉवेल का नाम था ‘द सन आल्सो राइजेज’ नॉवेल का एक किरदार बिल एक दूसरे किरदार माइक से पूछता है- यानी तुम दिवालिया कैसे हुए? माइक जवाब देता है दो तरीकों से धीरे-धीरे और फिर अचानक। 1926 में लिखी गई इन लाइनों को चीन बार-बार पढ़ रहा होगा।
चीन की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी के दिवालिया होने की कगार पर आने के बाद अब चीन की बत्ती गुल हो गई है, जिसकी वजह से उसकी कंपनियों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। हालात ऐसे हो गए हैं कि चीन में भारी बिजली संकट के बीच सैकड़ों घरों और कारखानों में अंधेरा छा गया है। कुछ शहर ट्रैफिक लाइट को बंद करके इसकी आपूर्ति कर रहे हैं।
चीन के पूर्वोत्तर इलाकों में संकट इतना गहरा हो गया है कि बड़ी कंपनियों की फैक्ट्रियों में काम रुक गया है। कई मॉल व दुकानें भी बंद हो चुकी है और लोग अंधेरे में जीवन यापन करने को मजबूर हो गए हैं। सरकार ने चीन में कुछ प्रांतों में स्थित तमाम कंपनियों को अपने उत्पादन में कटौती करने के निर्देश दिए हैं जिससे कि बिजली की खपत कम की जा सके। इन प्रांत के लोगों से भी सरकार ने कहा कि वो अपने घरों में ऐसे संसाधनों का इस्तेमाल ना करें जिससे अधिक बिजली की खपत हो।
चीन में जहां इस साल अगस्त में जितनी बिजली का उत्पादन हुआ था वह पिछले वर्ष की तुलना में करीब 10 फीसदी से अधिक था। फिर ऐसा क्या हो गया कि चीन में बिजली की इतनी बड़ी दिक्कत आने लगी? दरअसल, इस प्रश्न के कई उत्तर में से एक है कोरोना महामारी, चीन में औद्योगिक गतिविधियां तेजी से बढ़ी है
जिसके चलते बिजली की मांग में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसके अलावा चीन में बिजली संकट के पीछे कोयला सप्लाई भी एक बड़ी वजह है। चीन में कई बंदरगाह लंबे वक्त से बंद पड़े थे। ऐसे में मांग के अनुरूप कोयले की सप्लाई नहीं हो पाई।
यह सप्लाई अभी भी बाधित है और कोयला मंगाने के लिए बंदरगाहों पर लंबी वेटिंग चल रही है। ऐसे में चांगचुन, झेझियांग जैसे कई इलाकों में सरकार ने बिजली काटने की घोषणा कर दी है। चीन में बिजली संकट इतना गहरा हो गया है कि इसका असर अलगे साल तक रहने की आशंका है।
चीन की परेशानी नहीं हो रही कम
ये सबकुछ ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्विक वित्तीय बाजार पहले से ही चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांड समूह के धराशायी होने से चिंतित हैं। इस रियल एस्टेट कंपनी पर अरबों डॉलर का बोझ है।