औरंगजेब दरिंदा भी था और क्रूर भी

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हाल ही में महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के विधायक आबू आजमी ने औरंगजेब को लेकर बयान दिया कि वो एक क्रूर शासक नहीं थे… और उस वक्त की लड़ाई शासन व सत्ता को हथियाने के लिये थी, वो धार्मिक लड़ाई नहीं थी…

अब इस बयान को लेकर महाराष्ट्र व यूपी से लेकर दिल्ली तक में तगड़ा बवाल मचा है… अब अखिलेश यादव ने भी आबू आजमी के समर्थन में ट्वीट किया है… इससे साफ जाहिर है कि अखिलेश यादव को मुगलों के क्रूर शासक के प्रति सहानुभूति उमड़ पड़ी है… लेकिन इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में एक अलग माहौल देखने को मिल रहा है… दरअसल यहां पर समाजवादी पार्टी रालोद के साथ चुनावी मौसम में कह चुकी है कि वो देशभर में

लड़ाई में जाटों की विजय हुई

मुगल शासन ने इस्लाम धर्म को बढावा दिया और किसानों पर कर बढ़ा दिया। वीर गोकुल जाट ने किसानों को संगठित किया और कर जमा करने से मना कर दिया और औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। औरंगजेब ने अपने कुछ सेनापतियों के साथ शक्तिशाली सेना भेजी। जाटों और मुगलों में युद्ध हुआ। युद्ध में जाटों की विजय हुई। परंतु युद्ध हारने के बाद औरंगजेब खुद सेना लेके चल दिया और गोकुला और उनके साथियों को बंधी बनाने के लिए बहुत बड़ी सेना भेजी , वीर गोकुल जाट को बन्दी बना लिया गया और 1 जनवरी 1670 को आगरा के किले पर जनता को आतंकित करने के लिये टुकडे़-टुकड़े कर मारा गया। इस तरह वो शहीद हो गए।

  • इस बात से औरंगजेब का सर भन्नाया और उसने गोकुल जाट के शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया।
  • आगरा में आज भी वो चबूतरा मौजूद है जिसे फौव्वारा चौक के नाम से जाना जाता है
  • The Jat’s and there role in Mughal empire Book में dr girish chand dvivedi ने इस घटना का जिक्र किया है
  • गुरु तेग बहादुर से पांच साल पहले गोकुल जाट का बलिदान आज भी हमारे जाट भाईयों के मन में रचा व बसा है…
  • छत्रपति शिवाजी, संभाजी महाराज के साथ साथ गोकुल जाट और गुरू समर्थ रामदास जी का सामूहिक तौहीन किया जा रहा है…

महाराणा प्रताप ने वर्षों तक मुगल शासक अकबर के साथ संघर्ष किया, लेकिन दासता स्वीकार नहीं की। फिर मुगलों की सत्ता को चुनौती दी छत्रपति शिवाजी महाराज ने। इसी दौरान वीर गोकुला जाट (गोकुल सिंह) ने औरंगजेब की सत्ता को हिला दिया था। वीर गोकुला जाट से निपटने के लिए औरंगजेब को स्वयं दिल्ली से चलकर मथुरा आना पड़ा था। मुगल फौज और जाटों के बीच तिलपत का युद्ध हुआ, दो तीन दिन तक चला। खानवा का युद्ध,हल्दी घाटी का युद्ध और पानीपत की तीन लड़ाइयां एक दिन में ही समाप्त हो गई थी।

एक जनवरी, 1670 को औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट की हत्या आम जनता के सामने कोतवाली के चबूतरे पर कराई। इस्लाम स्वीकार न करने पर उनका अंग-अंग काटा गया। हर अंग से खून की फुहारें निकालती थीं। इसी कारण उस स्थान का नाम फव्वारा पड़ गया। अखिल भारतीय जाट महासभा अब फव्वारे पर वीर गोकुला जाट की प्रतिमा स्थापित करने का प्रयास कर रही है। इतिहासकारों का मानना है कि गोकुल सिंह, महाराजा सूरजमल के वंशज थे। गुरु तेगबहादुर से पांच साल पहले हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गोकुला वीर ने बलिदान दिया था।

तिलपत का युद्ध

औरंगजेब ने किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे। हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था। ऐसे में तिलपत गढ़ी में जन्मे गोकुल सिंह ने आवाज बुलंद की। उन्होंने मुगल शासक को किसी भी प्रकार की मालगुजारी देने से मना कर दिया। तिलमिलाए औरंगजेब के आदेश पर मुगल फौज ने तिलपत गढ़ी पर हमला कर दिया।

10 मई 1666 को तिलपत की लड़ाई में वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब को हरा दिया। इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों में गोकुल सिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। उसने कहा कि माफी मांग लें। गोकुल सिंह ने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इससिए माफी क्यों मागूं।

इससे औरंगजेब तिलमिला गया। वह 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से मथुरा आ गया। युद्ध की तैयारिया शुरू हो गईं। दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में तिलपत से 20 मील दूर सिहोर में दूसरा युद्ध हुआ। मुगलों के पास तोपखाना थी, फिर भी जाट वीर लड़ते रहे। तीन दिन तक युद्ध हुआ। शाही सेना के पैर उखड़ गए। जाट जीतने ही वाले थे थे कि हसन अली खाँ के नेतृत्व में नई मुगल फौज आ गई। जाटों के पैर उखड़ गए, लेकिन वे अपने घरों की ओर भागे नहीं, तिलपत गढ़ी में आ गए। यहां फिर तीन दिन तक युद्ध चलता रहा। मुगलों की तोपों ने सबकुछ नष्ट कर दिया। गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य वीरों को बंदी बना लिया गया।

कोतवाली के चबूतरे पर अंग-अंग काटा गया

अखिल भारतीय जाट महासभा के जिलाध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि आगरा किले में औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट ते सामने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो। गोकुल सिंह ने वीरतापूर्वक इनकार कर दिया। फिर एक जवनरी, 1670 को गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य को बंदी बनाकर कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया।

उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है। फव्वारा में मुख्य रूप से दवा बाजार है। यहीं पर कोतवाली है। गोकुला जाट का बलिदान मुगल शासन के ताबूत में अंतिम कील के रूप में सिद्ध हुआ।